Ghevar: सावन में क्यों खाते हैं घेवर, कितने दिनों तक रहती है ताजा, जानिए इस देसी मिठाई का इतिहास और रेसिपी

Explained History and Recipe of Ghevar: घेवर कितने दिनों तक खाने योग्य रहती है ये उसके बनने के तरीके पर निर्भर करता है। अगर घेवर में मावा का इस्तेमाल हुआ है तो वह 4-5 दिनों तक ही खाने लायक रहती है। वहीं दूसरी तरफ फीके घेवर 15-20 दिनों तक चल जाते हैं। घेवर 300 रुपये से 1000 रुपये किलो तक के भाव से बिकते हैं। घेवर का दाम उसके तरीके पर निर्भर करता है।

Ghevar

Explained History and Recipe of Ghevar in Hindi: भारत में सावन दस्तक दे चुका है। सावन की बूंदों ने देशभर को अपने रंग में रंग लिया है। हर कोई इस मौसम के खुमार में मदहोश नजर आ रहा है। खाने पीने के शौकीनों के लिए भी सावन बेहद खास होता है। सावन में कई तरह के खास पकवान औऱ व्यंजन बनते हैं। बात सावन के पकवान की करें तो एक मिठाई का जिक्र जरूर होता है। इस मिठाई का नाम है घेवर। बिना घेवर के भाई-बहन का रक्षा बंधन का त्योहार पूरा नहीं माना जाता है। सावन या तीज पर भी बेटी के मायके से घेवर आता है, ऐसे में यह मिठाई बेटी को उसके मायके की याद दिलाती है। घेवर को अंग्रेजी में हनीकॉम्ब डेज़र्ट कहते हैं। बड़ी-बड़ी मिठाई की दुकानों पर घेवर इसी नाम से बिकती है। आइए जानते हैं देश दुनिया में अपनी मिठास घोलने वाले घेवर से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें:

घेवर का इतिहास (History Of Ghewar)

इस घेवर का स्वाद जितना पुराना है, उतनी पुरानी ही इसकी विरासत है। घेवर की उत्पत्ति को लेकर कई तरह के मत हैं। कुछ फूड हिस्टोरियन्स का मानना है कि देश के तमाम व्यंजनों की ही तरह घेवर भी पर्शिया से मुगलों के साथ भारत पहुंची थी। हालांकि इसे लेकर कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं। दूसरी और कुछ फूड इतिहासकारों का मानना है कि घेवर मूल रूप से भारतीय मिठाई ही है। ये लोग राजस्थान से घेवर की उत्पत्ति बताते हैं। जयपुर फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष सिया शरण लश्करी के मुताबिक घेवर सबसे पहले राजस्थान के सांभर में बनती थी। जयपुर की बसावट से पहले आमेर के राजा तीज त्योहार पर सांभर से घेवर मंगवाया करते थे।

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मारवाड़ी कहावतों में भी है घेवर

सिया शरण लश्करी के मुताबिक 1727 में सवाई जय सिंह द्वितीय ने जब जयपुर बसाया तो अलग-अलग जगहों से भिन्न-भिन्न प्रकार के हुनरबाजों को यहां ले आए। उन्हें सारी सुख सुविधाओं के साथ यहां बसाया गया। इसी कड़ी में सांभर से घेवर बनाने वाले कारीगरों को भी जयपुर में बसाया गया। जयपुर आगे चलकर राजस्थान की राजधानी बनी। राजधानी बनने के कारण यहां देश-विदेश से पर्यटकों का आना-जाना रहा। जिसने भी यहां का घेवर चखा वो इसका स्वाद भूल ना सका। यहीं से घेवर देश दुनिया तक पहुंचा। राजस्थान में गणगौर समेत कई तीज-त्योहार ऐसे हैं जिसमें घेवर बनता ही है। राजस्थान में आप कहीं भी चले जाइए करीब हर मौसम में आपको घेवर मिल जाएगा। मारवाड़ी में एक कहावत भी है - आरा म्हारा देवरा तने खिलाऊं मैं घेवर।
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