कौन थे स्वामी विवेकानंद के छोटे भाई भूपेंद्रनाथ दत्त, जिन्होंने हिला दी थी अंग्रेजी हुकूमत की नींव
Bhupendranath Datta: स्वामी विवेकानंद के छोटे भाई डॉ भूपेंद्रनाथ दत्त ने अंग्रेजी शासन की नींव हिला डाली थी। उन्होंने पत्रिका में एक लेख लिखा था, जिससे अंग्रेज भड़क उठे और उन्हें गिरफ्तार कर एक साल तक जेल में डाल दिया। इसके बाद उन्होंने फिर से अंग्रेज के खिलाफ नारा बुलंद किया।



फाइल फोटो।
- युगांतर पत्रिका में बने थे संपादक।
- अंग्रेज के खिलाफ लिखा था लेख।
- कांग्रेस में कई साल तक रहे सक्रिय।
Bhupendranath Datta: स्वामी विवेकानंद को कौन नहीं जानता है। उन्होंने पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ी है, लेकिन क्या आपको स्वामी विवेकानंद के सबसे छोटे भाई डॉ भूपेंद्रनाथ दत्त के बारे में जानकारी है। डॉ भूपेंद्रनाथ दत्त देश को आजादी दिलाने में सक्रिय रूप से शामिल थे। इसके लिए वह जेल भी गए और कठोर कारावास की सजा भी काटे। आइए, हम उनके बारे में जानते हैं कि कौन थे डॉ भूपेंद्रनाथ दत्त, जिन्हें एक लेख की वजह से अंग्रेज ने जेल में डाल दिया था।
कौन थे भूपेंद्रनाथ दत्त?
डॉ भूपेंद्रनाथ दत्त का जन्म चार सितंबर 1880 को हुआ था। वह स्वामी विवेकानंद से 17 साल छोटे थे। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई ईश्वर चंद्र विद्यासागर द्वारा स्थापित मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन में पूरी की। इस दौरान वह ब्रह्म समाज से जुड़े थे। यहां से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद भूपेंद्र नाथ दत्त ने एमए की पढ़ाई के लिए अमेरिका को चुना। इसके बाद पीएचडी के लिए जर्मनी गए। इस वक्त तक स्वामी विवेकानंद पूरी दुनिया में प्रसिद्धि पा चुके थे।
छुआछूत के खिलाफ लड़े थे लड़ाई
अपनी पीएचडी की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ भूपेंद्रनाथ दत्त ने छुआछूत को लेकर अपनी लड़ाई शुरू कर दी। उन्होंने अनुशीलन समिति के नेतृत्व में छुआछूत के खिलाफ आंदोलन को धार दिया। इस दौरान वह काफी सक्रिय रहे। वहीं, वह कुछ समय बाद 'युगांतर पत्रिका' के संपादक बने। युगांतर पत्रिका बांग्ला भाषी पत्रिका है। इस पत्रिका की स्थापना बारीन्द्र कुमार घोष, अविनाश भट्टाचार्य और भूपेंद्रनाथ दत्त ने मिलकर की थी।
अंग्रेज ने जेल में क्यों डाला था?
भारत में अंग्रेज के खिलाफ आंदोलन तेज रहा था, तभी वर्ष 1905 में लॉर्ड कर्जन ने बंगाल को बांटने का फैसला किया। इससे पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ मार्च निकलने लगे। जगह-जगह आंदोलन होने लगे। लोगों ने विदेशी सामानों को बहिष्कार करने का फैसला कर लिया। इसी दौरान भूपेंद्रनाथ दत्त ने युगांतर पत्रिका में एक लेख लिखा, जिस लेख की वजह से उन्हें जेल जाना पड़ा था।
आखिर भूपेंद्रनाथ ने क्या लिखा था?
बता दें कि डॉ भूपेंद्रनाथ दत्त ने अपनी पत्रिका में लिखा था, 'अंग्रेज इस तरह नहीं मानने वाले हैं। जब तक ईंट का जवाब ईंट से और लाठी का जवाब लाठी से नहीं देंगे, तब तक अंग्रेज अत्याचार करते ही रहेंगे।' इस क्रांतिकारी लेख की वजह से अंग्रेज उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट निकाल दिया और 1907 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेज ने उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाया और उन्हें एक साल की सजा सुनाई गई। डॉ भूपेंद्रनाथ दत्त ने खुद ही अदालत में स्वीकार कर लिया कि मैंने ही लेख लिखा था।
कांग्रेस में कई साल तक रहे सक्रिय
जेल से निकलने के बाद भूपेंद्रनाथ दत्त अमेरिका चले गए। इस दौरान उनके कई साथी जेल जा चुके थे। इसके बाद वह गदर पार्टी का कामकाज देखने लगे। गदर पार्टी की स्थापना 1913 में हुई थी। इस दौरान डॉ भूपेंद्रनाथ दत्त अमेरिका के बाद फिर से जर्मनी गए। हालांकि, वह 1925 में भारत वापस आए। भारत आने के बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए। 1929 में वह अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य बने। कांग्रेस में वह काफी सक्रिय सदस्य रहे। वह 1937 से 1940 तक दो बार बंगाल कृषक सभा के अध्यक्ष चुने गए। साथ ही दो बार अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रमुख भी चुने गए।
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