महा कुंभ 2025
संगम नगरी प्रयागराज में साल 2025 में महा कुंभ का आयोजन हो रहा है। इसे आस्था का कुंभ भी कहते हैं और यह दुनिया का सबसे बड़ा सार्वजनिक व आस्था का सामूहिक आयोजन है। कुंभ मेले का आयोजन सनातन हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताओं और कथाओं के अनुसार होता है। सनातन हिंदू धर्म में कुंभ मेले की बड़ी मान्यता है और 12 साल के समय में चार बार कुंभ मेले का आयोजन होता है। देशभर में चार अलग-अलग जगहों पर बारी-बारी से कुंभ मेले का आयोजन होता है। इस तरह से लगभग हर चार साल में इनमें से किसी न किसी जगह पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। जिस नदी के तट पर कुंभ मेले का आयोजन हो रहा है, उस पवित्र नदी में स्नान की परंपरा है।
कुंभ मेले के दौरान ऐसे-ऐसे साधु-संत भी शाही या राजसी स्नान के लिए आते हैं, जो आमतौर पर एकांत में रहते हैं। वह आध्यात्मिक अनुशासन के साथ ही जीवन में सख्त मार्ग का पालन करते हैं। यह साधु सिर्फ कुंभ के दौरान ही आम लोगों के बीच आते हैं। इस दौरान कई तरह के समारोह होते हैं, जिसमें हाथी, घोड़े और रथ पर अखाड़ों के पारंपरिक जुलूस निकलते हैं, जिन्हें पेशवाई कहा जाता है। शाही स्नान या राजसी स्नान के दौरान नागा साधु चमचमाती तलवारें भी लहराते हैं और कई तरह के अनुष्ठान करते हैं, जो महा कुंभ मेले में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं।
कितने दिन तक चलेगा प्रयागराज महा कुंभ
साल 2025 में प्रयागराज में लगने वाला महाकुंभ कुल 33 दिन तक चलेगा। इस दौरान कई धार्मिक आयोजन और शाही स्नान होंगे। महा कुंभ की शुरुआत 13 जनवरी को होगी और 26 फरवरी तक महा कुंभ चलेगा। 13 जनवरी को 2.26 बजे तक पूर्णिमा है, जबकि इसके बाद 8.47 बजे तक पुनर्वसु तिथि है।
देश में कहां-कहां लगता है कुंभ मेला
महा कुंभ 2025 का आयोजन संगम नगरी प्रयागराज में हो रहा है। 2025 में महा कुंभ का आयोजन गंगा-यमुना और सरस्वती नदी के संगम पर लग रहा है। जैसा कि हमने ऊपर बताया 12 साल के समय में इन चारों जगहों पर बारी-बारी से कुंभ का आयोजन होता है। किसी भी एक जगह पर 12 साल बाद ही कुंभ मेले का आयोजन होता है। यानी प्रयागराज में साल 2025 में लगने वाले महा कुंभ के बाद अब अगला कुंभ मेला 2037 में लगेगा, लेकिन इस दौरान तीन अन्य जगहों पर तीन बार कुंभ मेला लग चुका होगा। चलिए जानते हैं देश में किन चार जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।
उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा तट पर
- मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर
- महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के तट पर
- उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा-यमुना और सरस्वती के संगम पर
कुंभ और महा कुंभ की गुत्थी
जैसा कि हमने ऊपर बताया, कुंभ मेले का आयोजन 12 साल में होता है। देश में चार जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। इस तरह से लगभग हर चार साल में चारों में से किसी न किसी एक जगह पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। लेकिन 2025 महा कुंभ को लेकर लोगों में असमंजस ये है कि इसे कुंभ कहने की बजाय महा कुंभ क्यों कहा जा रहा है? हर 12 वर्ष में कुंभ मेला होता है, लेकिन 144 साल में महा कुंभ का आयोजन होता है। इसे शताब्दी कुंभ कहा जाता है। ज्योतिषाचार्य सुजीत जी महाराज के अनुसार हिंदू धर्म में 9 का बड़ा महत्व है। उन्होंने बताया कि इस दौरान कई अदृश्य आत्माएं कुंभ स्नान के लिए आएंगी। इस महा कुंभ को हिंदू उत्थान और राष्ट्र उत्थान के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। महा कुंभ 144 साल में एक बार प्रयागराज में लगता है। 2025 के बाद अगला महा कुंभ 2100 के बाद ही लगेगा। हालांकि, हर 12 साल में कुंभ मेले का आयोजन होता रहेगा।
शाही स्नान कब?
शाही स्नान का नाम बदलकर अब राजसी स्नान किया गया है। मुख्य रूप से तपस्वी, संत, साधु, साध्वियां, कल्पवासियों के साथ ही आम श्रद्धालु भी कुंभ के अवसर पर पवित्र नदी में डुबकी लगते हैं। शाही स्नान या राजसी स्नान का विशेष महत्व है, जिसमें तमाम अखाड़े भाग लेते हैं। महा कुंभ 2025 की शुरुआत 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा से हो रही है। 33 दिन के महा कुंभ के दौरान कितने शाही या राजसी स्नान होंगे उनकी लिस्ट यहां दी गई है -- 14 जनवरी 2025 - मकर संक्रांति
- 29 जनवरी 2025 - मौनी अमावस्या
- 3 फरवरी 2025 - बसंत पंचमी
- 12 फरवरी 2025 - माघी पूर्णिमा
- 26 फरवरी 2025 - महाशिवरात्रि
कुल कितने अखाड़े
देशभर के संत संप्रदाय के लोग अलग-अलग अखाड़ों से जुड़े हैं। इसमें मुख्य रूप से तीन तरह के अखाड़े होते हैं। शैव संन्यासी संप्रदाय, बैरागी वैष्णव संप्रदाय और उदासीन संप्रदाय। इन तीन तरह के अखाड़ों के अंदर भी कई अखाड़े होते हैं। शैव संन्यासी संप्रदाय के कुल 7 अखाड़े हैं, जबकि बैरागी वैष्णव संप्रदाय के अंतर्गत 3 अखाड़े आते हैं। उदासीन संप्रदाय के अंदर भी तीन ही अखाड़े आते हैं। चलिए सभी के नाम जानते हैं।
- शैव संन्यासी संप्रदाय के अखाड़े
- श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी
- श्री पंच अटल अखाड़ा
- श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी
- श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती
- श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा
- श्री पंचदशनाम आह्वान अखाड़ा
- श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा
- वैरागी वैष्णव संप्रदाय के अखाड़े
- श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा
- श्री निर्वाणी अखाड़ा
- श्री पंच निर्मोही अनीअखाड़ा
- उदासीन संप्रदाय के अखाड़े
- श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा
- श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़ा
- श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा
कब और क्यों होता है कुंभ मेले का आयोजन
सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की स्थिति के आधार पर ही कुंभ मेले का आयोजन होता है। चारों जगहों पर बारी-बारी से लगभग हर चार साल बाद इस कुंभ का आयोजन किया जाता है। कुंभ मेले की तारीखें तय करने के लिए सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की राशियों का विशेष संयोजन देखा जाता है। चलिए जानते हैं राशियों के किस संयोजन में चारों में से किस स्थान पर कुंभ मेले का आयोजन होता है -
प्रयागराज में कुंभ
जब बृहस्पति, वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं, तब प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन होता है। साल 2025 में यही स्थिति बन रही है, इसलिए 2025 में प्रयागराज में महा कुंभ का आयोजन हो रहा है। 2025 के बाद 12 साल बाद जब फिर से यही संयोजन बनेगा, तब फिर से प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन होगा।
हरिद्वार में कुंभ
बृहस्पति जब कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तब हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। हरिद्वार में साल 2021 में जब ग्रहों की यह स्थिति बनी थी तब कुंभ मेले का आयोजन हुआ था।
उज्जैन में कुंभ
मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर भी कुंभ का आयोजन होता है। जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं, तब उज्जैन में कुंभ मेले का आयोजन होता है। यहां पिछली बार कुंभ का आयोजन साल 2016 में हुआ था और अगला कुंभ मेला 2028 में आयोजित होगा।
नासिक में कुंभ
महाराष्ट्र में गोदावरी नदी के तट पर भी कुंभ का आयोजन होता है। जब सूर्य और बृहस्पति दोनों सिंह राशि में होते हैं, तब नासिक में कुंभ मेला लगता है। यहां पिछला कुंभ साल 2015 में आयोजित हुआ था, जबकि 2027 में अगला कुंभ मेला लगेगा।
कुंभ से जुड़ी धार्मिक कहानी
कुंभ की पौराणिक कथा सनातन हिंदू सभ्यता की समुद्र मंथन से जुड़ी कहानी है। कहानी के अनुसार देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया और इस दौरान समुद्र से निकले रत्नों को आपस में बांटने का फैसला लिया गया। सभी रत्नों को देवताओं और राक्षसों ने आपस में बांट लिया, लेकिन अमृत को लेकर दोनों पक्षों के बीच युद्ध छिड़ गया। असुर अमृतपान न कर लें इसलिए भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन से निकले अमृत पात्र को अपने वाहन गरुड़ को दे दिया। असुरों ने गरुड़ से अमृत कुंभ छीनने का प्रयास किया, इसी झीना-झपटी में अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिर गईं। अमृत कुंभ से अमृत की बूंदें इन जगहों पर गिरीं, इसलिए इन चारों जगहों पर हर 12 वर्ष में कुंभ मेले का आयोजन होता है।
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