क्या है शत्रु एजेंट अधिनियम 2005, जो आतंकियों की मदद करने वालों को पड़ेगा भारी
Enemy Agents Ordinance: आतंकियों की मदद करने वालों की अब खैर नहीं! दुश्मनों के एजेंट से अब सख्ती से निपटने की तैयारी हो चुकी है। पुलिस ने स्पष्ट कर दिया है कि शत्रु एजेंट अधिनियम के तहत आतंकियों की मदद करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। यह बेहद कठोर कानून है।
शत्रु एजेंट अधिनियम, 2005
मुख्य बातें
- UAPA से भी खतरनाक है शत्रु एजेंट अधिनियम।
- इसे एनिमी एजेंट ऑर्डिनेंस भी कहा जाता है।
- पहली बार साल 1917 यह अधिनियम लाया गया था।
Enemy Agents Ordinance: जम्मू-कश्मीर पुलिस ने आतंकियों की मदद करने वालों से सख्ती से निपटने का मेगा प्लान तैयार कर लिया है। अगर कोई व्यक्ति विदेशी आतंकवादियों का समर्थन करते हुए पाया गया या किसी प्रकार की कोई मदद मुहैया कराई तो उसके खिलाफ शत्रु एजेंट अधिनियम के तहत कार्रवाई होगी। यह बेहद खतरनाक कानून है इसके सामने तो गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) भी कुछ नहीं है।
मौत की सजा का प्रावधान
जम्मू कश्मीर के पुलिस महानिदेशक आरआर स्वैन ने कहा कि विदेशी आतंकवादियों का समर्थन करते पाए जाने वाले स्थानीय लोगों पर शत्रु एजेंट अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी, जिसमें न्यूनतम आजीवन कारावास या मौत की सजा का प्रावधान है। 1948 में पाकिस्तानी हमलावरों या आक्रमणकारियों का मुकाबला करने के लिए पेश किया गया यह अधिनियम यूएपीए से कहीं अधिक कठोर है।
क्या है शत्रु एजेंट अधिनियम, 2005?
शत्रु एजेंट अधिनियम 2005 या कहें एनिमी एजेंट ऑर्डिनेंस, जिसमें बेहद कठोर सजा का प्रावधान है। इस अधिनियम को पहली बार साल 1917 में लाने का श्रेय जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन डोगरा महाराज को जाता है। हालांकि, इस कानून को अध्यादेश भी कहा जाता है, क्योंकि डोगरा शासन के दौरान बनाए गए तमाम कानूनों को अध्यादेश ही कहा जाता था।
जम्मू-कश्मीर पुलिस
तस्वीर साभार : iStock
इस अध्यादेश में आतंकियों की मदद करने या उनके साथ मिलकर देश विरोधी साजिशों को रचने वाले एजेंट के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई का प्रावधान है। अगर दुश्मन भारतीय सेना के सैन्य या हवाई अभियानों में खलल पैदा करता है या आगजनी या मौतों के लिए जिम्मेदार है तो उसे मृत्युदंड या आजीवन कारावास या 10 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई जा सकती है। साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ेगा।
अनुच्छेद 370 निरस्त पर कुछ कानून हैं बरकरार
आजादी के बाद इस अध्यादेश को राज्य में न सिर्फ कानून के तौर शामिल किया गया, बल्कि इसमें संशोधन भी किए गए। साल 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त कर इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों का स्वरूप दे दिया गया। इसी के साथ ही राज्य के कई कानूनों में भी तब्दीली आई, लेकिन कुछ कानूनों को जस का तस बरकरार रखा गया। इनमें शत्रु एजेंट अधिनियम 2005 शामिल है।
कहां होगी सुनवाई?
डीजीपी आरआर स्वैन ने कहा कि शत्रु एजेंट अधिनियम के तहत गिरफ्तार लोगों के मुकदमे के लिए विशेष अदालतें स्थापित की जाएंगी। जिसका मतलब साफ है कि विशेष न्यायाधीश के समक्ष सुनवाई होगी, जिन्हें हाईकोर्ट की सलाह पर सरकार नियुक्ति करती है।
(एजेंसी इनपुट के साथ)
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अनुराग गुप्ता author
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