Atal Bihari Vajpayee's poems: अपनी इन कविताओं से अटल बिहारी वाजपेयी ने बताया जीवन का सार

Atal Bihari Vajpayee Ji's birthday: भारत के प्रधानमंत्री रहे भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती हर साल 25 दिसंबर को मनाई जाती है। इन्‍हें जितनी पहचान राजनीति से मिली, उतनी ही पहचान इनके भाषण शैली और लेखनी से भी मिली। अटल बिहारी वाजपेयी मशहूर कवि भी रहे। उनकी कविताओं में जीवन के संघर्ष और सच्‍चाई की झलक मिलती है।

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भारत रत्‍न वाजपेयी की इन कवितओं में मिलती है छुपा है जीवन का सार

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • अटल बिहारी वाजपेयी तीन बर रहे थे भारत के प्रधानमंत्री
  • इनकी जयंती को सुशासन दिवस के तौर पर मनाया जाता है
  • अटल बिहारी वाजपेयी मशहूर कवि और लेखक भी रहे

Atal Bihari Vajpayee Ji's birthday: भारत के तीन बार प्रधानमंत्री रहे भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती हर साल 25 दिसंबर को धूमधाम से मनाया जाता है। भारत सरकार द्वारा इस दिन को सुशासन दिवस घोषित किया गया है। इन्‍हें जितनी पहचान राजनीति से मिली, उतनी ही पहचान भाषण शैली और लेखनी से भी मिली। अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि वह पत्रकार के तौर पर करियर बनना चाहते थे, भूलवश राजनीति में आ गए। अटल बिहारी वाजपेयी मशहूर कवि भी रहे। आज हम आपको उनकी कुछ ऐसी खास कविताओं के रूबरू कराएंगे, जिसमें जीवन का सार छुपा है।

गीत नहीं गाता हूं

बेनकाब चेहरे हैं,

दाग बड़े गहरे हैं

टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं

गीत नहीं गाता हूं

लगी कुछ ऐसी नजर

बिखरा शीशे सा शहर

अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं

गीत नहीं गाता हूं

पीठ मे छुरी सा चांद

राहू गया रेखा फांद

मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं

गीत नहीं गाता हूं

गीत नया गाता हूं

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर

पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर

झरे सब पीले पात

कोयल की कुहुक रात

प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं

गीत नया गाता हूं

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी

अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी

हार नहीं मानूंगा,

रार नई ठानूंगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं

गीत नया गाता हूं

मैं न चुप हूं न गाता हूं

न मैं चुप हूं न गाता हूं

सवेरा है मगर पूरब दिशा में

घिर रहे बादल

रूई से धुंधलके में

मील के पत्थर पड़े घायल

ठिठके पांव

ओझल गांव

जड़ता है न गतिमयता

स्वयं को दूसरों की दृष्टि से

मैं देख पाता हूं

न मैं चुप हूं न गाता हूं

समय की सदर सांसों ने

चिनारों को झुलस डाला,

मगर हिमपात को देती

चुनौती एक दुर्ममाला,

बिखरे नीड़,

विहंसे चीड़,

आंसू हैं न मुस्कानें,

हिमानी झील के तट पर

अकेला गुनगुनाता हूं।

न मैं चुप हूं न गाता हूं

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कौरव कौन, कौन पांडव

कौरव कौन, कौन पांडव, टेढ़ा सवाल है|

दोनों ओर शकुनि का फैला कूटजाल है|

धर्मराज ने छोड़ी नहीं जुए की लत है|

हर पंचायत में पांचाली अपमानित है|

बिना कृष्ण के आज महाभारत होना है,

कोई राजा बने, रंक को तो

अटल बिहारी वाजपेयी की कविताएं जीवन में बहुत कुछ सीखा देती हैं, उनकी कविताओं में जीवन के संघर्ष और सच्‍चाई की झलक मिलती है।

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