गजब हो रहा! बृहस्पति के पास धरती की तरह नहीं है कोई सतह, पर हमारी रक्षा करता है ये गैसीय दानव; कैसे
Jupiter Surface: सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति के पास कोई ठोस सतह नहीं है, जबकि हमारी धरती के पास है। जिस पर आप और हम रहते हैं, लेकिन बृहस्पति हमारी और आपकी रक्षा जरूर कर रहा है। खगोलविदों का मानना है कि बृहस्पति का गुरुत्वाकर्षण कई आसमानी आफतों का रास्ता बदल देता है, जो शायद पृथ्वी से टकरा सकते हैं।
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बृहस्पति ग्रह
- गैसीय दानव से कम नहीं बृहस्पति।
- बृहस्पति के केंद्र में कोई ठोस जगह नहीं।
- बृहस्पति का केंद्र काफी गर्म है।
Jupiter Surface: मिल्की-वे आकाशगंगा के एक ग्रह धरती पर हम और आप रहते हैं, जहां पर आपको पेड़-पौधे, घास, मिट्टी इत्यादि दिखाई देती हैं, लेकिन सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति पर कोई ठोस सतह ही नहीं है। वहां पर आप और हम कोई भी नहीं चल सकता है और न ही स्पेसक्राफ्ट के उतरने के लिए जगह है, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है। अगर बृहस्पति ग्रह के पास कोई ठोस सतह नहीं है तो फिर उसके पास है क्या?
भौतिकी के प्रोफेसर बेंजामिन रॉल्स्टन, जो सभी प्रकार की असामान्य घटनाओं का अध्ययन करते हैं, का मानना है कि सतह के बिना दुनिया की अवधारणा को समझना बेहद कठिन है। इसके बावजूद बृहस्पति ग्रह रहस्यों से भरा हुआ है। साउंस अलर्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति, मंगल और शनि के बीच मौजूद है। यह इतना विशाल है कि इसमें हजार से ज्यादा पृथ्वी समा सकती हैं, इसके बावजूद इसमें जगह शेष बची रहेगी।
उथल-पुथल वाला बृहस्पति
सौरमंडल के चार आतंरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल सभी ठोस चट्टानी पदार्थ से बने हैं, जबकि बृहस्पति एक गैसीव दावन के समान है जिसकी संरचना सूर्य के समान है। बृहस्पति गैस की एक उथल-पुथल, तूफानी, बेतहाशा अशांत गेंद है। बृहस्पति के कुछ क्षेत्रों पर 640 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलती हैं, जो पृथ्वी पर श्रेणी पांच के तूफान से लगभग तीन गुना ज्यादा तेज है।
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पृथ्वी के वायुमंडल से लगभग 100 किमी नीचे जाएं तो हवा का दबाव बढ़ता हुआ महसूस होगा। अंतत: आप पृथ्वी की सतह पर पहुंच जाते हैं, लेकिन बृहस्पति के मामले में ऐसा नहीं है। बृहस्पति के हाइड्रोजन और हीलियन वाले वायुमंडल से जितना गहराई की ओर जाएंगे तो लगातार दबाव को बढ़ता हुआ ही पाएंगे और समुद्र के तल पर होने का अहसास होगा, लेकिन आप पानी की बजाय गैस से घिरे होंगे। दबाव इतना ज्यादा बढ़ जाएगा कि मनुष्य का शरीर फट जाएगा।
बिना पानी वाला महासागर
बृहस्पति ग्रह के वायुमंडल से 1600 किमी नीचे जाएंगे तो गर्म, सघन गैस अजीबोगरीब ढंग से व्यवहार करेगी। गैस तरल हाइड्रोजन के रूप में बदल जाएगी जिसकी बदौलत सौरमंडल का सबसे बड़ा महासागर नजर आएगा, लेकिन यह बिना पानी वाला महासागर होगा।
बृहस्पति ग्रह
32000 किमी नीचे जाएंगे तो हाइड्रोजन बहते हुए तरल धातु की तरह महसूस होगी। अंतत: बृहस्पति का केंद्रीय हिस्सा नजर आएगा, परंतु इसे सतह समझने की गलती न करें। बता दें कि खगोलविदों के बीच अभी भी बृहस्पति के कोर की सामग्री की सटीक प्रकृति पर बहस छिड़ी हुई है। सबसे पसंदीदा मॉडल: यह चट्टान की तरह ठोस नहीं है, बल्कि तरल और ठोस का एक गर्म, सघन और संभवतः धातु मिश्रण जैसा है।
बृहस्पति के केंद्र पर दबाव इतना अधिक है कि आपको ऐसा महसूस होगा जैसे पृथ्वी के 10 करोड़ वायुमंडल आप पर दबाव डाल रहे हैं या तो आपके शरीर के प्रत्येक वर्ग इंच के ऊपर दो एम्पायर स्टेट इमारत मौजूद हैं, लेकिन दबाव एकमात्र समस्या नहीं होगी। बृहस्पति के केंद्र तक पहुंचने की कोशिश करने वाला स्पेसक्राफ्ट अत्यधिक गर्मी की वजह से पिछल जाएगा। वहां पर तापमान 20,000 डिग्री सेल्सियस यानी सूर्य की सतह से तीन गुना ज्यादा गर्म है।
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पृथ्वी के लिए मदद है बृहस्पति
बकौल रिपोर्ट, बृहस्पति एक अजीब और भयावह जगह है, लेकिन अगर बृहस्पति न होता तो शायद इंसान का अस्तित्व ही न होता। ऐसा इसलिए है, क्योंकि बृहस्पति पृथ्वी सहित सौरमंडल के आंतरिक ग्रहों के लिए एक ढाल के रूप में काम करता है। अपने विशाल गुरुत्वाकर्षण की वजह से बृहस्पति अरबों सालों से क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं की कक्षा को बदल देता है। अगर बृहस्पति अपनी जगह पर मौजूद नहीं होता तो अंतरिक्ष का कुछ-न-कुछ मलबा पृथ्वी से टकरा सकता था। सोचिए अगर कोई प्रलयकारी टक्कर होती तो हमारा और आपका अस्तित्व ही गायब हो जाता। जैसे डायनासोर पृथ्वी से विलुप्त हो गए।
हो सकता है कि बृहस्पति ने हमारे अस्तित्व को बचाए रखने में मदद की हो, लेकिन इस ग्रह में खुद कोई जीवन नहीं है। हालांकि, बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा के मामले में ऐसा नहीं है। संभवत: यूरोपा सौरमंडल में कहीं और जीवन खोजने का एक अच्छा मौका हो सकता है। हाल ही में नासा ने यूरोपा क्लिपर मिशन को लॉन्च किया है, जो यूरोपा के ऊपर लगभग 50 बार उड़ान भरेगा ताकि उसके महासागर का अध्ययन किया जा सके।
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