Birha Folk: क्या होता है बिरहा, क्या है भोजपुरी बिरहा गायकी का इतिहास और महत्व, लाख दुखों की एक दवा भी है बिरहा
Bhojpuri Birha Folk: गांव देहात के पुराने लोगों में से कुछ का मानना है कि बिरहा का नाम 'बिरहा बाबा' नाम के एक गायक से पड़ा, जो वियोग के गीत गाता था। वहीं कुछ लोग बिहारी यादव को ही बिरहा बाबा बताते हैं। ऐसे किसी भी दावे के लिखित प्रमाण तो है नहीं फिर भी 19वीं सदी को बिरहा के शुरुआत और प्रसार का समय माना जाता है।

भोजपुरी बिरहा का इतिहास और महत्व, जानें कितनी तरह से गाते हैं बिरहा
Bhojpuri Birha Folk: किसी भी समाज को पहचानना और परखना हो तो वहां की लोक कला को समझिए। वहां के लोक गीत और लोक कलाएं आपको उस समाज के हर पहलू से रूबरू करवाएंगी। देश में हर राज्य की अपनी अलग लोक संस्कृति है। बात पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की करें तो यहां कई बेहद प्रचलित लोक कलाएं हैं। इन्हीं में शुमार है बिरहा लोकगीत। बिरहा लोगों के बीच दशकों से अपनी जगह बनाए हुआ है। इसी बिरहा को दिल्ली के आसपास के इलाके में रागिनी तो छत्तीसगढ़ में पंडवानी कहते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिरहा गायन क्या है? कैसे शुरू हुआ बिरहा गायन? क्या है इस लोक कला का महत्व? आइए जानें बिरहा लोकगायन से जुड़ी हर वो बात जो आपको जरूर पता होनी चाहिए:
क्या होता है बिरहा? (What is Birha Folk)
बिरहा एक पारंपरिक लोकगीत शैली है, जो मुख्य रूप से भोजपुरी भाषा में गाई जाती है। यह विरह (वियोग) से निकला है, जिसका मतलब होता है प्रियजन से बिछड़ने का दर्द। बिरहा में प्रेम, वियोग, सामाजिक मुद्दे और कभी-कभी हास्य और व्यंग्य को भी शब्दों और लय के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। यह गीत आमतौर पर भावनात्मक होता है और गायक अपनी आवाज़ की ताकत से इसे प्रभावशाली बनाता है। बिरहा को अक्सर गांवों की चौपालों, मेलों या सामूहिक समारोहों में गाया जाता है।
बता दें कि अंग्रेजी साहित्य में जो Ballad है वही भोजपुरी में बिरहा है। लोक कथा से संबंधित सरल कथात्मक कविता, जिसके छंद छोटे और गाने में आसान होते हैं, Ballad कहलाती है। और आसान भाषा में समझें तो Ballad ऐसे लोकगीत हैं जो कहानियां सुनाते हैं। वे सभी प्रकार की कहानियां सुनाते हैं जिनमें इतिहास, किंवदंतियां, परियों की कहानियां, चुटकुले और प्रेमियों की कहानियां शामिल हैं। बिरहा में भी यही होता है। बस अंतर ये है कि बिरहा विरह के इर्द-गिर्द लिखा और गाया जाता है।
कैसे हुई बिरहा की शुरुआत? (History of Birha)
यूं तो बिरहा गायन के सटीक शुरुआत की कोई पुख्ता जानकारी तो नहीं है लेकिन बिरहा गायन का जनक पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के बिहारी यादव को माना जाता है। 19वीं सदी जब दो तिहाई के लगभग बीत चुकी थी तब बिहारी यादव वह रोटी की तलाश में गाजीपुर से बनारस पहुंचे और वहीं मजदूरी करने लगे। बनारस में ही उन्हें गायकी का शौक लगा। जब गाना शुरू किया तो उनकी गायकी में घर परिवार से बिछड़ने का दर्द और गांव छोड़ने की मजबूरी के विरह को जगह दी। विरह के कारण ही इस विधा को बिरहा का नाम दिया गया।
गांव देहात के पुराने लोगों में से कुछ का मानना है कि बिरहा का नाम 'बिरहा बाबा' नाम के एक गायक से पड़ा, जो वियोग के गीत गाता था। वहीं कुछ लोग बिहारी यादव को ही बिरहा बाबा बताते हैं। ऐसे किसी भी दावे के लिखित प्रमाण तो है नहीं फिर भी 19वीं सदी को बिरहा के प्रसार का समय माना जाता है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के भोजपुरी क्षेत्र में गायकी यह विधा खूब फली फूली। दरअसल इसके पीछे कई ऐतिहासिक और सामाजिक भी कारण थे:
1. पलायन: अंग्रेज़ी शासन के दौरान गांवों से शहरों की ओर मज़दूरी के लिए पलायन बढ़ा। परिवार और प्रियजनों से दूर रहने की पीड़ा को मज़दूरों ने गीतों में ढाला, जो बिरहा का आधार बना।
2. लोक परंपरा: यह कबीर और रहीम जैसे संत कवियों की दोहा-चौपाई शैली से प्रभावित था। भोजपुरी लोकगीतों जैसे कजरी और चैती से भी इसे प्रेरणा मिली।
3. मौखिक परंपरा: शुरुआत में यह मौखिक रूप में था, जिसे गांवों के मज़दूर और किसान रात को चौपाल पर गाते थे। धीरे-धीरे यह संगठित रूप में मंचों तक पहुँचा।
कितनी तरह का होता है बिरहा? (Forms of Birha Folk)
बिरहा मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है। वैसे पिछले कुछ सालों में बिरहा का एक और नया तरीका पॉपुलर हुआ है। इस कारण बिरहा के तीन प्रकार हो चुके हैं:
1. खड़ा बिरहा: यह सबसे पुराना और शुद्ध रूप है। इसमें एक गायक अकेले, बिना किसी वाद्य यंत्र के, अपनी आवाज़ की लय और ताकत से गीत प्रस्तुत करता है। इसमें गायक लंबे स्वर खींचता है और भावनाओं को गहराई से व्यक्त करता है। यह व्यक्तिगत दर्द या कहानी पर केंद्रित होता है।
2. मंचीय बिरहा: यह आधुनिक और समूह में गाया जाने वाला रूप है। इसमें ढोलक, हारमोनियम, करताल जैसे वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल होता है। दो या अधिक गायकों की टोलियां बनती हैं, जो सवाल-जवाब या तंज़ के अंदाज़ में गाती हैं। यह मनोरंजन और सामाजिक टिप्पणी के लिए लोकप्रिय है।
3. बिरहा दंगल: बिरहा दंगल कहते हैं। इसमें दो लोगों या दो समूह के बीच बिरहा गायन होता है। इसमें एक बिरहा के जरिए सवाल दागता है तो दूसरा जवाब देता है। इ
कभी-कभी बिरहा को इसके विषय के आधार पर भी बांटा जाता है, जैसे प्रेम बिरहा, वीर बिरहा (वीर रस की कहानियां) या सामाजिक बिरहा (समाज की समस्याओं पर)।
क्या है इसका महत्व? (Significance of Birha)
बिरहा भोजपुरी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है और इसका महत्व कई स्तरों पर है:
1. भावनात्मक अभिव्यक्ति: यह लोगों को अपने दर्द, प्रेम, और संघर्ष को व्यक्त करने का ज़रिया देता है। वियोग की भावना को यह गहराई से पेश करता है।
2. सामाजिक जुड़ाव: चौपालों और मेलों में गाया जाने वाला बिरहा समुदाय को एकजुट करता है। यह मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक संदेश भी देता है।
3. सांस्कृतिक पहचान: भोजपुरी भाषा और ग्रामीण जीवन की यह कला क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखती है।
4. प्रतिरोध का माध्यम: कई बार बिरहा में सामाजिक कुरीतियों, शोषण, और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई जाती है, जिससे यह लोक चेतना का हिस्सा बनता है।
5. जीवन शक्ति: मुश्किल हालात में भी बिरहा लोगों को हिम्मत और उम्मीद देता है।
और अंत में..
बिरहा सिर्फ़ एक गीत नहीं, बल्कि एक भावना, एक परंपरा, और एक समुदाय की आवाज़ है। यह गाँवों की मिट्टी से निकलकर आज मंचों और रिकॉर्डिंग तक पहुँचा है, लेकिन इसका मूल स्वर—विरह का दर्द—अब भी वही है।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें

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