Ae mere watan ke logo: सिगरेट के पैकेट और उधार की पेन से बना वो गीत बन गया देशप्रेम का नारा, रो पड़े थे प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू

Ae mere watan ke logo (ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी): 1962 में चीन से हार के दो महीने बाद 26 जनवरी के अगले दिन यानी 27 जनवरी को दिल्ली में एक चैरिटी शो रखा गया। इस शो में देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को शामिल होना था। आयोजकों ने प्रदीप से कहा कि इस कार्यक्रम के लिए आप कोई जोश से भरा देशभक्ति गीत लिख दीजिए। उनके आग्रह पर प्रदीप ने उन्हीं चंद लाइनों से पूरा गीता बना लिया जो उन्होंने समुंदर किनारे टहलते हुए लिखी थी। गीत का मुखड़ा था- ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी।

Ae Mere Watan ke logo lyrics in Hindi text (ऐ मेरे वतन के लोगों लिरिक्स इन हिंदी)

Ae Mere watan ke logon Song: बात आजादी के जश्न की या फिर देश के लिए अपने प्राण लुटा देने वालों शहीदों की, एक गीत है जो ऐसे मौकों पर हिंदुस्तान की फिज़ाओं में जरूर गूंजता है। यह गीत देशभक्ति का प्रतीक बन चुका है। बदलते वक़्त के साथ भी इस गीत की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। यह ऐसा बेशक़ीमती गीत है जो हर हिंदुस्तानी को वतन के प्रति अपनी मोहब्बत का इज़हार करने के लिए अल्फ़ाज़ देता है। इस गीत को सुनकर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आंखें भी नम हो गई थीं। खुद गाते हुए लता मंगेशकर का गला भी रूंध गया था। हम जिस देशभक्ति गीत की बात कर रहे हैं उसके बोल हैं- ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा याद करो कुर्बानी..।

इस कालजयी गीत को शब्द दिये थे मशहूर कवि प्रदीप ने। इस गीत में देशभक्ति है तो उन शहीदों के लिए श्रद्धांजलि भी है जो सीमा पर वतन की हिफाजत के लिए शहीद हो गए। इस गीत में एक ऐसा जादू है कि जब भी सुनें ये सीधे दिल तक पहुंचती है। हर बार यह गीत सुनने वालों के रोंगटे खड़े कर देता है। यह गीत पहली बार 1963 में गणतंत्र दिवस से जुड़े एक कार्यक्रम में लता मंगेशकर ने गाया था। गीत को संगीत से सजाया था अपने जमाने के दिग्गज संगीतकार सी रामचंद्रन। अब जब देश पर गणतंत्र दिवस का रंग चढ़ चुका है तो के एक बार 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाने की यादें ताजा हो गई हैं।

कैसे बना था 'ऐ मेरे वतन के लोगों'

कवि प्रदीप ने साल 1990 में बीबीसी को एक इंटरव्यू दिया था। उस इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि यह गाना कैसे बना था। पूरा मामला साल 1962 का है। चीन के साथ युद्ध में भारत की बुरी हार हुई थी। इससे पूरे देश का मनोबल बुरी तरह टूट गया था। कवि प्रदीप एक शाम मुंबई में माहिम में सागर के किनारे टहल रहे थे। उनके मन में चीन से शिकस्त को लेकर कई तरह के ख्याल उमड़ रहे थे। तभी उनके दिमाग में कुछ ऐसा सूझा कि उन्होंने उसे कागज पर उतारना चाहा। लेकिन तब ना तो उनके पास कलम थी और ना ही कागज। प्रदीप ने वहीं टहल रहे एक शख्स से कलम मांगी और अपनी जेब से सिगरेट का डिब्बा निकाल लिया। सिगरेट के पैकेट में जो पॉयल होता है उसे निकाला और उस पर कुछ लाइनें लिख लीं ताकि वह भूल ना जाएं।

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