क्या है क्लाउड सीडिंग? गर्मी और उमस के बीच जान लें बारिश का ये आर्टिफिशियल तरीका
Clowd Seeding: क्लाउड सीडिंग आर्टिफिशियल इंटिलिजेंस के जमाने में बारिश की मात्रा को बढ़ाने का एक नायाब तरीका है। देश में पहली बार आंध्र प्रदेश में इसका इस्तेमाल किया गया था। दुनियाभर के लगभग 60 देश इस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। इस तकनीक के जरिए बारिश की मात्रा को बढ़ावा दिया जा सकता है।
क्या है क्लाउड सीडिंग?
- देश में क्लाउड सीडिंग का पहली बार 1952 में हुआ था परीक्षण
- 1984 में आंध्र प्रदेश में पहली बार क्लाउड सीडिंग का हुआ था उपयोग
Clowd Seeding: दिल्ली एनसीआर में पिछले माह हुई महज एक दिन की बारिश ने कई रिकॉर्ड तोड़ दिए, पर गर्मी और उमस से राहत नहीं दिला पाई। हालांकि, मौसम विज्ञान विमाग (IMD) लगातार बारिश का पूर्वानुमान जारी कर रहा है। मौसम विभाग ने भारी बारिश के साथ ही बिजली चमकने और तेज हवाएं चलने की भविष्यवाणी की है और अगर ऐसा होता है तो उमस से काफी राहत मिल सकती है।
खैर, आर्टिफिशिल इंटेलिजेंस यानी एआई के दौर में भीषण गर्मी, सूखा, जंगल की आग इत्यादि के लिए बारिश का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। ऐसे में क्लाउड सीडिंग एक बढ़िया विकल्प माना जाता है। हालांकि, यूनाइटेड अरब अमीरात (UAE) के दुबई शहर में इसका दुष्प्रभाव भी देखने को मिला था तो चलिए क्लाउट सीडिंग के बारे में समझते हैं।
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क्या है क्लाउड सीडिंग?
क्लाउड सीडिंग दो शब्दों से मिलकर बना है। क्लाउड का मतलब बादल और सीडिंग का मतलब बीज बोना होता है यानि बादलों में बीज बोने की तकनीक को क्लाउड सीडिंग कहते हैं। क्लाउड सीडिंग को कृत्रिम वर्षा भी कहा जाता है। दरअसल, यह आर्टिफिशिल बारिश कराने का एक तरीका है। बता दें कि विमान की मदद से सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड और ड्राई आइस को बादलों में छोड़ा जाता है। इस तकनीक में हवा में सूक्ष्म कणों को बादलों के बहाव के साथ फैलाया जाता है जिसके बाद यह हवा के संपर्क में आते हैं।
हवा के संपर्क में आने के बाद सूक्ष्म कण हवा से नमी को सोखते हैं और द्रव्यमान को बढ़ा देते हैं। ऐसी स्थिति में बादलों में मोटी बूंदे बनती हैं जिसकी वजह से बदरा बरसने लगते हैं। आसान शब्दों में बताएं तो यह बादलों को जबरन बारिश के लिए प्रेरित करते हैं और ऐसी परिस्थितियां बनाई जाती हैं कि वातावरण बारिश के अनुकूल बन सके।
कब हुई थी क्लाउड सीडिंग की शुरुआत?
अमेरिका के न्यूयॉर्क में 1940 में क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन माना जाता है कि फरवरी 1947 में ऑस्ट्रेलिया के बाथुर्स्ट स्थित जनरल इलेक्ट्रिक लैब में इसकी शुरुआत हुई थी। इसके बाद चीन सहित अन्य देशों ने भी क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल किया।
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क्लाउड सीडिंग का कितने देशों में हो रहा इस्तेमाल?
40 के दशक में क्लाउड सीडिंग की शुरुआत के बाद से लगातार इसकी मांग बढ़ने लगी और देखते ही देखते आज 60 देश इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं।
पहली बार भारत में कब हुई क्लाउड सीडिंग?
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, शुरुआत के चंद साल बाद ही भारत में क्लाउड सीडिंग का परीक्षण किया गया था। साल 1952 की बात है जब देश में पहली बार क्लाउड सीडिंग तकनीक का परीक्षण हुआ था और आंध्र प्रदेश में 1984 में पहली बार इस तकनीक का इस्तेमाल किया गया था।
वायु प्रदूषण कम करने में मददगार
क्लाउड सीडिंग की बदौलत वातावरण में मौजूद प्रदूषण को कम किया जा सकता है। इसकी मदद से हवा में मौजूद धूल के कणों, धुंधा, धुंध इत्यादि को कम किया जा सकता है। सूखा ग्रस्त और कम वर्षा वाले इलाकों में क्लाउड सीडिंग की मदद से बारिश की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है।
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