क्या मामूली अंतर से चूकने के बजाय बड़े अंतर से हारना कम तकलीफ देता है? व‍िनेश फोगाट का पदक न जीत पाना ज्‍यादा दर्द क्‍यों दे रहा है

अगर विनेश फोगाट 100 ग्राम की जगह उससे ज्यादा वजन के लिए अयोग्य करार दी जातीं तो हमें कम तकलीफ होती?

O-Zone

जैसे ही मैं बस से उतरी, रिंग रोड पार किया, एक रिक्शा किराए पर लिया और फिर दरियागंज में टाइम्स ऑफ इंडिया की इमारत की उबड़-खाबड़ सीढ़ियों पर हांफते हुए चढ़ते वक्त मेरे होठों पर केवल एक ही प्रार्थना थी- बस मैं समय से अपनी क्लास में पहुंच जाऊं। मैंने आरके पुरम से शहर भर में बस से एक घंटे से अधिक का सफर तय करके आई थी और प्रोफेसर समय सख्त पाबंद थे। जैसे ही मैं टाइम्स इंस्टीट्यूट में घुसी और अपनी क्लास के दरवाजे पर पहुंची, प्रोफेसर ओम्मेन ने मेरी तरफ आंखे तरेरते हुए हुए मेरे मुंह पर ही दरवाजा बंद कर दिया। मैं करीब एक घंटे से ज्यादा वक्त तक क्लास के बाहर कॉरिडोर में खड़ी रही और मेरे क्लासमेट जो उस दिन क्‍लास में थे, वे अंदर प्रोफेसर से या पाठ समझ रहे थे या उनकी जुबानी मार झेल रहे थे।
जब क्लास खत्म हुई तो मैं सीधे ओम्मेन सर के रूम में गई और गुस्से में झल्लाते हुए बोली- बस दो मिनट..सर, मैं ठीक बस दो मिनट लेट थी। बिना पलक झपकाए उन्होंने जवाबी हमला बोला- बस दो मिनट पहले क्यों नहीं विनीता? मेरे पास कोई जवाब नहीं था।
उस दिन मैंने जीवन का एक सबक सीखा। ये मुझे जीवन भर याद रहा। मुझे वह सबक एक बार फिर से याद आ गया जब रेसलर विनेश फोगट को ओलंपिक 50 किलोग्राम स्वर्ण पदक कुश्ती मुकाबले से अयोग्य घोषित कर दिया गया, क्योंकि उनका वजन सिर्फ 100 ग्राम अधिक था। मैंने कल्पना की कि प्रोफ़ेसर ओम्मन आंखों में कातिल अंगार लिये हुए हुए पूछ रहे हैं - विनेश , सिर्फ 100 ग्राम कम क्यों नहीं?"
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