Voting Ink: कहां और कैसे बनती है वोटिंग वाली अमिट स्याही, महज 40 सेकेंड में लिखती है किस्मत
Voting Ink Name, Color, History: मतदान के दौरान आपके बाएं हांथ की तर्जनी उंगली पर लगने वाली अमिट स्याही से तो आप सब वाकिफ होंगे। लेकिन क्या आपने जानते हैं कि यह स्याही कहां और कैसे बनती है? इस स्याही में ऐसा क्या होता है जिससे यह मिटती नहीं है? यहां आप इससे जुड़े अपने हर सवाल का जवाब जान सकते हैं।

Voting Ink: क्या है वोटिंग वाली अमिट स्याही का इतिहास
Voting Ink Name, Color, History: मतदान से पहले मतदान अधिकारी आपके बाएं हांथ की तर्जनी उंगली पर एक स्याही (Voting Ink Name) लगाता है। जब आप इस स्याही को धोने की कोशिश करते हैं, तो यह किसी आम स्याही की तरह गायब होने के बजाए और भी गाढ़ी हो जाती है। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में आम चुनाव में इस स्याही का इस्तेमाल (Voting Ink Color) होता है। इस स्याही का मकसद वोटर्स की पहचान (Voting Ink Name History In Hindi) करना है। साथ ही एक वोटर एक से अधिक बार वोट ना डाल सके। इस अमिट स्याही को लोकतंत्र कि निशानी भी कहा जाता है।
इस समय लोकसभा चुनाव के दौरान लोग वोट डालने के बाद उंगली पर लगी स्याही के साथ सोशल मीडिया पर लोग जमकर अपनी फोटोज साझा कर रहे हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि, यह स्याही कहां और कैसे बनती है? इस स्याही में ऐसा क्या होता है जिससे यह मिटती नहीं। यहां आप वोटिंग वाली अमिट स्याही से जुड़े अपने हर सवाल का जवाब जान सकते हैं।
Voting Ink: क्यों मिटाने से भी नहीं मिटती स्याहीइस स्याही में सिल्वर नाइट्रेट होतो है, जो कि अल्ट्रा नाइट्रेट लाइट यानी सूर्य की रोशनी के संपर्क में आते ही त्वचा पर दाग छोड़ देता है। इसे मिटाना असंभव होता है। हालांकि समय के साथ यह धीरे-धीरे हल्का होता चला जाता है। एक रिपोर्ट की मानें तो स्याही में करीब 7 से 25 फीसदी सिल्वर नाइट्रेस होता है। यही कारण है कि स्याही का तुरंत मिटना असंभव होता है।
महज इतने सेकेंड में सूख जाती है स्याहीएपपीवीएल की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी की मानें तो चुनावी स्याही लगने के 40 सेकेंड के भीतर सूख जाती है। इसका रिएक्शन इतनी तेजी से होता है कि उंगली पर लगने के एक सेकेंड बाद यह अपनी छाप छोड़ देता है। यही कारण है कि आप किसी साबुन या केमिकल से इस स्याही को नहीं मिटा सकते हैं। हालांकि कई लोग दावा करते हैं कि कुछ खास केमिकल से वह इस स्याही को मिटा सकते हैं। लेकिन अभी तक इसका कोई पुख्ता सुबूत नहीं मिला है। साल 1962 से इस स्याही का प्रयोग किया जा रहा है। यह अमिट स्याही बीते कई दशकों से लोकतंत्र का इतिहास लिखती आ रही है।
कहां से आया अमिट स्याही का आइडियादुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के लिए 25 अक्टूबर 1951 का दिन बेहद खास था। इस दिन पहली बार लोकसभा चुनाव का आगाज हुआ। यह 21 फरवरी 1952 को खत्म हुआ। इस दौरान देश की कुल आबादी करीब 34 करोड़ थी और कुल वोटर्स की संख्या 17 करोड़ थी। हालांकि चुनाव के साथ ही इलेक्शन कमीशन के सामने बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई थी। यहां कई लोगों ने एक से अधिक बार अपने मत का प्रयोग किया।
इस समस्या का समाधान निकालने के लिए चुनाव आयोग ने सोचा कि क्यों ना मतदाता की उंगली पर स्याही से ऐसा निशान लगा दिया जाए, जिससे पहचान हो सके कि उसने मतदान कर दिया है। हालांकि समस्या यह थी यह स्याही अमिट होनी चाहिए, जो किसी भी केमिकल से ना मिटे। ऐसे में इलेक्शन कमीशन ने नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया (NPVL) से संपर्क किया। एनपीएल इस अमिट स्याही को बनाने के लिए तैयार हो गई। एनपीवीएल ने इस अमिट स्याही को बनाने का ऑर्डर मैसूर पेंट एंड वार्निश कंपनी को दिया।
यह कंपनी करती है स्याही का निर्माणइसके बाद से इस स्याही का निर्माण मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड कंपनी द्वारा किया जाता है। बता दें एमपीवीएल भारत में इस स्याही कीआपूर्ती करता है। इसके पास साल 1962 से राष्ट्रीय अनुसंधान विकास नियम की ओर से दिया गया विशेष लाइसेंस है। चुनाव में इस्तेमाल होने वाले इस स्याही का फॉर्मूलआ आज तक गुप्त रखा गया है।
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मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की नगरी अयोध्या का रहने वाला हूं। लिखने-पढ़ने का शौकीन, राजनीति और शिक्षा से जुड़े मुद्दों में विशेष रुचि। साथ ही हेल्...और देखें

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