बंगाल के 20 वर्षीय 'शेर' ने हंसते-हंसते चूमा था फांसी का फंदा, अंतिम विदाई में लगा था समर्थकों का तांता

Kanailal Dutt: साल 1888 के आठवें महीने की 30 तारीख को बंगाल के हुगली में एक क्रांतिकारी का जन्म हुआ, जिसने मां भारती को आजाद कराने के इरादे संग खुद को झोंक दिया। उसको देखकर अंग्रेज भी कहते थे कि अगर भारत के पास उसके जैसे 100 क्रांतिकारी होते तो भारत को आजाद कराने में ज्यादा देरी नहीं होती।

कांतिलाल दत्त (प्रतीकात्मक तस्वीर)

मुख्य बातें
  • 1908 में कनाईलाल दत्ता को दी गई थी फांसी।
  • 20 साल की उम्र में हंसते-हंसते चूमा फांसी का फंदा।

Kanailal Dutt: 20 साल की ही तो उम्र थी, लेकिन बिना कुछ सोचे समझे उसने प्रण किया और मां भारती को आजाद कराने के इरादे संग खुद को झोंक दिया। इस जांबाज का नाम था कानाईलाल दत्त। फांसी के बाद अंग्रेज वार्डेन तक ने कहा था, “मैं पापी हूं जो कानाईलाल को फांसी चढ़ते देखता रहा। अगर उसके जैसे 100 क्रांतिकारी आपके पास हो जाएं तो आपको अपना लक्ष्य कर के भारत को आजाद करने में ज्यादा देर न लगे।”
10 नवंबर, 1908 को इस क्रांतिकारी युवा को फांसी दी गई। कानाईलाल के एक साथी मोतीलाल राय ने उनकी शहादत के 15 साल बाद एक पत्रिका में उस दृश्य का वर्णन किया जो कलकत्ता की सड़कों पर देखा। इसमें लिखा था- अर्थी अपने गंतव्य पर पहुंची और कानाईलाल के शरीर को चिता पर रखा गया:
“जैसे ही सावधानी से कंबल हटाया गया, हमने क्या देखा (तपस्वी कनाई की मनमोहक सुंदरता का वर्णन करने के लिए भाषा कम पड़ रही है) उसके लंबे बाल उसके चौड़े माथे पर एक साथ गिरे हुए थे, आधी बंद आंखें अभी भी उनींदेपन में थीं जैसे अमृत की परीक्षा से, दृढ़ संकल्प की जीवंत रेखाएं दृढ़ता से बंद होठों पर स्पष्ट दिखाई दे रही थीं, घुटनों तक पहुंचते हाथ मुट्ठियों में बंद थे। यह अद्भुत था! कनाई के अंगों पर कहीं भी हमें मृत्यु की पीड़ा को दर्शाने वाली कोई बदसूरत झुर्री नहीं मिली…।''
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