Heeramandi: पाकिस्तान में यहां है असली हीरामंडी जिसे एक 'प्रधानमंत्री' ने बसाया था, जानें कैसे बदनाम गली में बदला मुगलों का शाही मोहल्ला

History Of Heeramandi: मुगल काल में तवायफ को वो दर्जा प्राप्त था जहां बड़े-बड़े खानदानी रईस अपने बच्चों को तहजीब और तमीज सीखने भेजते थे। लेकिन 18वीं सदी आते-आते तवायफों की परिभाषा बिल्कुल बदल गई।

Real History Of Heeramandi

Heeramandi Real Story in Hindi: अपनी एक से बढ़कर एक भव्य फिल्मों के लिए मशहूर निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली (Sanjay Leela Bhansali) अपनी नई पेशकश के लिए चर्चा में हैं। दरअसल उनका बहुप्रतीक्षित वेब सीरीज 'हीरामंडी: द डायमंड बाजार'(Heeramandi: The Diamond Bazar) 1 मई को नेटफ्लिक्स (Netflix) पर रिलीज हो रही है। भंसाली करीब 15 सालों से इस विषय पर फिल्म बनाना चाह रहे थे। उन्होंने फिल्म के लिए शाहरुख (Shahrukh Khan) और सलमान (Salman Khan) जैसे नाम भी सोच रखे थे। हालांकि समय के अभाव में भंसाली ऐसे फंसे कि यह फिल्म कभी नहीं बन पाई। अब वह तवायफों की जिंदगी पर आधारित इस कहानी को वेब सीरीज (Heeramandi Release Date) की शक्ल में दर्शकों के सामने लाए हैं। इस सीरीज (Netflix Web Series) का टीजर आने के बाद से ही लोगों के बीच उत्सुकता थी कि आखिर 'हीरामंडी' (Real Story Of Heeramandi) है क्या चीज। तो आइए विस्तार से जानते हैं कहानी असली हीरामंडी की।

अकबर का शाही मोहल्ला था हीरामंडीएक लाइन में हीरा मंडी को परिभाषित करें तो यह पाकिस्तान के लाहौर का एक रेड लाइट एरिया है। लाहौर में लोग हीरामंडी का नाम लेने में भी शरमाते हैं। हालांकि पहले ऐसा नहीं था। साल 1584 में मुग़ल बादशाह अकबर ने फतेहपुर सीकरी से हटाकर अपनी राजधानी लाहौर बना ली थी। अगले 14 साल तक लाहैर से ही मुगल शासक पूरे हिंदुस्तान पर राज चलाते रहे। लाहौर में अकबर का आलीशान किला आज भी मौजूद है। साल 1598 तक लाहौर तमाम रंग समेटे हुए मुल्क का सबसे खास शहर था। अपने शाही दरबार के अमीरों और मुलाज़िमों के लिए अकबर ने अपने महल के पास ही एक रिहायशी इलाक़ा बनवा दिया। देखते ही देखते यहां लोग बसते गए और यह इलाका मोहल्ले में तब्दील हो गया। शाही महल के पास में होने के कारण यह मोहल्ला शाही मोहल्ला कहलाने लगा।

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लाहौर के इस शाही मोहल्ले में काबुल से लाई गई तवायफों को बसाया गया। इन तवायफों का काम शाही मेहमानों आर दरबार के ऊंचे ओहदे पर बैठे लोगों का दिल बहलाना था। नाच गा कर महफिल को रोशन करने में इन तवायफों को महारथ हासिल थी। मुगल काल में तवायफ को वो दर्जा प्राप्त था जहां बड़े-बड़े खानदानी रईस अपने बच्चों को तहजीब और तमीज सीखने भेजते थे। लेकिन 18वीं सदी आते-आते तवायफों की परिभाषा बिल्कुल बदल गई।

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