Gulzar Poetry: 'वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था..', मोहब्बत के साथ दिल टूटने का भी एहसास कराती हैं गुलज़ार की ये बेहतरीन गज़लें

Gulzar Best Shayari in Hindi: गर आप प्यार में नहीं हैं या आपका दिल भी नहीं टूटा है, फिर भी उनकी लिखी हुई शायरी (Gulzar Shayari) पढ़ने पर जो एहसास होता है, वो अद्भुत है। आज हम आपको गुलजार (Gulzar) साहब के चार ऐसे गज़ल (Gulzar Ghazals) पढ़ने का मौका दे रहे हैं जो आपका दिल जीत लेंगे।

Gulzar

गुलजार की शायरी (Gulzar Shayari In Hindi)

Best Ghazals Of Gulzar: गीत, गज़ल और शायरी की दुनिया में गुलज़ार का बड़ा नाम है। गुलज़ार अपने कलम से निकले सैकड़ों शेरों और गीतों से लाखों दिलों पर राज करते हैं। उनकी लिखी हुई गज़लें और नज़्म सिर्फ उर्दू में ही नहीं, बल्कि पंजाबी और हिंदी में भी है। अपनी शब्दों की जादूगरी के माध्यम से उन्होंने प्रेम, निराशा, और दिल टूटने जैसी भावनाओं को बखूबी लोगों के सामने रखा है। अगर आप प्यार में नहीं हैं या आपका दिल भी नहीं टूटा है, फिर भी उनकी लिखी हुई शायरी पढ़ने पर जो एहसास होता है, वो अद्भुत है। आज हम आपको गुलजार साहब के चार ऐसे गज़ल पढ़ने का मौका दे रहे हैं जो आपका दिल जीत लेंगे।

ज़िंदगी यूं हुई बसर तन्हा

ज़िंदगी यूं हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
अपने साए से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा
रात भर बातें करते हैं तारे
रात काटे कोई किधर तन्हा
डूबने वाले पार जा उतरे
नक़्श-ए-पा अपने छोड़ कर तन्हा
दिन गुज़रता नहीं है लोगों में
रात होती नहीं बसर तन्हा
हम ने दरवाज़े तक तो देखा था
फिर न जाने गए किधर तन्हा।

ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में

ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में
शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे
धूप उन्डेलो थोड़ी सी पैमाने में
जाने किस का ज़िक्र है इस अफ़्साने में
दर्द मज़े लेता है जो दोहराने में
दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में
हम इस मोड़ से उठ कर अगले मोड़ चले
उन को शायद उम्र लगेगी आने में।

वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था

वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था
हवाओं का रुख़ दिखा रहा था
बताऊँ कैसे वो बहता दरिया
जब आ रहा था तो जा रहा था
कुछ और भी हो गया नुमायाँ
मैं अपना लिक्खा मिटा रहा था
धुआँ धुआँ हो गई थीं आँखें
चराग़ को जब बुझा रहा था
मुंडेर से झुक के चाँद कल भी
पड़ोसियों को जगा रहा था
उसी का ईमाँ बदल गया है
कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था
वो एक दिन एक अजनबी को
मिरी कहानी सुना रहा था
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
ख़ुदा की शायद रज़ा हो इस में
तुम्हारा जो फ़ैसला रहा था

बीते रिश्ते तलाश करती है

बीते रिश्ते तलाश करती है
ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है
जब गुज़रती है उस गली से सबा
ख़त के पुर्ज़े तलाश करती है
अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार
पीले पत्ते तलाश करती है
एक उम्मीद बार बार आ कर
अपने टुकड़े तलाश करती है
बूढ़ी पगडंडी शहर तक आ कर
अपने बेटे तलाश करती है।
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Suneet Singh author

मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें

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