दिवंगत रामविलास पासवान के निजी विश्वास और राजनीतिक मजबूरियों के बीच विरोधाभास की परतें खोलती है यह किताब

Ram Vilas Paswan: The Weathervane of Indian Politics - राम विलास पासवान के दिलचस्प राजनीतिक करियर को खूबसूरती के साथ किताब की शक्ल में पिरोया है वरिष्ठ पत्रकार और लेखिका शोभना के नायर ने।

Ram Vilas Paswan: The Weathervane of Indian Politics

Book Review: शोभना के नायर की किताब Ram Vilas Paswan: The Weathervane of Indian Politics उस राम विलास पासवान की पहली बायोग्राफी है, जिसने खुद के अपमान को गहने की तरह पहना और 40 साल से ज्यादा वक्त तक भारतीय राजनीति में प्रासंगिक बना रहा। वो रामविलास पासवान ही थे जो 1969 में अपने पहले विधानसभा चुनाव से साल 2020 में अपने देहांत तक बिहार और देश के हर बड़े चुनाव के दौरान हमेशा चर्चा में रहे। बिहार पुलिस की नौकरी छोड़कर राजनीति के मैदान में उतरे रामविलास पासवान, कांशीराम और मायावती की लोकप्रियता के दौर में भी, बिहार के दलितों के मजबूत नेता के तौर पर लंबे समय तक टिके रहे हैं। यह किताब 'भारतीय राजनीति के मौसम वैज्ञानिक' कहलाने वाले राम विलास पासवान की जीवनी है।

क्या है किताब में खास

इस किताब में 1970 से 2024 तक की लगभग सभी महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं को तथ्य के साथ पेश किया गया है। राम विलास पासवान का जीवन और उनकी राजनीति कैसे इन घटनाओं के इर्द-गिर्द घूमती रही इसे बखूबी लिखा गया है।'आग और पानी का कोई मजहब नहीं होता। वह ना हिंदू होते हैं और ना ही मुसलमान। उसी तरह राष्ट्र भी हिंदू या मुस्लिम नहीं हो सकता - पासवान ने ये बात साल 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में मंत्री रहते हुए लोकसभा में कही थी। किताब में संसद में दिये गए ऐसे ही कई ऐतिहासिक भाषणों को हू-बू-हू रखा गया है।

2002 में गोधरा दंगों के बाद नरेंद्र मोदी को गुजरात के सीएम पद से हटाने की मांग करते हुए केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देने से 2014 में उन्हीं मोदी सरकार में मंत्री बनने वाले राम विलास पासवान के राजनीतिक जीवन के कई विरोधाभासों बेहतरीन तरीके से पेश किया गया है। पासवान की पहली पत्नी राजकुमारी देवी के मन की टीस हो या फिर उनका सत्ता के लिए मोह, सारी बातें रखी गई हैं। अमूमन ये होता है कि जब कोई किसी व्यक्ति की जीवनी लिखता है तो उसमें वह उसके सकारात्मक पहलुओं को ही केंद्र में रखता है। लेकिन इस किताब में ऐसा नहीं है। लेखक ने तथ्य रखे हैं। ये पाठक को तय करना है कि वह रामविलास पासवान को किस तरह से देखता है।

End Of Feed