कोलकाता डॉक्टर केस: कब बंद होगी ये हैवानियत, कैसे सुधरेगा ये स‍िस्‍टम

हम ऐसा क्या करें कि फिर से कोई हैवान आत्मा को झकझोर देने वाली ऐसी घटना को अंजाम ना दे पाए?

Kolkata Doctor case

O-Zone

कोलकाता डॉक्टर रेप और मर्डर केस में जो हैवानियत सामने आई है, हम में से अधिकांश लोग तो उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। पूरी मानवता को शर्मसार कर देने वाली ऐसी दरिंदगी समझ से परे है और किसी को भी झकझोर कर रख देने वाली है। ऐसे घृणित अपराध हमें इंसानी स्वभाव के सबसे गंदे और घिनौने रूप से रूबरू होने के लिए मजबूर करते हैं। क्या यह सच है? क्या ऐसा सही में हुआ है? क्या कोई इंसान ऐसी हैवानियत भी कर सकता है? ऐसा काम करने वालों के अंदर कौन सा शैतान बसता होगा? क्या उन्हें अपने कुकर्मों पर पछतावा होता होगा? क्या बाद में वह अपनी नीचता के लिए खुद को कोसते होंगे?
जब वह उस लड़की के साथ ये सब कर रहे थे तब भी क्या वह इंसान थे, क्योंकि ये तो पक्का है कि उनके अंदर उस वक्त इंसानियत पूरी तरह खत्म हो गई होगी। वो भूल गए होंगे कि उन्हें इस समाज से कितना प्यार और दया मिली है। वो हर वो अच्छी चीज भूल गए होंगे जो उनके साथ हुई होगी। उन्होंने जितनी प्रार्थनाएं की हैं या सुनी हैं, वो सब भूल गए होंगे।
जब वो उस अपराध को अंजाम दे रहे थे तब क्या वो इंसान थे, क्योंकि निश्चित रूप से उन क्षणों में उनकी सारी इंसानियत मर घई होगी। वे भूल गए होंगे कि उन्हें अब तक कितना प्यार या दया मिली, हर अच्छी चीज़ जो उनके पास आई, हर प्रार्थना जो उन्होंने कभी सुनी या कही। ये तो तय है कि उन्होंने ईश्वर में विश्वास छोड़ दिया होगा। साथ ही अपने साथ होने वाले किसी भी अच्छाई की उम्मीद भी छोड़ दी होगी। क्योंकि उन्होंने अपनी हैवानियत से ना सिर्फ एक प्यारी सी नौजवान लौ को बुझा दिया बल्कि खुद को हर उस अच्छाई, प्यार, दयालुता, आशीष या आशीर्वाद से भी अलग कर लिया, जो कभी उनको मिल सकती थी। उन्होंने अपनी आत्मा को नष्ट कर दिया।
क्या वह उनके लिए इंसान रही होगी या उन दरिंदों ने महिलाओं को इस कदर एक सामान की तरह समझ लिया कि अभया, जैसा कि लोग उसे नाम दे रहे हैं, उन्हे सिर्फ एक वस्तु मात्र लगी, जिसे इस्तेमाल किया, जोर दिखाया और अपनी दरिंदगी की आंच में उसे खत्म कर दिया? जब वह उस घिनौने अपराध को अंजाम दे रहे थे तब क्या उनके मन में एक सेकेंड के लिए भी उस युवा डॉक्टर के घरवालों का ख्याल नहीं आया? या क्या उन्होंने खुद के अपने मां-बाप या जो भी उनसे प्यार करते हैं उनके बारे में नहीं सोचा? माफ कीजिएगा प्यार करने वाले नहीं, ऐसे दरिंदों से कौन प्यार कर सकता है भला.. संभव ही नहीं है। अगर कोई करता होगा तो प्यार, मानवता और न्याय पर मैं भरोसा नहीं कर पाऊंगी।
मुझे एक बात अच्छी तरह पता है। जब कोई इस हद तक वहशी और दानव बन जाए, जब वह इस जीवन के पवित्रता को या सामने वाले की गरिमा और पहचान को भूल जाए, तो इसका मतलब है क‍ि वह पहले ही मर चुका है और एक शैतानी शरीर में सिर्फ शून्य की तरह पड़ा हुआ है। तो जब वह पहले ही मर चुके हैं तो ऐसे अमानवीय शवों को तत्काल फांसी पर लटका क्यों नहीं दिया जाता।
सालों की कड़ी मेहनत और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद एक नए जीवन के शिखर पर खड़ी अपनी नौजवान बेटी को खोना असहनीय तो है ही, लेकिन उसके साथ जो कुछ हुआ वह जान कर जीने की कल्पना करना भी मुश्किल है। हर कोई ऐसे वक्त में अभया के माता-पिता के दुख में साथ खड़ा है, लेकिन यह काफी नहीं है। देखा जाए तो कभी कुछ नहीं होगा। हालांकि न्याय बस थोड़ी सी राहत भले दे सकता है।
ऐसी डरावनी और आत्मा को झकझोर देने वालीं घटनाएं फिर से ना हों, उसके लिये क्या किया जा सकता है? हमें यह निश्चित करना होगा कि हर कुछ साल या कुछ सप्ताह बाद हम खुद को फिर से किसी ऐसी ही घटना के सामने खड़ा ना पाएं।

अपनी आवाज उठाएं! ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है

हम सभी को हमारे बीच मौजूद इस तरह की हैवानियत के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए कि किसी भी महिला से साथ फिर कभी ऐसी दरिंदगी ना हो। जैसा कि हमने देखा भी है, पुलिस और सरकारें कुछ हद तक ऐसी हैवानियत के आगे झुक जाती हैं और ऐसे मुद्दों का राजनीतिकरण करने की कोशिश करती हैं। इसलिए यह हम पर..समाज पर..महिलाओं पर है कि हम अपनी आवाज उठाएं और तत्काल न्याय मांगें। इसमें वक्त लग सकता है, लेकिन अगर हम दृढ़ रहें तो एक दिन हम सफल जरूर होंगे। महिलाएं फिर से रात और दिन को एंजाय कर सकेंगी और बिना किसी डर के बाहर निकल सकेंगी।

सज़ा तत्काल और कठोर होनी चाहिए

कानून सख्त होने चाहिए और उनका पालन भी होना चाहिए। ऐसा करने वालों का अंजाम ऐसी नजीर पेश करे कि अगर किसी के मन में ऐसा कुछ करने का ख्याल भी आए तो वह अंजाम का सोचकर कांप उठे। उसे इस बात में रत्ती भर संदेह नहीं होना चाहिए कि ऐसा कांड करके वह पकड़ा भी जाएगा औऱ जैसा उसने किया है उसी वैसी ही सजा भी पाएगा। न्याय में देरी कभी भी उस तरह का प्रभाव नहीं छोड़ती है जैसा कि त्वरित प्रतिशोध करता है।

शिक्षा, सहानुभूति और सम्मान

हमें हर वो कोशिश करनी चाहिए जो घरों में, दफ्तर में या गली मोहल्ले में महिलाओं के प्रति द्वेष, उन्हें दबाने और उनके साथ अमानवीय व्यवहार करने वाला विषाक्त माहौल खत्म हो सके। ऐसी संस्कृति को सभी के लिए समानता और सम्मान की संस्कृति से बदलना होगा। यह बदलाव जाहिर तौर पर हमारे अपने घर से शुरू होगा। यह पैरेंट्स की जिम्मेदारी है कि वह अपने बेटों और बेटियों के बीच किसी तरह का भेदभाव ना करते हुए उन्हें सिखाएं कि दूसरों की गरिमा और हमेशा सहानुभूति का भाव रखना चाहिए। स्कूल और शिक्षकों की भी समान रूप से ऐसी ही जिम्मेदारी होनी चाहिए।

भविष्य के जोखिम को पहचानें, सहायता केंद्र बनाएं

परिवार और समाज को हिंसक और दूसरों को नुकसान पहुंचाने वाली प्रवृत्ति को पहचाना होगा। यहां हमारे स्कूल और शिक्षक अहम भूमिका निभा सकते हैं। उन्हें बच्चों को प्रोत्साहित करना होगा कि वह किसी भी तरह की हिंसक प्रवृत्ति के खिलाफ सरकार द्वारा उसी उद्देश्य से बनाई गई संस्थाओं में रिपोर्ट करें। खुला संवाद और एक बेहतर सपोर्ट सिस्टम ऐसी किसी भी तरह की हिंसक प्रवृत्ति से निपटने में कारगर हो सकता है। स्कूलों और दफ्तरों ऐसे कार्यक्रम चलाए जाएं जिससे हद से ज्यादा आक्रामकता, हिंसा का प्रति आकर्षण या किसी महिला के प्रति नफरत या द्वेष जैसे शुरुआती लक्षणों को पहचानने में मदद मिले।

जन जागरूकता अभियान

इससे पहले कि ये शुरुआती व्यवहार पूरी तरह से हिंसा में बदल जाए, लोगों को खुद में या दूसरों में हिंसा के शुरुआती लक्षणों की पहचान करने के लिए शिक्षित करना जरूरी है। ऐसे अभियान लोगों को अपने लिए या दूसरों के लिए मदद मांगने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। ऐसे प्रोत्साहन ही भविष्य में होने वाले कई तरह के अपराधों को रोकने में मदद कर सकते हैं।

अनिवार्य रिपोर्टिंग कानून

हमारी सोसाइटी के कुछ महत्वपूर्ण पेशेवरों, जैसे कि डॉक्टरों, शिक्षकों या स्थानीय पुलिस के लिए यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि वे ऐसे लोगों की रिपोर्ट करें जिनमें उन्हें शुरुआती हिंसा के लक्षण दिखते हैं। कुछ देशों में ऐसे कानून हैं। भारत भी ऐसा ही कर सकता है। संभावित अपराधियों के शुरुआती लक्षणों को पहचानना हमारे समाज में होने वाले कई तरह के घिनौने और दरिंदगी भरे कुकर्मों को रोक सकता है जो इंसानियत को शर्मसार कर देते हैं। बतौर महिला, अभिभावक, शिक्षक और सहकर्मी के रूप में हम सभी को दूसरों को दर्द देने वाले अपराधों के अंत को सुनिश्चित करने के लिए अपना योगदान देना चाहिए।
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | ब्लॉग (lifestyle News) और बजट 2024 (Union Budget 2024) की ताजा समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से |

लेटेस्ट न्यूज

विनीता डावरा नांगिया author

विनीता डावरा नांगिया टाइम्स ग्रुप की एडिटर, लेखक और स्तंभकार हैं। लाइफस्टाइल और एंटरटेनमेंट जर्नलिज्म में दशकों साल के अनुभव वालीं विनीता सोसाइटी, रिल...और देखें

End of Article

© 2024 Bennett, Coleman & Company Limited