Dushyant Kumar Poetry: तू किसी रेल सी गुजरती है, मैं किसी पुल सा थरथराता हूं.., दुष्यंत कुमार की 6 अमर रचनाएं

Dushyant Kumar Poem: हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए..,दुष्यंत कुमार की कलम से ऐसी कई अमर रचनाएं निकली हैं जो दशकों बाद भी आज सामाजिक चेतना का प्रतीक हैं। दुष्यंत कुमारर एक जमाने में युवाओं के पसंदीदा शायर हुआ करते थे।

Dushyant Kumar Poems in Hindi

Dushyant Kumar Poetry in Hindi, Dushyant Kumar ki Kavitayen (दुष्यंत कुमार की कविताएं): दुष्यंत कुमार का नाम हिंदी साहित्य के चमकते सितारे को तौर पर लिया जाता रहा है। यह नाम उन कलमकारों में प्रमुख है जिन्होंने अपनी अमर रचनाओं में सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत विषयों को बखूबी शब्द दिये। अगर ये कहा जाए कि दुष्यंत कुमार की रचनाओं ने सही मायनों में आम आदमी की आवाज़ को बुलंद किया तो ये कहीं से गलत ना होगा। उनकी कविताएं व्यवस्था की खामियों पर भी करारा प्रहार करती हैं। दुष्यंत कुमार ने कविताओं का ऐसा सागर रचा कि हर कोई उसमें गोते लगाना चाहेगा। यहां हम दुष्यंत कुमार के चंद चुनिंदा कविताएं लाए हैं जो आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव ला देंगी:

1. मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूं..

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ,

वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ।

एक जंगल है तेरी आँखों में,

मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ।

तू किसी रेल-सी गुज़रती है,

मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ।

हर तरफ़ एतराज़ होता है,

मैं अगर रोशनी में आता हूँ।

एक बाज़ू उखड़ गया जब से,

और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ।

मैं तुझे भूलने की कोशिश में,

आज कितने क़रीब पाता हूँ।

कौन ये फ़ासला निभाएगा,

मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ।

2. अब और ना सोएंगे हम

अब और न सोएंगे हम,

अब और न सोएंगे हम,

जिस दुनिया में

अन्याय और अत्याचार है।

अब और न सोएंगे हम,

अब और न सोएंगे हम,

जिस दुनिया में

गरीबी और भुखमरी है।

अब और न सोएंगे हम,

अब और न सोएंगे हम,

जिस दुनिया में

धर्म और जाति का भेद है।

अब और न सोएंगे हम,

अब और न सोएंगे हम,

जिस दुनिया में

युद्ध और संघर्ष है।

3. हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,

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