कहानी नथ की: बाइबिल में जिक्र, इस्लाम में खास, क्या है नथ का इतिहास? जानिए तवायफों की 'पहचान' कैसे बनी सोलह श्रृंगार का सामान

Explained History of Nath in Hindi: नथ का इतिहास 4 हजार साल से भी पुराना है। नथ (Why Women Wear Nath) का चलन सबसे पहले इराक और इजराइल जैसे मिडिल ईस्ट के देशों में था। वहां नथ को 'शंफ' कहा जाता था। इजराइल में नथ (Nath Kyu Pehante hain) का बहुत ज्यादा महत्व था।

History Of Nath (Nose Ring)

History Of Nath (Nose Ring)

History Of Nath (नथ का इतिहास): हाल ही में संजय लीला भंसाली (Sanjay Leela Bhansali) की वेब सीरीज 'हीरामंडी' (Hiramandi) ने खूब सुर्खियां बटोरीं। यह सीरीज ना सिर्फ अपने विषय बल्कि अपने कॉस्ट्यूम को लेकर भी खूब चर्चा में रही है। तवायफों की जिंदगी पर आधारित इस पीरियड ड्रामा सीरीज में किरदारों द्वारा पहने कपड़ों के साथ ही आभूषणों ने भी खूब वाहवाही लूटी। तवायफों के आभूषणों में खासतौर पर चर्चा में रही नाकों में पहनी जाने वाली नथ (Nath)। इस सीरीज में ना सिर्फ तवायफों को नथ (Nose Ring) में दिखाया गया बल्कि उस्ताद नाम के एक समलैंगिक किरदार को भी संजय लीला भंसाली ने नथ (Nose Pin) पहनाई है। दरअसल नथ पहनने की परंपरा भारत में काफी पुरानी है। नथ पूरे भारत में अलग-अलग मौकों और मकसदों से पहनी जाती रही है। आइए डालते हैं नथ के खूबसूरत व रोचक परंपरा और इतिहास पर एक नजर:

माता पार्वती और नथहिंदू पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मां पार्वती नथ पहनती थीं। 51 शक्ति पीठों में से एक कन्या कुमारी में पार्वती मां का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में मां पार्वती की नथ पहने प्रतिमा विराजमान है। मां पार्वती के और भी कई मंदिर हैं जिनमें वह नथ पहने नजर आती हैं। हिंदू धर्म में यह भी कहा जाता है कि नथ पहनकर लड़कियां माता पार्वती के प्रति सम्मान दर्शाती हैं।

नथ का इतिहासनथ का इतिहास 4 हजार साल से भी पुराना है। नथ का चलन सबसे पहले इराक और इजराइल जैसे मिडिल ईस्ट के देशों में था। वहां नथ को 'शंफ' कहा जाता था। इजराइल में नथ का बहुत ज्यादा महत्व था। इजराइल में क्राइस्ट के जन्म से बहुत पहले से नाक छिदवाने का चलना था। वहां ना सिर्फ स्त्री बल्कि पुरुष भी नाक छिदवाते और नथ पहनते थे। ईसाइयों के पवित्र ग्रंथ बाइबिल में भी नथ का जिक्र है। बाइबिल में नथ को अनमोल तोहफा बताया है जो इब्राहिम के नौकर ने इसहाक की होने वाली पत्नी रेबेका को दिया था। बकौल बाइबिल यह नथ धन और वैभव का प्रतीक थी।

भारत में कहां से आया नथनथ पहनने का फैशन इजराइल से ईरान होते हुए पहले मुगलों और फिर भारत तक पहुंचा। भारत में नथ का चलन मुगल काल में शुरू हुआ। अरबी और फारसी संस्कृति के मर्दों और जनानाओं की तरह मुगल भी नथ पहनते थे। मुगल काल में नाक की नथ बाली स्टाइल की होती थी। मुगल काल में नथ इतने लोकप्रिय हुए कि हर स्त्री की पसंद बन गए। मुगल काल में कई तरह के नथ के डिजाइन सामने आए जो आज भी काफी पसंद किये जाते हैं। भले हमारे वेद पुराणों में नथ का जिक्र था लेकिन आम जन के बीच मुगल काल में पॉपुलर हुआ।

हिंदू धर्म में नथ का महत्व

हिन्दू विवाह में स्त्री को सोलह श्रृंगार करने होते हैं। पुराणों के अनुसार, सोलह श्रृंगार घर में सुख और समृद्धि लाने के लिए किया जाता है। सोलह श्रृंगार का जिक्र ऋग्वेद में भी किया गया है और इसमें ये कहा गया है कि सोलह श्रृंगार सिर्फ खूबसूरती ही नहीं बल्कि भाग्य को भी बढ़ाता है। वेदों में बताए गए इस सोलह श्रृंगार की चीजों में से एक है नथ। तभी लड़कियां शादी के मौके पर नथ जरूर पहनती हैं। नथ ख़ूबसूरती निखारने के साथ ही सुहाग का प्रतीक भी है। हालांकि नथ का सनातन धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म या सुहाग की निशानी से सदियों तक कोई लेना देना नहीं था। दिग्गज इतिहासकारों की किताबों से पता चलता है की भारत में 1500 BC तक नथ का प्रचलन नहीं था। । वैसे नथ का इतिहास परंपरा और दिलचस्प कहानियों से भरा पड़ा है।

नथ क्यों बना सुहाग की निशानीकुछ लोगों का मानना है कि नथ जो हा हिंदी के नाथ शब्द से बना है। नाथ का मतलब होता है स्वामी या फिर पति। इस कारण से नथ को पति की निशानी मानी जाती है। इसी कारण शादी के समय हिंदू महिलाएं नथ जरूर पहनती हैं। हालांकि इस तरह का वर्णन किसी वेद या पुराण में नहीं है।

मुस्लिम तहजीब में नथ की अहमियतमुगल इस्लाम को मानते थे। इस्लाम में नथ को पवित्र बताया गया है। दरअसल कुरान में जिक्र है कि पैगंबर मोहम्मद ने अपनी बेटी फातिमा की शादी के दिन उसकी नाक छिदवाई थी। उसके बाद नाक में नथ पहनाई गई थी। किसी भी मुस्लिम महिला की शादी बिना नाक छिदवाए और नथ पहने नहीं होती है। मुस्लिम महिलाओं के लिए नथ पहचान, गौरव और विरासत का प्रतीक है। यह एक साहसिक फैशन स्टेटमेंट भी है और कुछ मामलों में पैगंबर मुहम्मद का सम्मान करने का एक तरीका भी।

बहादुरी और रुतबे का प्रतीक नथ

नथ सिर्फ सौंदर्य का आभूषण और सुहाग का प्रतीक ही नहीं है। यह बहादुरी और रुतबे का भी प्रतीक है। भारत के अरुणाचल प्रदेश में अपातानी जनजाति की महिलाएं नाक में लकड़ी की ठेपीनुमा नथ पहनती थीं। ऐसा प्रचलित है कि इस जनजाति की महिलाएं काफी सुंदर होती थीं। वो इतनी सुंदर होती थीं कि पड़ोसी जनजाति के पुरुष उन्हें अगवा कर ले जाते थे। वो उन कामासुत मर्दों से अपनी रक्षा के लिए नाक में लकड़ी के बेडौल से नथ पहनती थीं ताकि वह बदसूरत दिख सकें। नाकों मे लकड़ी की ठेपी पहनने की प्रथा फिलहाल तो बंद हो चुकी है लेकिन आज भी इस जनजाति की बहुत सी महिलाएं नाक में उसी तरह की लकड़ी की ठेपी पहनती हैं।

वैसे नाकों में ऐसी ठेपी पहनने के पीछे कुछ समाजशास्त्री अलग तरह का तर्क भी देते हैं। कुछ समाजशास्त्रियों का मानना है कि नाकों में नथ के तौर पर लकड़ी की ठेपी के जरिये संकेत दिया जाता था कि लड़की अब वयस्‍क हो गई है। पहली बार मासिक धर्म होने के बाद लड़की के नाक में प्‍लग फिट कर दिए जाते थे।

संपन्नता का प्रतीक नथ

उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की महिलाओं की खूबसूरती में चार चांद लगाने का काम करती है नथ। इतिहासकारों के मुताबिक उत्तराखंड की रानियां नथ पहना करती थीं। बताया जाता है कि टिहरी में राजा रजवाड़ों का राज्य था और तब रानियां सोने की नथ पहनती थी। उत्तराखंड के महिलाओं की नथ काफी वजनी होती थी। पुराने वक्त में जब परिवार को आर्थिक तौर पर मुनाफा होता था तो महिला की नथ का वजन बढ़ाया जाता था। महिलाओं के नथ से ही पता चलता था कि परिवार कितना संपन्न है। इस तरह से नथ वहा संपन्नता का प्रतीक बन गया था।

वैसे भारत के तमाम पहाड़ी राज्यों में नथ को एक विशिष्ट दर्जा प्राप्त है। इस पहने बिना कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है। जैसे की शादी के घर में हल्दी के दिन सभी विवाहित महिलाएं नथ जरूर पहनती हैं। इसे काफी शुभ माना गया है। उत्तराखंड में शादियों के दौरान दुल्हन को उसके मामा नथ गिफ्ट करते हैं।

बात बंगाल की करें तो वहां भी नथ अमीरी का प्रतीक है। बंगाल के संभ्रांत परिवार की महिलाएं शादी-ब्याह या पूजा पाठ के किसी खास मौके पर सोने की भारी नथ पहनती हैं। वहां माना जाता था कि नथ जितनी भारी होगी वो महिला उतनी ही पैसों वाली होगी। वजनी होने के कारण ये नथ एक स्ट्रिंग से जुड़ी होती है जो कानों के पीछे जाता है। इससे नथ का वजन कम महसूस होता है। महाराष्ट्र में महिलाएं पेशवाई नथ पहनती हैं। इसका आकार प्रचलित नथों से थोड़ा अलग होता है। पहले ऐसी नथें पेशवा महारानियां पहनती थीं।

दक्षिण में नाक के दाईं ओर तो उत्तर में बाईं ओर पहनते हैं नथ

जहां उत्तर भारत में नाक के बाईं ओर नथ पहनी जाती है तो वहीं दक्षिण भारत के ज्यादातर राज्यों में नथ दोनों नाकों के बीच या फिर नाक के दाएं तरफ पहनते हैं। केरल और कर्नाटक की महिलाएं मुकुथी नामक पारंपरिक नाक की बालियां पहनती हैं जो हंस या कमल के आकार में होती हैं। केरल की महिलाएं पालक्का नामक पारंपरिक नथ भी पहनती हैं जो आमतौर पर लाल पत्थरों से सजी होती है और आकर्षक डिजाइन वाली होती है। तमिलनाडु में नथ को पुल्लकु का नाम दिया जाता है और इसे अक्सर मुकुथी के साथ पहना जाता है। पुलाकु नाक केबीच में पहनी जाने वाली नथ है और इसे अक्सर दुल्हन के शादी में पहनती है।

तवायफें और नथ

नथ और तवायफ का साथ चोली और दामन का रहा है। भारत के इतिहास में कोई तवायफ ऐसी नहीं होती थी जो नथ ना पहनती हो। हकीकत तो ये है कि नथ पहनाई और नथ उतरवाई किये बिना कोई स्त्री तवायफ बन ही नहीं पाती थी। दरअसल तवायफ बनने के लिए कई रस्मों को पूरा करना पड़ता था। इसी में से एक रस्म होती थी नथ उतरवाई की। नथ उतरवाई की रस्म बड़े धूमधाम से मनाई जाती थी। नथ उतरवाई की रस्म में लड़की अपनी वर्जिनिटी बेचती थी। दुल्हन की तरह सजी लड़की नाक में बाएं तरफ एक बड़ी सी नथ पहनती। ये नथ उसके कौमार्य का प्रतीक होती थी। जो सबसे बड़ी बोली लगाता, वो उस लड़की के साथ पहली रात बिताता। उस रात के बाद लड़की कभी भी नथ नहीं पहनती। अब उसे सिर्फ लौंग पहनने की इजाजत होती थी। नथ उतरवाई की रस्म के बाद स्त्री आधिकारिक तौर पर तवायफ का दर्जा हासिल करती थी।

नाक में बाएं ओर ही क्यों पहनते हैं नथ

भारतीय परंपरा में नथ को नाक के बाईं तरफ ही पहना जाता है। ज्योतिष के अनुसार इसके पीछे कई कारण मौजूद हैं। साथ ही विज्ञान की दृष्टि से भी यह लाभदायक है। मान्यता यह है कि नाक का बायां हिस्सा मासिक धर्म से जुड़ा होता है। जब इस हिस्से में छेद करके नथ पहनी जाती है तब मासिक धर्म को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

किस धातु की नथ उपयुक्त

ज्योतिष शास्त्र में सोने या चांदी की नथ पहनने की सलाह दी जाती है। सोना धातु जहां एक तरफ शरीर को ऊर्जा देता है, वहीं चांदी शरीर को शीतलता प्रदान करती है। चांदी को मन का कारक भी माना जाता है, इसलिए चांदी की नथ पहनने से मानसिक शांति भी मिलती है। हालांकि आजकल दूसरे धातुओं की भी नथ का चलन खूब ट्रेंड में है।

नथ से जुड़ा अंधविश्वास

नथ को लेकर कई अंधविश्वास भी जुड़े हुए हैं जो अकसर सुनने को मिलते हैं। कहा जाता है कि महिला के नाक से सीधे हवा अंदर नहीं जाना चाहिए, इसलिए उनके नाक में छेद किया जाता है, इससे पति का स्वास्थ्य ठीक रहता है। हालांकि, यह पूरी तरह से अंधविश्वास है। कुछ जगह पर कहा जाता है कि स्त्री के शरीर में मौजूद कामोत्तेजना को कम करने के लिए शरीर के कई हिस्सों में छेद किया जाता है। कान और नाक छिदवाना भी उसी मकसद का हिस्सा है। ये भी पूरी तरह से अंधविश्वास है।

सानिया मिर्जा और नथ

21वीं सदी के शुरुआती सालों में टेनिस स्टार सानिया मिर्जा ने हर किसी को अपने हुनर का मुरीद बना लिया था। सानिया अकसर नथ पहनती थीं। सानिया की नथ इतनी पॉपुलर हुई कि लड़कियों ने उसे हाथों हाथ लिया। सानिया मिर्जा के नथ की पॉपुलैरिटी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भोजपुरी में तो गाना ही बन गया था- सानिया मिर्जा के नथुनिया जान मारेला।

ग्लोबल फैशन ट्रेंड बन गया है नथनथ का चलन भले किसी भी मान्यता, सभ्यता या फिर दिखावे के लिए हो लेकिन आज स्त्रियों के श्रृंगार की ये नथ आज फैशन इंडस्ट्री में धूम मचाए हुए है। बड़े से बड़े फैशन डिजाइनर जब भी अपनी दुल्हन की कल्पना को रैंप पर उतारते हैं तो वो उनकी नाक में खूबसूरत नथ जरूर पहनाते हैं। दुनिया का हर बड़ा जूलरी ब्रांड एक से बढ़कर एक खूबसूरत और ट्रेंडी नथों के कलेक्शन के साथ मार्केट में मौजूद है। रिहाना, सोनम कपूर, बियोंसे और दीपिका पादुकोण जैसे दुनिया की मशहूर शख्सियतों ने रेड कार्पेट से सोशल मीडिया तक पर नथ पहन इसके ट्रेंड को ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर रफ्तार पकड़ाई है।

मौजूदा फैशन में नथब्राइडल लुक में अगर नथ न हो तो लुक अधूरा सा लगता है। इंडियन ब्राइडल लुक में नथ का चलन सदियों से हैं और संजय लीला भंसाली की फिल्मों और सब्यसाची के डिजाइनों ने इस क्रेज को और भी बढ़ाया है। लगभग हर दुल्हन अपने वेडिंग लुक के लिए परफेक्ट नथ चाहती है। मौजूदा समय में नथ की कई वैरायटी और डिजाइन मार्केट में मौजूद है। इनमें पारंपरिक नथों के मॉडर्न डिजाइन्स भी हैं।

...और अंत में: नथ से जुड़ी शर्मनाक खबर

मध्य प्रदेश के बारना नाम का एक गांव हैं। इस गांव में बंछाड़ा जनजाति के करीब 60-70 परिवार रहते हैं। यह जनजाति दशकों से वेश्यावृत्ति में लिप्त है। इनकी आमदनी का जरिया सिर्फ वेश्यावृत्ति ही है। इस जनजाति में बच्चियां जब 12-13 साल की हो जाती हैं तो उनके परिजन खुद उनकी बोली लगाते हैं। बोली के दौरान लड़की को नथ पहनाकर तैयार किया जाता है। सबसे अधिक बोली लगाने वाला लड़की की नथ उतराई करता है औऱ उसके कौमार्य को भंग करता है। नथ उतराई के बाद उस लड़की को एक झोपड़ी दे दी जाती है जिसमें वह पैसों के लिए अपने जिस्म का सौदा करती है। यकीन नहीं होता कि वह भारत जो एक राष्ट्र के तौर पर चांद तक पहुंच चुका है उस देश में लड़कियां प्रथा और पेट पालने के नाम पर इस तरह से अपना जिस्म बेचने को मजबूर हैं।

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Suneet Singh author

मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें

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