Daagh Dehlvi Shayari: लिपट जाते हैं वो बिजली के डर से, इलाही ये घटा दो दिन तो बरसे.., इश्क की लौ जला देंगे दाग़ देहलवी के ये 20+ मशहूर शेर
Daag Dehlvi Shayari Urdu: दाग देहलवी की शायरी मोहब्बत की शायरी (Daagh Dehlvi Poetry) मानी जाती है। उन्होंने सरल और शुद्ध उर्दू में ना जाने कितनी ही बेहतरीन रोमांटिक और प्रेम में डूबी हुई नज्में लिखीं। 'इरशाद' के आज के अंक में नजर डालते हैं दाग़ देहलवी के कुछ चुनिंदा शेरों (Daagh Dehlvi Sher) पर एक नजर:
Daagh Dehlvi ki Shayari in Hindi, Urdu (दाग़ देहलवी की शायरी हिंदी में)
Daagh Dehlvi ki Shayari in Urdu: दाग़ देहलवी अवाम के बेहद चहेते और प्रिय शायर थे। उनका नाम उर्दू के बड़े और मक़बूल शायरों में शुमार है। उनकी लिखी शायरी अपने आप में एक अलग पहचान रखती हैं। उन्होंने ना सिर्फ शायरी के लिए उर्दू ज़ुबान को चुना बल्कि फारसी में भी कमाल की नज्में लिखीं। हालांकि समय के साथ उन्होंने अपनी गज़लों से फारसी के शब्दों को कम कर उर्दू के हर्फों का इस्तेमाल किया। दाग देहलवी की शायरी मोहब्बत की शायरी मानी जाती है। उन्होंने सरल और शुद्ध उर्दू में ना जाने कितनी ही बेहतरीन रोमांटिक और प्रेम में डूबी हुई नज्में लिखीं। पेश हैं उनके कुछ चुनिंदा शेर:
Daag Dehlvi Sher | Daagh Dehlvi Shayari | Daag Dehlvi Shayari Urdu
हज़ारों काम मोहब्बत में हैं मज़े के 'दाग़'
जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है
मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है
वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं
हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे
तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना
आशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिद
बंदगी से ख़ुदा नहीं मिलता
शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को
ख़ुशी की बज़्म में क्या काम जलने वालों का
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया
Daagh Dehlvi Ghazal
लिपट जाते हैं वो बिजली के डर से
इलाही ये घटा दो दिन तो बरसे
ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं
दी शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ पिछली रात
हाए कम-बख़्त को किस वक़्त ख़ुदा याद आया
उर्दू है जिस का नाम हमीं जानते हैं 'दाग़'
हिन्दोस्ताँ में धूम हमारी ज़बाँ की है
जिस में लाखों बरस की हूरें हों
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई
चुप-चाप सुनती रहती है पहरों शब-ए-फ़िराक़
तस्वीर-ए-यार को है मिरी गुफ़्तुगू पसंद
दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
उल्टी शिकायतें हुईं एहसान तो गया
रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किस का था
यूँ भी हज़ारों लाखों में तुम इंतिख़ाब हो
पूरा करो सवाल तो फिर ला-जवाब हो
रुख़-ए-रौशन के आगे शम्अ रख कर वो ये कहते हैं
उधर जाता है देखें या इधर परवाना आता है
फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
जहाँ बजते हैं नक़्क़ारे वहाँ मातम भी होता है
बता दें कि दाग़ देहलवी का असली नाम नवाब मिर्ज़ा ख़ान था। उनका पालन पोषण दिल्ली के लाल किले में हुआ। दरअसल उनके पिता शम्सुदीन खान को अंग्रेजों ने फांसी की सजा दे दी थी। पिता की मौत के बाद उनकी मां ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के बेटे मिर्जा फखरू से निकाह कर लिया था। दाग देहलवी ने 17 मार्च 1905 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। हालांकि अपनी नज्मों के जरिए वो आज भी अवाम के दिलों में जिंदा हैं।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें
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