पहली बार कैसा बना था इत्र? क्या सिर्फ राजा-महाराजाओं के लिए होता था तैयार
Perfume History: इत्र तो आप सभी लगाते होंगे, लेकिन क्या आपको यह पता है कि इसका इतिहास लगभग 3,000 साल पुराना है। सबसे पहले राजा-महाराजाओं और उनके शाही परिवार के लिए इत्र बनाया जाता था। हालांकि, इत्रों का इस्तेमाल धार्मिक अनुष्ठानों में भी होता था। ऐसा माना जाता है कि तप्पुति बेलाट एकल्ले ने इत्र निर्माण का कार्य शुरू किया था और यह उन्हीं की देन है।
इत्र का इतिहास
मुख्य बातें
- शिलालेखों में मिलता है इत्र बनाने की प्रक्रिया का वर्णन
- बर्लिन के 'वोर्डरएशियाटिस संग्रहालय' में रखा है शिलालेख
- लगभग 3,000 साल पुराना है इत्र बनाने का इतिहास
Perfume History: अपने घरों से बाहर निकलने से पहले आप लोग अक्सर इत्र (Perfume) का इस्तेमाल जरूर करते होंगे। कुछ लोग तो इतने ज्यादा शौकीन होते हैं कि वह अलग-अलग तरीके के इत्र अपने पास रखते हैं और खास मौके पर इसका उपयोग करते हैं, लेकिन क्या आप लोगों को पता है कि इत्र बनाने का इतिहास लगभग 3,000 साल पुराना है और इसे तप्पुति बेलाट एकल्ले (Tapputi Belat Ekalle) की देन माना जाता है।
कौन थीं तप्पुति बेलाट एकल्ले?
तप्पुति को इतिहास की पहली कैमिस्ट (Chemist) यानि रसायनज्ञ भी कहा जाता है। इनके बारे में मध्य असीरियाई काल (1400-1000 ईसा पूर्व) के शिलालेखों से जानकारी मिलती है। शिलालेखों से पता चलता है कि तप्पुति मेसोपोटामिया, जिसे वर्तमान में इराक और ईरान के नाम से जाना जाता है, में महिला विशेषज्ञ इत्र निर्माताओं के एक समूह की नेता के तौर पर 'महल की देखरेख' की प्रभारी थीं।
तप्पुति सुगंध विज्ञान की विशेषज्ञ थीं और वह राजा और उनके शाही परिवार के लिए इत्र बनाती थीं। हालांकि, वह किस प्रकार के इत्र तैयार करती थीं, इसके बारे में बर्लिन के 'वोर्डरएशियाटिस संग्रहालय' में रखे गए शिलालेखों से पता चलता है।
इत्र का इतिहास
तस्वीर साभार : iStock
तप्पुति अपनी टीम के साथ मिलकर आवश्यक तेलों और इत्र को निकालने के लिए सुगंधित पदार्थों, औषधीय पौधों और फूलों का इस्तेमाल करते थे। बता दें कि इत्रों में फूल, फल, मीठी, मसालेदार, लकड़ी की महक और इसी तरह की अन्य सुंगध होती है। इत्र की सुगंध तैयार करने वाले विभिन्न रासायनिक अणुओं को वाष्पशील यौगिक के रूप में जाना जाता है। ये ऐसे यौगिक हैं, जो आसानी से वाष्पित हो जाते हैं। जब ये अणु गैस बन जाते हैं, तो आप इन्हें सूंघ पाते हैं।
अनोखी कला की होती है भूमिका
अपने पसंदीदी इत्र की महस सूंघने में जो एहसास होता है उसके पीछे बेहद अनोखी कला और कमेस्ट्री का योगदान है। तप्पुति के इत्र बनाने की विधि में वाष्पशील सुगंधित यौगिकों को निकालने और सांद्रित (Concentrat) करने की तकनीकों का वर्णन किया गया और आज के समय में भी रसायन विज्ञान की कई विधियों का इस्तेमाल किया जाता है। जिसमें इत्र, सौंदर्य प्रसाधन, दवाइयों या 'सप्लीमेंट्स' शामिल हैं।
वाष्पशील गंध यौगिकों को निकालने और सांद्रित करने की कुछ तकनीकों में गर्म भी किया जाता है। उदाहरण के लिए काढ़ा तैयार करने के लिए कच्चे माल को पानी जैसे विलायक के साथ लंबे समय तक उबाला जाता है। आसव (Infusion) की तकनीक के बारे में भी बताया गया। इसमें निकाले जाने वाले पदार्थ को चाय की तरह गर्म पानी में थोड़ी देर के लिए भिगोया जाता है।
क्या है मैसरेशन प्रक्रिया?
अन्य तकनीकें विलायक की निष्कर्षण शक्ति पर निर्भर करती हैं, जिसमें कच्चे माल को कमरे के तापमान पर लम्बे समय तक भिगोया जाता है और इस प्रक्रिया को ‘मैसरेशन (भिगोना)’ के नाम से जाना जाता है।
इत्र का इतिहास
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तप्पुति के इत्र बनाने की विधि में कच्चे माल को गर्म करने और ठंडा करने के बारे में भी बताया गया है, जो कि उस प्रक्रिया से मिलता-जुलता है जिसे आजकल हम आसवन (Distillation) कहते हैं। इस विधि में विभिन्न वाष्पशील गंध यौगिकों को एक दूसरे से अलग करने के लिए वाष्पीकरण और संघनन का उपयोग किया जाता है। द्रव अवस्था से गैसीय अवस्था में तथा गैस से द्रव अवस्था में यह रूपांतरण इस बात पर आधारित है कि यौगिक कितनी आसानी से तथा किस तापमान पर वाष्पित होते हैं। ये वही तकनीकें हैं, जो आज भी इत्र तैयार करने में उपयोग की जाती हैं, लेकिन अब ये अधिक कुशल हैं।
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क्या एक जैसी होती है सभी की नाक?
अगर तप्पुति का जन्म आधुनिक समय में हुआ होता तो वह शायद 'नोज' होतीं। 'नोज' शब्द का इस्तेमाल अत्यधिक कुशल सुगंध कलाकारों के लिए किया जाता है, जो रसायन विज्ञान और रचनात्मकता में निपुण होते हैं। प्रकृति की तरह ही इत्र में कई तरह के सुगंधित यौगिक होते हैं। इत्र बनाने का मतलब है, मिश्रण में कई वाष्पशील यौगिकों (Compounds) की परस्पर क्रिया और बोतलबंद करने के बाद उनकी स्थिरता का आकलन करना।
प्रतिभाशाली 'नोज' की विशेषज्ञता का उपयोग खाद्य, पेय और सौंदर्य प्रसाधन उद्योगों में संवेदी विश्लेषण में भी किया जाता है, जहां वे अध्ययन करते हैं कि कोई उत्पाद मानव शरीर की पांच इंद्रियों के माध्यम से कैसा महसूस होता है।
तप्पुति के दिनों में इत्रों का न केवल सौंदर्य प्रसाधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था, बल्कि इनका इस्तेमाल धार्मिक अनुष्ठानों में भी होता था। इत्रों को देवताओं के साथ एक अदृश्य संबंध बनाने के लिए उन्हें चढ़ाया जाता था।
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अनुराग गुप्ता author
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