Digvijay Diwas 2024: जब स्वामी विवेकानंद ने अपने ज्ञान और अध्यात्म से जीत ली थी दुनिया, पढ़ें Swami Vivekanand Chicago Speech हिंदी में

Digvijay Diwas 2024: स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो में विश्व धर्म संसद में विश्व प्रसिद्ध भाषण (Swami Vivekanand Chicago Speech) दिया था। हम इसे दिग्विजय दिवस ​​के रूप में मनाते हैं। स्वामी विवेकानंद ने इस दिन अपने अध्यात्म से दुनिया को जीत लिया था और वह भी ऐसे समय में जब भारत स्वतंत्र भी नहीं हुआ था।

Swami Vivekananda Chicago Speech in Hindi

Digvijay Diwas 2024, Swami Vivekanand Chicago Speech in Hindi: 11 सितंबर की तारीख हर हिंदुस्तानी के लिए गर्व का पल होता है। साल 1893 में इसी तारीख को अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानदं ने जो भाषण दिया था उसके बाद कम्यूनिटी हॉल कई मिनटों तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा था। विवेकानंद जी द्वारा दिया गया यह भाषण आज भी भारतीयों को गर्व से भर देता है। शिकागो में विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने ऐसा भाषण दिया था कि उसके बाद पूरी दुनिया में भारत की छवि बदल गई। कहते हैं इस भाषण के बाद दुनिया भारत की मुरीद हो गई थी। आइए पढ़ें स्वामी विवेकानंद का वह ऐतिहासिक भाषण:

अमेरिका की बहनों और भाइयों,

आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।

मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इजरायलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है।

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