Adam Gondvi Shayari: उतरा है रामराज विधायक निवास में.., पढ़ें अदम गोंडवी के 21 आग उगलते शेर
Adam Gondvi Poetry: अदम गोंडवी ने अपनी शायरी के लिए रूमानियत, महबूब या मोबब्बत को नहीं चुना। उनकी शायरी में बगावत होती थी। जब वह शेर पढ़ते तो लगता कि अभी वो सारी व्यवस्था बदल देना चाहते हैं। 'इरशाद' के आज के अंक में पढ़ेंगे अदम गोंडवी के आग उगलते शेर:
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Adam Gondvi Poetry, Ghazal, Shayari in Hindi: अदम गोंडवी का असली नाम रामनाथ सिंह था। दुष्यंत कुमार ने अपनी शायरी से जिस नयी राजनीति की शुरुआत की थी, अदम ने उसे उस मुकाम तक पहुंचाया। अदम गोंडवी ने अपने गीत और जगलों में सीधे समाज और सरकार को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने अपनी शायरी के लिए रूमानियत या फिर इश्क और मोबब्बत को नहीं चुना। उनकी शायरी में बगावत होती थी। जब वह शेर पढ़ते तो लगता कि अभी वो सारी व्यवस्था बदल देंगे। उनके लिखे शेर कुर्सी वालों को नश्तर की तरह चुभते होंगे। अदम गोंडवी के तमाम शेर सबसे पिछली पंक्ति के गरीब और शोषितों का मजबूत हथियार भी बनीं। आइए डालते हैं अदम गोंडवी के कुछ मशहूर शेर:
ढो रहा है आदमी काँधे पे ख़ुद अपनी सलीब
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा जब बोझ ढोना हो गया
न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से
तमद्दुन में निखार आता है घीसू के पसीने से
जो बदल सकती है इस पुलिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये
यक्ष प्रश्नों में उलझ कर रह गई बूढ़ी सदी
ये परीक्षा की घड़ी है क्या हमारे व्यास की?
छा गई है जेहन की परतों पर मायूसी की धूप
आदमी गिरती हुई दीवार के साये में है
वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
बज़ाहिर प्यार की दुनिया में जो नाकाम होता है
कोई रूसो कोई हिटलर कोई खय्याम होता है
चार दिन फुटपाथ के साये में रहकर देखिए
डूबना आसान है आँखों के सागर में जनाब
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये
छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये
बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को,
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को
भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो
चाँद है ज़ेरे क़दम सूरज खिलौना हो गया
हाँ, मगर इस दौर में क़िरदार बौना हो गया
काजू भुने पलेट में व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
जो अक्स उभरता है रसख़ान की नज्मों में
क्या कृष्ण की वो मोहक तस्वीर बदल दोगे ?
जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये
आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा देखिये
मुक्तिकामी चेतना अभ्यर्थना इतिहास की
यह समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की
बेबसी का इक समंदर दूर तक फैला हुआ
और कश्ती कागजी पतवार के साये में है
उम्मीद है आपको अदम गोंडवी के ये शेर जरूर पसंद आए होंगे। अगर आपको उनकी ये शायरी पसंद आई हो तो आप इन्हें अपने सोशल मीडिया अकाउंट से भी शेयर कर सकते हैं।
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Suneet Singh author
मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया क...और देखें
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