Fahmi Badayuni Shayari: काश वो रास्ते में मिल जाए, मुझे मुंह फेर कर गुज़रना है.., हर लफ्ज़ से हो जाएगा इश्क, पढ़ें फहमी बदायूंनी के 25 मशहूर शेर
Fahmi Badayuni Shayari (फहमी बदायूंनी शायरी): फहमी बदायूंनी ने 80 के दशक में शायरी को अपना साथी बनाया। लेखपाल की नौकरी करते हुए जब उन्होंने शायरी शुरू की तो पुत्तन खान से अपना नाम बदलकर फहमी बदायूंनी कर लिया। उन्होंने अपनी कलम से ऐसा जादू चलाया कि साहित्य के आसमान में एक चमकीला सितारा बनकर उभरते चले गए। 'इरशाद' में आज पेश है फहमी बदायूंनी के चंद मशहूर शेर:
Fahmi Badayuni Shayari in Hindi Urdu
Fahmi Badayuni Shayari in Hindi (फहमी बदायूंनी के शेर): 21वीं सदी के चंद सबसे मशूर शायरों का जब भी बात होगी फहल बदायूंनी का नाम हमेशा बड़े अदब से लिया जाएगा। उनकी शायरी ने लोगों को ऐसा दीवाना बनाया कि मुशायरे में उनके शेर खत्म हो जाए लेकिन उन्हें सुनने वालों भीड़ नहीं। फ़हमी साहब के शेर में आम तौर पर इतने कम अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल होता है कि हर लफ़्ज़ की ज़िम्मेदारी बढ़ जाती थी। उन्होंने बड़ी जिम्मेदारी के साथ ऐसे शेर गढ़े जो सीधे सुनने पढ़ने वाले के दिल तक पहुंचे। उन्हीं में चंद शेर यहां हम आपके नजर कर रहे हैं:
मुझे तुमसे बिछड़ना ही पड़ेगा
मैं तुमको याद आना चाहता हूं
मिरे साए में उस का नक़्श-ए-पा है
बड़ा एहसान मुझ पर धूप का है
फिर उसी क़ब्र के बराबर से
ज़िंदा रहने का रास्ता निकला
काश वो रास्ते में मिल जाए
मुझ को मुँह फेर कर गुज़रना है
ख़ूँ पिला कर जो शेर पाला था
उस ने सर्कस में नौकरी कर ली
निगाहें करती रह जाती हैं हिज्जे
वो जब चेहरे से इमला बोलता है
शहसवारों ने रौशनी माँगी
मैं ने बैसाखियाँ जला डालीं
कहीं कोई कमाँ ताने हुए है
कबूतर आड़े-तिरछे उड़ रहे हैं
बहुत कहती रही आँधी से चिड़िया
कि पहली बार बच्चे उड़ रहे हैं
सख़्त मुश्किल था इम्तिहान-ए-ग़ज़ल
'मीर' की नक़्ल कर के पास हुए
तोड़े जाते हैं जो शीशे
वो नोकीले हो जाते हैं
कुछ न कुछ बोलते रहो हम से
चुप रहोगे तो लोग सुन लेंगे
आप तशरीफ़ लाए थे इक रोज़
दूसरे रोज़ ए'तिबार हुआ
मुझ पे हो कर गुज़र गई दुनिया
मैं तिरी राह से हटा ही नहीं
मर गया हम को डाँटने वाला
अब शरारत में जी नहीं लगता
मैं चुप रहता हूँ इतना बोल कर भी
तू चुप रह कर भी कितना बोलता है
जिस को हर वक़्त देखता हूँ मैं
उस को बस एक बार देखा है
अभी चमके नहीं 'ग़ालिब' के जूते
अभी नक़्क़ाद पॉलिश कर रहे हैं
आज पैवंद की ज़रूरत है
ये सज़ा है रफ़ू न करने की
जो कहा वो नहीं किया उस ने
वो किया जो नहीं कहा उस ने
लैला घर में सिलाई करने लगी
क़ैस दिल्ली में काम करने लगा
यार तुम को कहाँ कहाँ ढूँडा
जाओ तुम से मैं बोलता ही नहीं
अच्छे-ख़ासे क़फ़स में रहते थे
जाने क्यूँ आसमाँ दिखाई दिया
फहमी बदायूंनी ने 80 के दशक में शायरी को अपना साथी बनाया। लेखपाल की नौकरी करते हुए जब उन्होंने शायरी शुरू की तो पुत्तन खान से अपना नाम बदलकर फहमी बदायूंनी कर लिया। उन्होंने अपनी कलम से ऐसा जादू चलाया कि साहित्य के आसमान में एक चमकीला सितारा बनकर उभरते चले गए। उम्मीद है आपको उनकी ये शायरियां पसंद आई होंगी।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया क...और देखें
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