मुख्य बातें
- रतन राजपूत को छठ के मौके पर घाट लूटना आज भी याद है।
- मुंबई में रहते हुए रतन छठ को बहुत मिस करती हैं।
- बचपन में छठ के मौके पर ट्रैक्टर की सवारी रत्न के दिल के करीब।
TV Actress Ratan Rajput on Chhath Puja: महापर्व छठ की बात तमाम त्योहारों से अलग है। अगर आपको छठ की अहमियत और इस त्योहार की दीवानगी का अंदाजा लगाना है तो आप बिहार के किसी भी शहर, किसी भी गांव चले जाइये आपको दूर से ही लाउडस्पीकर पर बजते छठी मैया के गीत, गांव के बाहर बना एक सुंदर सा गेट, सड़क की सफाई, घरों के बाहर सजावट, घाट की साज-सज्जा को लेकर लोगों केवल उत्साहित दिखाई देंगे। वो किसी भी धर्म का हो छठ से हर किसी की यादें जुड़ी हैं। लेकिन आज हम जिनकी बात कर रहे हैं पूरा बिहार उनका नाम बड़े ही सम्मान से लेता है। उन्होंने ऐसी उड़ान भरी के हर बिहारी ने खुद को गौरवान्वित महसूस किया। हम बात कर रहे हैं 'अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो' सीरियल की मशहूर 'लाली' रतन राजपूत की।
रतन गांव के छठ को बहुत याद करती हैं। हफ्तों पहले से इसकी शुरुआत हो जाती थी। घर की साफ सफाई के साथ इसकी तैयारी शुरू होती थी। उन्हें अभी भी याद है कि कैसे पूरा परिवार ट्रैक्टर पर सवार हो कर दूर दराज के घाटों पर छठ देखने-मनाने जाता था। यहां तक की गया के घाट पर बचपन में जाना उन्हें आज भी याद है। वो कहती हैं सबसे ज्यादा मजा आता था घाट लूटने में। मतलब घाट पर सबसे अच्छी जगह अपने परिवार के लिए चुनने में। इसके बाद बारी आती थी घाट को सजाने की। गांव में इसे लेकर भी खूब मुकाबला होता है कि किसका घाट सबसे ज्यादा अच्छा सजा है। वो कहती हैं छठ की तैयारी में हर छोटी बड़ी चीज का ख्याल रखा जाता है। नहाय खाय के मौके पर घर में स्वादिष्ट प्रसाद बनता है। पूजा के बाद वो प्रसाद हमें खाने को मिलता था। बस इसका हमें बेसब्री से इंतजार रहता था।
जब लालू परिवार के साथ दिखाया गया रतन का छठ
हमने रतन से जब उनके 2012 के छठ के बारे में पूछा तो वो भावुक हो गईं। उन्होंने कहा, "पता नहीं कहां से वो एनर्जी आ गई थी। मैं आज भी कुछ घंटे भूखा नहीं रह सकती। लेकिन वो 36 घंटे का व्रत मैंने बड़े ही आराम से कर लिया। तब मन में एक घबराहट भी थी कि कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए। मैं अविवाहित थी तो मैं सूप नहीं उठा सकती थी लेकिन मैंने सारी चीजें बड़े ही श्रद्धा के साथ की और आज भी करती हूं।" रतन को वो दिन भी याद है जब लालू परिवार यानी राबड़ी देवी का छठ पूरे भारत में मश्हूर हुआ करता था। उस दौर में मीडिया ने रतन राजपूत के छठ को टीवी स्क्रीन पर लालू परिवार के छठ के साथ जगह दी और इसे भी उतनी ही प्रमुखता से दिखाया। अखबार के पन्नों पर रतन की तस्वीर छाई हुई थी। वो कहती हैं तब कोई दबाव नहीं था न ही कोई दिखावा था। वो छठ को लेकर मन में एक सम्मान था जो आज भी है।
चेहरे पर हंसी ला देती है ये कहानी
रतन ने कहा कि छठ के मौके पर बनने वाला हर प्रसाद लाजवाब होता है। इसे बड़े ही शुद्धता से बनाया जाता है। बनाते हुए यह खास ख्याल रखा जाता है कि प्रसाद को लेकर आपके मन में कोई लालच न हो। एक बार उनकी बहन छठ के प्रसाद के लिए चटनी पीस रही थीं। तब चटनी पीसने के लिए सीलबट्टे का इस्तेमाल होता था। चटनी पीसते हुए उनके बहन के मुंह से थोड़ी सी लार टपक कर चटनी में चली गई और रतन ने यह सब देख लिया। उनकी बहन ने यह सब मां से बताने के लिए मना किया लेकिन रतन ने बता दिया। जिसके बाद बहन को मां ने एक जोरदार सी थपकी दी और चटनी दोबारा पीसने को कहा। वो कहती हैं के मेरी बहन आज भी इस चीज को याद करती है।
केले का घवर उठा कर ढाई किलोमीटर चलीं रतन
रतन कहती हैं कि, "बचपन से ही मेरा पूजा का कंसेप्ट अलग रहा है। मैं प्रकृति की पूजा करती रही हूं। सूरज को जल डालती रही हूं। हवा है नदी है उनके प्रति मेरा बहुत सम्मान है। नेचर ने हमें इतान कुछ दिया है और हम लेते ही जा रहे हैं।" वो कहती हैं पता नहीं कहां से वो ताकत आ गई थी कि वे छठ की भीड़ में केले का घवर उठा कर ढाई किलोमीटर तक पैदल चली थीं, "छठ के प्रसाद को आप बीच रास्ते नहीं रख सकते। तो मैं ढाई किलोमीटर तक उसे अपने कंधे पर डालकर चली।" उन्होंने कहा, "छठ आप कहीं भी कर सकते हैं। लेकिन सभी के सहयोग के लिए लोग गांव जाना चाहते हैं। जहां सब मिलजुल कर छठ मना सकें।"
मन्नत में नहीं रखती हैं विश्वास
रतन कहती हैं कि इस बार घर में छठ न होने पर वो काफी उदास हैं। लोगों को लग रहा है कि वो पटना में हैं और छठ मनाने जरूर आयी होंगी। उन्होंने कहा , "मैंने भगवान से करियर के लिए कभी कुछ नहीं मांगा है। मैं बस एक अच्छी इंसान बनूं यहीं चाहत रही हमेशा। अच्छा एक्टर होना ठीक है पर एक अच्छा इंसान होना उससे ज्यादा जरूरी है।" उन्होंने आगे जोड़ा, "मैं मन्नत में विश्वाीस नहीं करती हूं। कई बार हम भगवान से गलत चीज मांग लेते हैं और वो मिल भी जाती है। फिर जो हालत होती है वो अच्छी नहीं होती। मुझे सरप्राइज़ पसंद है, भगवान मुझे बस वही देते रहें"। रतन के पास छठ से जुड़ी कई यादें हैं। वो कहती हैं मैं मुंबई में छठ के मौके पर अकेला महसूस कर रहीं हूं। बिहार की बहुत याद आती है।