जमानत मिलने के तुरंत बाद जेल से क्यों नहीं रिहा हो पाते हैं कैदी? जानें प्रक्रिया और कितना लगता है वक्त
Bail Procedure: क्या आपने कभी ये सोचा है कि अदालत से जमानत मिलने के बाद किसी भी कैदी को जेल से बाहर आने में इतना वक्त क्यों लगता है? देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर बाकायदा गाइडलाइंस जारी कर रखी है। आपको बताते हैं, किसी आरोपी की रिहाई में कितना वक्त लगता है और प्रक्रिया क्या है?
क्या है जमानत से रिहाई तक की पूरी प्रक्रिया?
Supreme Court Guidelines: सुप्रीम कोर्ट से जब किसी कैदी या आरोपी को जमानत मिलती है, तो बेल के बाद जेल से रिहाई में कितना वक्त लगता है? क्या रिहाई के लिए किसी अन्य पेपर वर्क की भी आवश्यकता होती है? सर्वोच्च अदालत ने इसके लिए दिशा-निर्देश जारी कर रखे हैं। स्थिति को देखते हुए अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं, जमानत के बाद सुप्रीम कोर्ट का आदेश ट्रायल कोर्ट के पास जाता है। आगे क्या-क्या होता है आपको बताते हैं।
क्या है जमानत से रिहाई तक की पूरी प्रक्रिया?
सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट का लिखित आदेश आता है, जिसे ट्रायल कोर्ट में भेजा जाता है। इसके बाद जमानत की शर्तें या लगाई जाती हैं, जिसे या सुप्रीम कोर्ट लगाती है या ट्रायल कोर्ट को करने के लिए कहा जाता है। ट्रायल कोर्ट के पास जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश आता है तो कोर्ट औपचारिक प्रक्रियाएं पूरी करता है, इसके तहत मुचलका भरना और मुचलकों को प्रमाणित किया जाता है। इसी के बाद ट्रायल कोर्ट आरोपी या कैदी की रिहाई का आदेश जारी करता है। इसके बाद 'रिलीज बेल' आदेश जेल भेजा जाता है। जेल में रिहाई की प्रक्रिया पूरी की जाती है, कैदी की पूरी जांच होती है, कागजों का मिलान किया जाता है। सभी प्रक्रिया पूरी होने के बाद कैदी को रिहा किया जाता है और वो जेल से बाहर आता है।
किसी आरोपी की रिहाई में कितना वक्त लगता?
सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी कैदी की जमानत को लेकर दिशा-निर्देश जारी कर रखी है, इसके तहत जब अदालत की ओर से किसी अंडर ट्रायल या दोषी को जमानत दी जाती है तो जेल प्रशासन आगे की कार्यवाही को शुरू करता है। यदि जमानत मिलने के 7 दिनों के बाद कैदी को रिहा नहीं किया जा रहा है, तो इसकी जानकारी जेल अधीक्षक को डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी को देनी होती है। दिल्ली हाईकोर्ट ने इसे लेकर कहा है कि जिन कैदियों को जमानत दी गई है, उन्हें 48 घंटे के भीतर जेल से रिहा किया जाना चाहिए।
वकील ने बताई क्या होती है रिहाई प्रक्रिया
टाइम्स नाउ नवभारत से खास बातचीत के दौरान वाराणसी के एक अधिवक्ता विकास सिंह ने बताया कि आखिर जमानत के बाद जेल से रिहाई प्रक्रिया की क्या प्रक्रिया होती है। उन्होंने कहा कि 'जब कोई अदालत किसी कैदी को जमानत देती है तो इसके बाद सबसे पहले जमानत की शर्तों को तय किया जाता है। इसके बाद सत्र न्यायालय या ट्रायल कोर्ट के बाद आदेश जाता है। उस आदेश का पालन करते हुए, कानूनी प्रक्रियाएं होती हैं। 50 हजार तक के मुचलके का वेरिफिकेशन नहीं होता है, इससे अधिक के मुचलके की जांच की जाती है। जांच में स्थानीय थाना से वेरिफिकेशन होता है, बॉन्ड भरे जाते हैं, जमानत देने वाले की जांच होती है। इसके बाद जमानत का आदेश जेल को भेजा जाता है और फिर वहां सभी प्रक्रियाओं के पूरे होने के बाद कैदी को रिहा कर दिया जाता है।'
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश की बड़ी बातें
1). अदालत जब एक अंडरट्रायल कैदी/दोषी को जमानत देती है, उसे उसी दिन या अगले दिन जेल अधीक्षक के माध्यम से कैदी को ई-मेल द्वारा जमानत आदेश की सॉफ्ट कॉपी भेजनी होगी। जेल अधीक्षक को ई-जेल सॉफ्टवेयर (या कोई अन्य सॉफ्टवेयर जेल विभाग द्वारा उपयोग किया जा रहा है) में जमानत देने की तारीख दर्ज करनी होगी।
2). यदि किसी भी आरोपी को जमानत देने की तिथि से 7 दिनों की अवधि के भीतर रिहा नहीं किया जाता है, तो यह जेल अधीक्षक का कर्तव्य होगा कि वह जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के सचिव को सूचित करें। वहीं कैदी के साथ और उसकी रिहाई के लिए हर संभव तरीके से कैदी की सहायता और बातचीत करने के लिए पैरा लीगल वालंटियर या जेल विजिटिंग एडवोकेट को नियुक्त कर सकता है।
3). एनआईसी ई-जेल सॉफ्टवेयर में आवश्यक फ़ील्ड बनाने का प्रयास करेगा। जिससे जेल विभाग द्वारा जमानत देने की तारीख और रिहाई की तारीख दर्ज की जा सके। अगर कैदी 7 दिनों के भीतर रिहा नहीं होता है, तो एक स्वचालित ईमेल सचिव, DLSA को भेजा जा सकता है।
4). डीएलएसए के सचिव अभियुक्तों की आर्थिक स्थिति का पता लगाने की दृष्टि से परिवीक्षा अधिकारियों या पैरा लीगल वालंटियर्स की मदद ले सकता है। जिससे कैदी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार की जा सके। जिसे संबंधित न्यायालय को जमानत की शर्तों ढील देने के अनुरोध के साथ समक्ष रखा जा सके।
5). ऐसे मामलों में जहां अंडरट्रायल या दोषी अनुरोध करता है कि वह एक बार रिहा होने के बाद जमानत बांड या जमानत दे सकता है। उस वक्त एक उपयुक्त मामले में अदालत अभियुक्त को एक विशिष्ट अवधि के लिए अस्थायी जमानत देने पर विचार कर सकती है, ताकि वह जमानत बांड या जमानत प्रस्तुत कर सके।
6). जमानत देने की तारीख से एक महीने के भीतर जमानत बांड प्रस्तुत नहीं किया जाता है, तो संबंधित न्यायालय इस मामले को स्वतः संज्ञान में ले सकता है और विचार कर सकता है कि क्या जमानत की शर्तों में संशोधन/छूट की आवश्यकता है।
7). अभियुक्त/दोषी की रिहाई में देरी का एक कारण स्थानीय जमानत पर जोर देना है। यह सुझाव दिया जाता है कि ऐसे मामलों में अदालतें स्थानीय जमानत की शर्त नहीं लगा सकती हैं।
लाइव लॉ की रिपोर्ट में बताया गया है कि ये निर्देश तीन एमिकस क्यूरी द्वारा अदालत में प्रस्तुत विस्तृत और व्यापक सुझावों का हिस्सा हैं। एएसजी केएम नटराज से चर्चा के बाद एडवोकेट गौरव अग्रवाल, लिज मैथ्यू और देवांश ए मोहता को एमिकस क्यूरी नियुक्ति किया गया था।
आशा करते हैं कि आपको हमारी इस रिपोर्ट में अपने सभी सवालों के जवाब मिल गए होंगे, आपको ये समझ आ गया होगा कि आखिर जमानत मिलने के तुरंत बाद कैदी की रिहाई क्यों नहीं होती है और उसे जेल से रिहा होने में किन-किन प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ता है।
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