Story of Bread: भारत में ब्रेड को दिया गया था ये दिलचस्प नाम, करेंसी-दवाई का भी करती थी काम, ब्रेड खाने में कौन सा देश है सबसे आगे

History Of Bread: लोग जलने से हुए इन्फेक्शन को ठीक करने के लिए ब्रेड के फफूंद का इस्तेमाल करते थे। ब्रेड को कई कल्चर में शांति का प्रतीक भी माना जाता है। ऐसे लोगों के लिए ब्रेड एक ऐसा फूड है जो हर वर्ग के लोगों के लिए उपलब्ध है।

Exlpained History Of Bread

Explained History Of Bread (ब्रेड का इतिहास): ब्रेड आज लगभग हर घर में मिल जाती है। सुबह का नाश्ता हो या फिर शाम के स्नैक्स, ब्रेड से बने आइटम काफी कॉमन हैं। बैचलर्स के लिए तो ब्रेड वरदान की तरह है। जब कुछ ना बनाने का मन हुआ तो चाय ब्रेड या फिर दूध ब्रेड खा लिया। मन किया को ब्रेड से सैंडविच बना लिया या फिर बटर लगाकर पेट की भूख शांत कर ली। ऑमलेट के साथ तो ब्रेड का चोली दामन का साथ बन गया है। बच्चों के टिफिन में ब्रेड रखते हुए मांओं को संतुष्टि तो नहीं होती होगी लेकिन ये ख्याल जरूर रहता होगा कि चलो उनका बच्चा कम से कम भूखा तो नहीं रहेगा। कुछ लोग ब्रेड के एक से बढ़कर एक पकवान बनाते हैं। लेकिन क्या आपने सोचा है कि आज हर रसोई में आम हो चुकी इस ब्रेड का इतिहास क्या है। ये ब्रेड कहां से आई और क्यों इसे लोग इतना पसंद करते हैं। आइए जानते हैं ब्रेड से जुड़ी तमाम रोचक और जरूरी जानकारियां:

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गलती से बनी थी पहली ब्रेडब्रेड के तार मिस्र से जुड़े हैं। ब्रेड बनाने का दुनिया का सबसे पुराना सबूत जॉर्डन के उत्तरपूर्वी रेगिस्तान में 14,500 वर्ष पुरानी नाटुफियन स्थल में पाया गया। सबसे पहले मिस्र में ही ब्रेड बनाई और खाई जाती थी। लेकिन आपको यहां जानकर हैरानी होगी कि मिस्र में पहली ब्रेड एक बेकर की गलती से बनी थी। जी हां, दरअसल बात है करीब 4000 BC की । इजिप्ट का कोई एक बेकर हर दिन की तरह रोटी बना रहा था। वह रोटी के लिए आटा मांड़ कर किसी दूसरे काम में लग गया। कुछ घंटे बाद जब उसने आटे से रोटी बनाई तो वह कुछ ज्यादा ही फूलने लगी। रोटी का स्वाद भी रोज से अलग था।

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हुआ ये था कि मांड़े हुए आटे को इतनी देर छोड़ने के कारण हवा में मौजूद वाइल्ड यीस्ट से आटे का फर्मेंटेशन हुआ। इस फर्मेंटेशन के कारण ही रोटी फूली भी और टेस्ट भी अलग हो गया। यहीं से ब्रेड का ईजाद हुआ। ये कहना गलत ना होगा कि इंसान तब से ब्रेड बना और खा रहा है, जब उसे फर्मेंटेशन (खमीर) की रासायनिक क्रिया के बारे में कुछ पता नहीं था। फर्मेंटेशन के बारे में दुनिया को सबसे पहले सन 1840 में फ्रांस के साइंटिस्ट लुई पॉश्चर ने बताया।

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प्राचीनकाल में ब्रेड का महत्वइजिप्ट में ब्रेड का बहुत ज्यादा महत्व हुआ करता था। वहां ब्रेड का इस्तेमाल करेंसी के तौर पर भी होता था। लोग सामान के लेनदेन में ब्रेड का इस्तेमाल करते थे। मिस्र के पिरामिड बनाने वाले मजदूरों को मजदूरी में ब्रेड देने के भी साक्ष्य मौजूद हैं। प्राचीन मिश्र में तो लोग ब्रेड का उपयोग चिकित्सकीय कामों में भी करते थे। ये लोग जलने से हुए इन्फेक्शन को ठीक करने के लिए ब्रेड के फफूंद का इस्तेमाल करते थे। ब्रेड को कई कल्चर में शांति का प्रतीक भी माना जाता है। ऐसे लोगों के लिए ब्रेड एक ऐसा फूड है जो हर वर्ग के लोगों के लिए उपलब्ध है।

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कैसे बनता था ब्रेडइजिप्ट के लोग प्राकृतिक फर्मेंटेशन के जरिए ब्रेड बनाते थे। वो ब्रेड के लिए सिर्फ गेहूं, पानी, नमक और थोड़ी सी चीनी का इस्तेमाल करते थे। 20वीं सदी में ब्रेड होम मेड नहीं रही। तब नेचुरल फर्मेंटेशन की जगह कई तरह की केमिकल ने ले ली। यीस्ट भी रेडीमेड आने लगी। ब्रेड बनाने की कंपनियां खुल गईं। इन कंपनियों के पास नेचुरल फर्मेंटेशन से ब्रेड बनाने का धैर्य नहीं था। ब्रेड को केमिकल मिलाकर फर्मेंट किया जाने लगा। उस दौर में व्हाइट ब्रेड अमीरों और ब्राउन ब्रेड गरीबों के लिए हुआ करती थी। दरअसल ब्रेड को व्हाइट करने के लिए केमिकल डाला जाता था। इस महंगे केमिकल के कारण ब्रेड महंगी पड़ती थी। इसे खरीदना हर किसी के वश का बात नहीं थी।

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भारत कैसे पहुंचा ब्रेड

भारत में ब्रेड सबसे पहले गोवा में आया। 1498 में वास्को डि गामा भारत आया। उसके 12 साल बाद पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्जा कर लिया। पुर्तगालियों का काफी समय मिडिल ईस्ट में बीता था। वहीं से उनकी जुबान पर ब्रेड का स्वाद चढ़ा था। ब्रेड पुर्तगालियों के खाने का प्रमुख हिस्सा हुआ करता था। लेकिन जब वह गोवा आए तो उन्हें ब्रेड की कमी महसूस हुई। उन्होंने सोचा क्यों ना यहीं ब्रेड बनाई जाए। मगर ये इतना आसान भी नहीं था, क्योंकि यहां उनके पास बेक करने के लिए न अवन था, न मैदा और न ही यीस्ट। फिर पुर्तगाली बेकर्स ने मैदा की जगह आटा और यीस्ट की जगह ताड़ी की कुछ बूंदें मिलाकर ब्रेड बनाई जिसे पुर्तगाली पाव कहा गया।

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