बिहार का ताज: मधुबनी सिर्फ शहर का नाम नहीं, बल्कि जीती-जागती संस्कृति है
मधुबनी की अपनी अलग पहचान है। अपनी कला-संस्कृति और पेंटिंग के लिए मशहूर ये शहर कई मायनों में खास है। इस जगह मिथिलांचल का दिल है। यूहीं नहीं इसे धर्म, अध्यात्म और कला-संस्कृति का गढ़ कहा जाता है। यहां का उगना महादेव मंदिर, कपिलेश्वर मंदिर, पान-मखान और खान-पान सब बहुत ही अलग हैं। आइए मधुबनी से जुड़ी खास बातें जानते हैं-

मधुबनी
मधुबनी यानी मधुर वाणी। कहते हैं कि अगर किसी जगह की भाषा में मिठास और अपनापन है, तो वो है बिहार का मधुबनी। अपनी कला-संस्कृति और पेंटिंग के लिए मशहूर ये शहर कई मायनों में खास है। यह कभी दरभंगा का हिस्सा हुआ करता था। लेकिन,साल 1972 में अलग होने के बाद धीरे-धीरे एक लोकप्रिय टूरिस्ट स्पॉट के रूप में विकसित हो रहा है। इसे यूहीं नहीं धर्म, अध्यात्म और कला-संस्कृति का गढ़ कहा जाता है। यहां स्थित कपिलेश्वर स्थान, उगना महादेव मंदिर, सौरथ मधुबनी, उतैता, पेंटिंग, मखान, मछली और यहां के साहित्यकार इसे दुनियाभर में अगल पहचान दिलाते हैं। यहां कुल 1115 गांव हैं। भारतीय जनगणना 2011 के अनुसार यहां की जनसंख्या 4,487,379 है। यहां 84.07% आबादी मैथिली, 12.86% उर्दू और 2.92% हिंदी भाषा बोलती हैं।
मधुबनी विद्वानों की धरती
मधुबनी के विद्वानों की धरती है। यहां की मिट्टी में कई साहित्यकारों ने जन्म लिया है। यहां लगातार साहित्यिक प्रोग्राम होते रहते हैं। कवि कोष्टी, लेखन के क्षेत्र में यहां के साहित्यकारों का डंका बजता है। जिनमें संस्कृत के प्रकांड विद्वान डा. आद्याचरण झा (राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित) उमेश पासवान (मैथिली में साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार) उदय चन्द्र झा विनोद (साहित्य अकादमी पुरस्कार) साहित्यकार डॉ. योगानंद सिंह (नाट्य मंचन में स्वर्ण पदक) सियाराम झा सरस (बाल साहित्य पुरस्कार) जैसे बड़े नाम शामिल हैं।
मधुबनी का खान-पान
मधुबनी में खासकर चावल, दाल, रोटी, भाजी और अचार, पापड़, सत्तू है को पसंद किया जाता है। यहां का चूड़ा-दही, चूड़ा भूंजा, बगिया फेमस है। यहां के लोग नॉनवेज के शौकीन होते हैं, इन्हें ज्यादाकर मछली और रेड मीट पसंद होता है
मधबनी पेंटिग की शुरुआत
ऐसा माना जाता है कि मधुबनी पेंटिंग का इतिहास रामायण काल से है। इस पेंटिंग का जिक्र तुलसीदास चरित रामायण में भी हूबहू मिलता है। जिसके अनुसार, मिथिला नरेश जनक ने राम और सीता के विवाह का चित्र दीवारों पर उकेरने के लिए कलाकारों को रखा था। जगदम्बा देवी पहली महिला थीं, जिन्हें मिथिला पेंटिंग के लिए पद्मश्री अवार्ड से समन्नित किया गया था। जिसके बाद सीता देवी, गंगा देवी और ऐसे 7 लोगों को मिथिला पेंटिंग चित्र कला के लिए पद्मश्री से सम्मान मिला। लेकिन, इसको पहचान दिलाने वाले एसडीओ विलियम जॉर्ज आर्चर हैं।
मिली पेंटिंग को पहचान
इस पेंटिंग के बारे में लोगों को तब पता चला, जब मिथिला क्षेत्र में 1934 में भीषण भूकंप आया था। भूकंप के बाद मिथिला क्षेत्र के एसडीओ विलियम जॉर्ज आर्चर क्षेत्र का भ्रमण करने के लिए आए थे,जहां उन्होंने मिट्टी के गिरे हुए घरों की दीवारों पर मिथिला पेंटिंग देखा, इसका मुआयना किया और फोटोग्राफी की। कहा जाता है कि सिर्फ इस पेंटिंग के बारे में जानने के लिए वह अगले 6 साल तक यहां आते रहे। जिसके बाद उन्होंने मिथिला पेंटिंग पर एक आर्टिकल लिखा। इसके बाद भारत सरकार की कल्चरल एडवाइजर ने इस पेंटिंग की बारीकी को जानने के लिए विशेषज्ञ भास्कर कुलकर्णी को भेजा और लोगों को कागज पर मिथिला पेंटिंग करने को कहा। इस पेंटिंग की खूबसूरती को देख वह बहुत खुश हुए, जिसके बाद इसे दुनियाभर में पहचान मिली।
पेंटिग की खासियत
इस पेंटिंग को बनाने के लिए माचिस की तीली और बांस के पेन का इस्तेमाल किया जाता है। रंग की पकड़ बनाने के लिए बबूल के पेड़ की गोंद को मिलाया जाता है। इसे बनाने में ज्यादातर लाल, हरा, नीला, और काले रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। इस कला के जरिए मिथिला का कल्चर, देवी-देवताओं और नेचर की खूबसूरती को दर्शाया जाता है। मधुबनी पेंटिंग कई तरह की होती है- जैसे कि भरनी, कचनी, तांत्रिक, गोदना, कोहबर और भारती। जिसमें भरनी सबसे ज्यादा मशहूर है।
इन चीजों के लिए है मशहूर
मधुबनी की मिथिला संस्कृति का नाम आते ही यहां की तीनों चीजें पान,माछ (मछली) और मखाना लोगों के जेहन में आ जाते हैं। मिथिलांचल में पान, माछ और मखाना का बड़े पैमाने पर सेवन किया जाता है। मिथिलांचल को नदी, नहर, पोखर, गब्बी, सरेह, चाम्प का इलाका माना जाता है। यह भी एक वजह है कि यहां मखाना और मछली का पालन बड़े पैमाने पर होता है। यहां शादी ब्याह में मछली और मखाना की काफी मांग होती है।
मखाना
यहां सबसे पहले मखाने की खेती की गई थी। दरभंगा महाराज के शासनकाल में यहां बड़े पैमाने पर मखाने की खेती की जाती थी। यह काफी गुणकारी होता है। आज मखाने की पहचान देश-विदेश तक है। यहां 80% मखाने का उत्पादन होता है।
पान
पान खाना यहां के लोगों के लाइफस्टाइल में शुमार है। यहां पुरुष से लेकर महिला तक सभी पान का सेवन शौख से करते हैं। मधबनी में हर घर में पान रखा जाता है। घर आए मेहमानों को आदर-सत्कार के साथ पान खिलाया जाता है।
मछली
मधबनी देसी मछलियों के उत्पादन में भी अब्बल है। यहां इचना, पोठी, मारा, कबई, गरई, सौरा, गैंचा, सुहा, कांटी, गोलही, मांगुर, छही, चेचरा, भुल्ला और ढलई जैसे अन्य कई देसी मछलियां का उत्पादन किया जाता है।
मधुबनी का उगना महादेव मंदिर
मिथिलांचल का दिल है मधुबनी। बिहार के मधुबनी का उगना महादेव मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र है। यह काफी पुराना और फेमस मंदिर है। महाशिवरात्रि के मौके पर यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है। उगना महादेव मंदिर का इतिहास कवि विद्यापति से जुड़ा है। ऐसी मान्यता है कि भगवान महादेव विद्यापति की भक्ति से इतने प्रसन्न थे कि वह विद्यापति के यहां नौकर बनकर रहने लगे थे। महादेव के इस रूप को उगना के नाम से जाना जाता है।
कपिलेश्वर स्थान
इसके साथ ही आप यहां कपिलेश्वर स्थान के दर्शन भी कर सकते हैं। यह मंदिर भी महादेव को समर्पित है।
उचैथा
मधुबनी जिले में स्थित उचैथा एक बहुत ही प्राचीन और ऐतिहासिक जगह है, जिसका ज़िक्र हमारी कई पौराणिक कथाओं में भी है। यह देवी भगवती को समर्पित है।
सौरथ
बिहार के मधुबनी से जयनगर की ओर मुख्य सड़क पर सौरथ एक छोटा सा गांव है, जो लोकप्रिय सोमनाथ महादेव मंदिर के लिए जाना जाता है।
नगर किला
मधुबनी के महाराजा रामेश्वर सिंह द्वारा बनाया गया नगर किला नौलखा पैलेस के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि 1934 में आए भीषण भूकंप के पहले पहले तक ये जगह शाही परिवार का निवास हुआ करती थी।
भवानीपुर
आपको यहां जाएं तो एक बार मधुबनी जिले में पंडौल ब्लॉक मुख्यालय से 5 किमी दूर भवानीपुर गांव उग्रनाथ मंदिर जरूर जाएं।
मधुबनी की साड़ियां
मधुबनी साड़ियां भारतीय महिलाओं के बीच काफी फेमस हैं। ये साड़ियां उत्तर भारत के बिहार राज्य के मधुबनी में बनाई जाती है, इसलिए इसे मधुबनी साड़ी कहते हैं। ये साड़ियां भारतीय सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनकी खासियत रंग-बिरंगी डिजाइन और कढ़ाई हैं। इनमें अलग-अलग तरह के सुंदर बूटे, पैचवर्क और आधुनिक आर्टवर्क की जाती है। ये साड़ियां खासकर शादी, पार्टी, पारंपरिक आध्यात्मिक और सामाजिक समारोहों में पहनी जाती हैं।
मधुबनी अर्बन हाट
मधुबनी के झंझारपुर के अररिया संग्राम में एनएच-57 किनारे अर्बन हाट लगता है। ईस्ट वेस्ट कॉरिडोर पर बने इस हाट को मिथिला की सांस्कृतिक परंपराओं और खान-पान से सजाया गया है। अर्बन हाट में मिथिलांचल की विश्व फेमस पेंटिंग और अन्य कलाकृतियों के लिए क्राफ्ट कोर्ट भी बनाए गए हैं।
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