Atal Ji Prerak Prasang: कुछ दुश्मन को चले चिढा दें, पत्थरों में भी जान फूंक देंगे अटल जी की ये प्रेरक प्रसंग, यहां पढ़ें
Atal Ji Prerak Prasang: अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि 16 अगस्त को उन्हें श्रद्धांजलि देने का दिन है। ऐसे में जब आज उनकी पुण्यतिथी मनाई जा रही है तो यहां पढ़ें उनके कुछ प्रेरक प्रसंग।
Atal Ji Prerak Prasang
Atal Ji Prerak Prasang: भारत रत्न और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज पुण्यतिथि है। उनकी पुण्यतिथि 16 अगस्त को उन्हें श्रद्धांजलि देने का दिन है। अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था। वो तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे। उनकी गिनती देश के कद्दवार नेताओं में की जाती थी। साल 2015 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। अटल बिहारी की मृत्यु 16 अगस्त 2018 में हुई थी। वो एक कद्दवार नेता होने के साथ साथ एक कवि भी थे। ऐसे में उनकी पुण्यतिथि पर आज हम कुछ प्रेरक प्रसंग लेकर आए हैं। यहां पढ़ें अटल बिहारी वाजपेयी के प्रेरक प्रसंग।
अटल बिहारी वाजपेयी के प्रेरक प्रसंग - Atal Bihari Vajpayee Prerak Prasang
कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पांवों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों से हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
हास्य-रुदन में, तूफानों में,
अमर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
उजियारे में, अंधकार में,
कल कछार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को दलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अमर ध्येय पथ,
प्रगति चिरन्तन कैसा इति अथ,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
कुश कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वञ्चित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुवन,
पर-हति अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूँ
गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा,
रार नई ठानूँगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
मैं न चुप हूँ न गाता हूँ
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ
सवेरा है मगर पूरब दिशा में
घिर रहे बादल
रूई से धुंधलके में
मील के पत्थर पड़े घायल
ठिठके पाँव
ओझल गाँव
जड़ता है न गतिमयता
स्वयं को दूसरों की दृष्टि से
मैं देख पाता हूं
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ
समय की सदर साँसों ने
चिनारों को झुलस डाला,
मगर हिमपात को देती
चुनौती एक दुर्ममाला,
बिखरे नीड़,
विहँसे चीड़,
आँसू हैं न मुस्कानें,
हिमानी झील के तट पर
अकेला गुनगुनाता हूँ।
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ
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Ritu raj author
शुरुआती शिक्षा बिहार के मुजफ्फरपुर से हुई। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन पूरा ...और देखें
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