Chupke Chupke Raat Din: बगावत, जेल और ट्रेन, बेड़ियों में कैद एक क्रांतिकारी ने कुछ यूं लिखी थी चुपके चुपके रात दिन

Chupke Chupke Raat Din Song (चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है): यूं तो यह गीत बहुत पहले लिखा गया था लेकिन सिनेमा में सबसे पहले इसका इस्तेमाल किया गया 1982 में आई फिल्म निकाह में। इस गीत को अपनी आवाज़ से सजाया था मशहूर पाकिस्तानी गायक गुलाम अली साहब ने। इस ग़ज़ल में अल्फ़ाज़ों को कुछ यूं पिरोया गया है कि इसे सुनते ही ना-मुकम्मल इश्क़ और मोहब्बत की बेकद्री की यादें हरी हो जाती हैं।

Chupke Chupke Raat Din Ansu Bahana Yaad hai (चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है)

Chupke Chupke Raat Din Song: इश्क ऐसी चीज है जो अपने साथ जुदाई भी लेकर आती है। बहुत कम आशिक ही ऐसे होते हैं जिनका जिन्हें मुकम्मल मोहब्बत का मजा नसीब होता है। शायद इसलिए कहा जाता है कि इस दुनिया में हर दर्द की दवा है लेकिन जुदाई के बिरह से निकले दर्द की दवा आज तक नहीं बनी। देर सवेर मिल ही जाती है। भले ही वक्त इस दर्दे-ए-दिल पर मरहम का कम करता है लेकिन वह कुछ ऐसे दाग छोड़ जाता है जो आजीवन हरे रहते हैं। हर दौर में ऐसे आशिक़ों की भरमार रही है जिन्हें इसी दर्द-ए-दिल या ग़म-ए- मोहब्बत की टीस ज़िंदगी भर सालती रहती है।

मिलन और जुदाई इश्क की रूह है। दोनों के साथ याद का गहरा नाता होता है। फर्ज कीजिए कि रात की तन्हाई में किसी आशिक को उसके माशूक की याद आ जाए ओर उसका दिल बेचैन हो उठे। ऐसे में ग़ुलाम अली की आवाज़ में एक ग़ज़ल हर आशिक के जख़्म को हरा भी कर देती है और दिल को कुछ राहत भी पहुंचा जाती है। रात की तन्हाई में यह ग़ज़ल अधूरी मोहब्बत के मर्ज़ की दवा होती है। इसे सुनकर कुछ वक़्त के लिए दिल के ज़ख़्मों पर मरहम लगा महसूस होता है। इस ग़ज़ल के बोल हैं-

चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है

End Of Feed