सफर सूटकेस का: भारत में अटैची क्यों कहलाया सूटकेस, 1200 साल पुराना है इतिहास, रामायण में भी जिक्र, किसने बनाया था पहला सूटकेस

History and Evolution of Suitcase: आप आज जिस तरह के सूटकेस देखते हैं उसका पहला प्रमाण 12वीं सदी में रोमन साम्राज्य के दौरान देखने को मिला था। उन दिनों जारी धर्मयुद्ध में रोमन सेनापतियों ने सैन्य अभियानों के दौरान अपना सामान ले जाने के लिए चमड़े या धातु के कंटेनरों का उपयोग किया, जिन्हें "कैप्सए" कहा जाता था।

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History and Evolution of Suitcase

History and Evolution of Suitcase: सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहां, ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहां - ख्वाजा मीर दर्द की यह शायरी कहती है कि जीवन में जितना हो सके उतना सैर करें। सैर सपाटा सदियों से मानव सभ्यता का हिस्सा है। आज सफर करना हम इंसानों की नियति बन चुकी है। हर कोई किसी ना किसी तरह के सफर में जरूर रहता है। कोई शौक से सफर में है तो कोई मजबूरी से। कोई घूमने फिरने के लिए सफर करता है तो किसी का अब घर बार छोड़ कहीं और पलायन करना सफर है। कोई दूसरे शहर में पढ़ाई के लिए सफर करता है तो वहीं कोई नौकरी की तलाश में एक शहर से दूसरे शहर तक सफर करता है। रेलवे स्टेशन, बस अड्डों या एयरपोर्ट पर रोजाना आपको लाखों लोग किसी ना किसी सफर पर निकलते या किसी सफर से लौटते दिख जाएंगे। इन लाखों लोगों में आपको एक चीज कॉमन दिखती है। वह है उनका सामान। लोग जब सफर करते हैं तो उनके हाथ में कोई बैग, सूटकेस या ट्रंक जरूर नजर आएगा। आज कल ज्यादातर लोगों के पास ट्रॉली बैग्स या पहिए वाले सूटकेस नजर आते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सूटकेस का आविष्कार कैसे हुआ। किसने सबसे पहले सूटकेस का इस्तेमाल किया था। सूटकेस जितना उपयोगी है इसका इतिहास उतना ही ज्यादा रोचक भी है। आइए विस्तार से डालते हैं सूटकेस के पूरे सफर पर एक नजर:

क्या होता है सूटकेससूटकेस को समझने के लिए आपको पहले लगेज को समझना होगा। Luggage शब्द बना है अंग्रेजी के Lug शब्द से। लग (Lug) शब्द का मतलब होता है कि भारी सामान की असुविधा। लगेज शब्द इस्तेमाल किया गया असुविधाजनक रूप से भारी सामान को कैरी करने के लिए। सूटकेस भी वही काम करता है। सर्च इंजन गूगल के मुताबिक सूटकेस लगेज का ही एक रूप है। गूगल बताता है कि यह एक आयताकार कंटेनर है और आमतौर पर इसका उपयोग यात्रा के दौरान किसी के कपड़े और अन्य सामान ले जाने के लिए किया जाता है। इसमें ऊपर की तरफ एक हैंडल और लॉक होता है। हालांकि सूटकेस का शाब्दिक अर्थ कुछ और होता है। सूट केस अंग्रेज के दो शब्द, सूट (Suit) और केस(Case), से बना है। जिस केस में सूट को रखा जाए उसके सूटकेस कहा जाता है। सालों पीछे जाएंगे तो आप पाएंगे कि सूटकेस का आविष्कार ही सूट को रखने के लिए हुआ था।

सूटकेस का इतिहाससबसे पहले सूटकेस का इस्तेमाल 1153 में हुआ था है। तब धर्मयुद्ध के दौरान भारी हथियारों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए पहिए लगे लकड़ी के कंटेनर्स का इस्तेमाल किया गया था। हालांकि व्यक्तिगत सामान के लिए पोर्टेबल कंटेनर का चलन मानव सभ्यता के साथ ही शुरू हो गया था। मेसोपोटामिया और सिंधु घाटी जैसी सभ्यताओं का अध्ययन करने पर पता चलता है कि तब पोटली में ही लोग अपने कपड़े या जरूरी सामान बांधते और एक जगह से दूसरी जगह के लिए निकल पड़ते थे। ये पोटली ज्यादातर कपड़े की ही होती थी। मध्यकालीन युग में चलें तो लोग जानवरों की खाल से बनी पोटली का इस्तेमाल करते थे ताकि बरसात वगैरह के कारण उनका सामान खराब ना हो। धीरे धीरे पोटली लकड़ी के कंटेनर में तब्दील हुई। यही लकड़ी का कंटेनर सूटकेस कहलाया। यहां आपको एक रोचक जानकारी देते हैं। हिंदुओं के धर्मग्रंथ रामायण में दर्ज है कि भगवान राम, सीता और लक्ष्मण को 14 साल का वनवास भोगना पड़ा था। जब ये तीनों अयोध्या का महल छोड़ते हैं तो लक्ष्मण के हाथों में एक पोटली होती है। इस पोटली में उन तीनों के वस्त्र होते हैं। आधुनिक समय में यही पोटली लगेज या सूटकेस कहलाती है।

आप आज जिस तरह के सूटकेस देखते हैं उसका पहला प्रमाण 12वीं सदी में रोमन साम्राज्य के दौरान देखने को मिला था। उन दिनों जारी धर्मयुद्ध में रोमन सेनापतियों ने सैन्य अभियानों के दौरान अपना सामान ले जाने के लिए चमड़े या धातु के कंटेनरों का उपयोग किया, जिन्हें "कैप्सए" कहा जाता था। ये बॉक्स के आकार के टिकाऊ कंटेनर थे जिन्हें एक जगह से दूसरी जगह आसानी से ले जाने के लिए आए डिज़ाइन किया गया था।

18वीं शताब्दी में यूरोपियंस को दुनिया घूमने का शौक चढ़ा। हालांकि ये शौक पूरा करना सिर्फ तबके अभिजात वर्ग के ही बस की बात थी। घूमना फिरना आम होने के कारण कंटेनर्स के डिजाइन में भी बदलाव हुआ। लोहे या किसी मजबूत धातु से अच्छी तरह सील किए गए लकड़ी के ट्रंक ने तब के रईसों और धनवान यात्रियों के बीच खूब लोकप्रियता हासिल की। ये ट्रंक आमतौर पर भारी होते थे जिन्हें उठाने के लिए ये लोग अपने साथ नौकर रखा करते थे। अलग-अलग देशों में सुविधा और जरूरत के हिसाब से सूटकेस चलन में आते गए। भारत में देखें तो बहुत पहले यहां भी लकड़ी के सूटकेस चलते थे। फिर टिन के बने संदूकों ने इन लकड़ी के कंटेनर्स की जगह ले ली। इन टिन के संदूकों को लोग ट्रंक कहते थे।

19वीं शताब्दी में हुई औद्योगिक क्रांति ने सूटकेस को लोगों के लिए बेहद जरूरी और सुलभ सामान बना दिया। सूटकेस बनाने के लिए चमड़ा सबसे पसंदीदा सामग्री बन गया। तब लुई वुइटन और एच. जे. केव एंड संस जैसी कंपनियों ने टिकाऊ और स्टाइलिश डिजाइन के साथ सूटकेस का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू कर दिया। फ्रेंच बॉक्स मेकर लुई वुइटन ने 16 साल की उम्र में बॉक्स बनाना शुरू कर दिया था। 1840 आते-आते लुई वुइटन एक स्थापित ब्रांड बन गया था। हम जिस तरह के लगेज बैग को आज सूटकेस कहते हैं वो सबसे पहले लुई वुइटन ने 1860 में बनाया था। 1880 आते-आते लुई वुइटन ने ना सिर्फ सूटकेस बनाने में महारथ हासिल कर ली बल्कि मजबूती में भी उसका कोई जोड़ नहीं था। 1890 में लुई वुइटन ने मशहूर जादूगर हैरी हाउडिनी को पब्लिकली चैलेंज कर दिया था कि अगर दम है तो वो उनकी कंपनी के सूटकेस को खोलकर दिखाएं। कहा जाता है कि हाउडिनी ने इस चुनौती से खुद को अलग ही रखा।

19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में एल्यूमीनियम जैसी हल्की सामग्री से बने सूटकेस का प्रचलन शुरू हुआ। इसके बाद 20वीं सदी के मध्य में वल्केनाइज्ड फाइबर और पॉली कार्बोनेट जैसे प्लास्टिक से सूटकेस बनने लगे। पॉलीकार्बोनेट प्लास्टिक के सूटकेस सबसे ज्यादा पॉपुलर हुए। लेदर के मुकाबले ये सूटकेस सस्ते थे जिसके कारण मध्यमवर्ग ने इसे हाथों हाथ लिया। इस सूटकेस की मजबूती भी इसके पॉपुलर होने का एक कारण थी। भारत में ऐसे सूटकेस को अटैची कहा गया।

चलने लगी सूटकेस1970 के दशक में पहियों की शुरुआत ने सूटकेस इंडस्ट्री में क्रांति ला दी। कंपनियां सूटकेस में पहिए लगाने लगीं। ये उपभोक्ताओं के लिए काफी सहूलियत भरा साबित हुआ। पहिए लगने के बाद वजनी-वजनी सूटकेस भी आसानी से कैरी किया जाने लगा। व्हील वाले सूटकेस आने के बाद हर वर्ग के लोग सूटकेस लिये दिखने लगे। उम्रदराज लोगों या महिलाओं के लिए पहिए वाले सूटकेस काफी सुविधाजनक हो गए।

मॉडर्न सूटकेससूटकेस में पहिए लगने के बाद इसके स्वरूप में भी बदलाव आया। पहिए लगने के बाद पॉली कार्बोनेट वाले सूटकेस ने धीरे-धीरे ट्रॉली बैग का रूप ले लिया। ट्रॉली बैग्स इतने सक्सेसफुल हुए कि लोग सूटकेस नाम ही भूलने लगे। 21वीं सदी के डिजिटल युग में, सूटकेस ने तकनीकी तौर पर खूब तरक्की की। अब तो जीपीएस ट्रैकिंग, बिल्ट-इन चार्जर और डिजिटल लॉक से लैस स्मार्ट सूटकेस मार्केट में मौजूद हैं और सुविधा और सुरक्षा चाहने वाले मॉडर्न ट्रैवलर्स के बीच तेजी से लोकप्रिय हो गए हैं। इसके अलावा अब तो इको फ्रेंडली सूटकेस भी आने लगे हैं।

तो, रोमन साम्राज्य के प्राचीन कैप्सेए से लेकर आज के तकनीकी रूप से उन्नत स्मार्ट सूटकेस तक, सूटकेस का इतिहास मानव नवाचार और यात्रियों की बदलती जरूरतों का एक प्रमाण है। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं, सूटकेस हमारी निरंतर विकसित हो रही जीवनशैली और प्राथमिकताओं के अनुरूप एक आवश्यक साथी बना हुआ है।

सदियों के परिवर्तन के माध्यम से, सूटकेस न केवल व्यावहारिकता बल्कि शैली, सुविधा और अन्वेषण की भावना का प्रतीक है जो मानवता को आगे बढ़ाता है। जैसे ही हम अपना बैग पैक करते हैं और नई यात्रा पर निकलते हैं, हम अपने साथ सदियों के सामान विकास की विरासत लेकर चलते हैं, जिससे हमारी यात्राएं पहले से कहीं अधिक आसान, अधिक आरामदायक और अधिक स्टाइलिश हो जाती हैं।

सूटकेस और ब्रीफकेस में अंतरज्यादातर लोग समझते हैं कि सूटकेस और ब्रीफकेस एक ही है। उन्हें लगता है कि छोटे सूटकेस को ब्रीफकेस कहा जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है। दोनों के बीच आकार का अंतर तो है ही लेकिन इसके उपयोग का भी अंतर है। मसलन हम दफ्तर सूटकेस लेकर नहीं बल्कि ब्रीफकेस लेकर जाते हैं। सूटकेस में कपड़े रखे जाते हैं तो वहीं ब्रीफकेस में पेपर या फाइल्स रखा जाता है। सूटकेस में पहिए भी लगे हो सकते हैं लेकिन ब्रीफकेस में पहिओं की जरूरत ही नहीं है।

सूटकेस कैसे बन गया अटैचीअटैची शब्द फ्रांसीसी लोगों द्वारा गढ़ा गया था, जिसका इस्तेमाल राजदूत के स्टाफ के प्रशासनिक सदस्य के लिए किया जाता था। राजदूत और उनके कर्मचारी या अटैची अपने कागजात और दस्तावेजों को पतले केस में रखते थे, जिन्हें अटैची केस के नाम से जाना जाता था। फ्रेंच और ब्रिटिशर्स के माध्यम से अटैची शब्द भारत आया। भारतीयों के लिए ब्रीफकेस और सूटकेस सब अटैची ही कहलाने लगे।

भारत में सूटकेस इंडस्ट्रीभारत में आज दुनिया के तमाम लीडिंग ब्रांड्स के सूटकेस उपलब्ध हैं। फिर भी अगर भारत में सूटकेस इंडस्ट्री के व्यापार को देखें तो यहां VIP छाया हुआ है। सूटकेस मार्केट में वीआईपी 43.8 प्रतिशत मार्केट शेयर साथ सबसे पहले पायदान पर है। दूसरे नंबर पर 24.1 प्रतिशत मार्केट शेयर के साथ सफारी का नाम आता है। VIP पिछले 50 से ज्यादा साल से सूटकेस बना रहा है। लोगों के बीच वीआईपी के सूटकेस इतने पॉपुलर हुए कि लोग सूटकेस को वीआईपी ही बोलने लगे थे। उसी तरह से जैसे भारत में ज्यादातर जगहों पर लोग टूथपेस्ट को कोलगेट और पानी वाले मोटर को टुल्लू कहते हैं।

दीपिका पादुकोण ने भी सूटकेस ब्रांड में किया है इन्वेस्टसूटकेस का उद्योग इतना फलफूल रहा है कि तमाम नामी-गिरामी हस्तियों ने भी इस बिजनेस में हाथ आजमाया है। ऐसा ही एक नाम है फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का। दीपिका जितनी अच्छी अदाकारा हैं उतनी ही बेहतरीन इन्वेस्टर भी हैं। उन्होंने कई ब्रांड्स में इन्वेस्ट किया है। ऐसा ही एक इनवेस्टमेंट उन्होंने Mokobora नाम के ब्रांड में किया है। यह ब्रांड सूटकेस और ट्रैवल बैग्स बनाता है।

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Suneet Singh author

मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें

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