Gulzar Poetry: इश्क़ में रेफ़री नहीं होता, फ़ाउल होते हैं बेशुमार मगर.., मिट्टी की सोंधी खुशबू जैसी हैं गुलज़ार की ये चुनिंदा 6 कविताएं
Gulzar Poetry in Hindi, Gulzar Famous Poems: तुम्हारी ख़ुश्क सी आंखें भली नहीं लगतीं, सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएं, भेजी हैं.. आज 90 साल के हो चुके गुलजार ने कलम चलाना बंद नहीं किया है। आज भी उनके तरकश से एक से बढ़कर एक बेहतरीन नज्में निकलती हैं। 'इरशाद' के आज के अंक में गुलजार की चंद चुनिंदा कविताएं:
Gulzar Poetry in HIndi (गुलजार की मशहूर कविताएं), Gulzar Famous Poems
Gulzar Poetry, Shayari, Kavitayein in Hindi (गुलजार शायरी, कविताएं, गजल हिंदी में): मौजूदा दौर में गुलजार से ज्यादा शोहरत शायद किसी और दूसरे शायर को नहीं मिली। गुलजार ने फ़िल्में बनाई, उनके संवाद लिखे और उनके गीत भी लिखे। उनके लिखें गीतों को लोगों ने भरपूर प्यार दिया। जिंदगी के हर जज्बात को गुलजार ने अपनी कलम से बखूबी कागज पर उतारा। गुलजार ने जिस भाव को अपने शब्द दिये उसे अमर बना दिया। 60 के दशक से बतौर गीतकार अपना करियर शुरू करने वाले गुलज़ार ने कई बेहतरीन कविताएं भी लिखी हैं। पेश हैं गुलजार के शब्दों की चाशनी में डूबी उनकी चुनिंदा 6 कविताएं।
1. पिछले कुछ अरसे से
पिछले कुछ अरसे से
मैं देख रहा था कि
मेरी इस नज़्म का भी...
मेरी ही तरह कुछ-कुछ
रंग कच्चा-सा रहता है
ख़ुराक भी गिरने लगी
आमद भी बहुत कम है
थोड़ी-सी चढ़ाई से
दम फूलने लगता है
अपने ही वज़न से अब
अल्फ़ाज़ नहीं उठते
मिसरों की महक में भी
बाँहें जब खुलती हैं
आफ़ाक़ नहीं छूतीं...
कुछ ‘क्रेम्प’ से पड़ते हैं
दिखलाया तबीबों को
सब टेस्ट हुए उसके
तब सारे तबीबों ने
आपस में सलाह की और
सरग़ोशी के लहजे में
इतना ही कहा मुझसे—
“इस नज़्म को कैंसर है
इस नज़्म के बचने की
उम्मीद बहुत कम है!”
2. फऱवरी
ये मुर्ग़ी महीना है!
ये मुर्ग़ी.. दो पाँव पे बैठे-बैठे
परों के नीचे जाने कब अंडा देती है
सेती रहती है
चार साल सूरज के गिर्द ये, बैठे-बैठे, गर्दिश करती है
तब एक चूज़ा पैदा होता है इसका
इस साल उनतीस दिन हैं फ़रवरी के
मुर्ग़ी महीना फ़रवरी का है!
3. इक नज़्म मेरी चोरी कर ली कल रात किसी ने
इक नज़्म मेरी चोरी कर ली कल रात किसी ने
यहीं पड़ी थी बालकनी में
गोल तपाई के ऊपर थी
व्हिस्की वाले ग्लास के नीचे रखी थी
शाम से बैठा,
नज़्म के हल्के-हल्के सिप मैं घोल रहा था होंटों में
शायद कोई फ़ोन आया था...
अंदर जाके, लौटा तो फिर नज़्म वहाँ से ग़ायब थी
अब्र के ऊपर-नीचे देखा
सुर्ख़ शफ़क़ की जेब टटोली
झाँक के देखा पार उफ़क़ के
कहीं नज़र न आई, फिर वो नज़्म मुझे...
आधी रात आवाज़ सुनी, तो उठ के देखा
टाँग पे टाँग रखे, आकाश में
चाँद तरन्नुम में पढ़-पढ़ के
दुनिया भर को अपनी कह के नज़्म सुनाने बैठा था
4. इतवार
हर इतवार यही लगता है
देरे से आँख खुली है मेरी,
या सूरज जल्दी निकला है
जागते ही मैं थोड़ी देर को हैराँ-सा रह जाता हूँ
बच्चों की आवाज़ें हैं न बस का शोर
गिरजे का घंटा क्यों इतनी देर से बजता जाता है
क्या आग लगी है?
चाय...?
चाय नहीं पूछी ‘आया’ ने?
उठते-उठते देखता हूँ जब,
आज अख़बार की रद्दी कुछ ज़्यादा है
और अख़बार के खोंचे में रक्खी ख़बरों से
गर्म धुआँ कुछ कम उठता है...
याद आता है...
अफ़्फ़ो! आज इतवार का दिन है। छुट्टी है!
ट्रेन में राज़ अख़बार के पढ़ने की कुछ ऐसी हुई है आदत
ठहरीं सतरें भी अख़बार की, हिल-हिल के पढ़नी पड़ती हैं!
5. इश्क़ में ‘रेफ़री’ नहीं होता
इश्क़ में ‘रेफ़री’ नहीं होता
‘फ़ाउल’ होते हैं बेशुमार मगर
‘पेनल्टी कॉर्नर’ नहीं मिलता!
दोनों टीमें जुनूँ में दौड़ती, दौड़ाए रहती हैं
छीना-झपटी भी, धौल-धप्पा भी
बात बात पे ‘फ़्री किक’ भी मार लेते हैं
और दोनों ही ‘गोल’ करते हैं!
इश्क़ में जो भी हो वो जाईज़ है
इश्क़ में ‘रेफ़री’ नहीं होता!
6. शराब पीने से कुछ तो फ़र्क़ पड़ता है
शराब पीने से कुछ तो फ़र्क़ पड़ता है, ये लगता है!
ज़रा-सी वक़्त की रफ़्तार धीमी होने लगती है
गटागट पल निगलने की कोई जल्दी नहीं होती
ख़यालों के लिए ‘चेक-पोस्ट’ कम आते हैं रस्ते में
जिधर देखो, उधर पाँव तले हरियाली दिखती है
क़दम रखो तो काई है
फिसलते हैं, सँभलते हैं
जिसे कुछ लोग अक्सर डगमगाना कहने लगते हैं
शराब पीकर, जो ख़ुद से भी नहीं कहते
वो कह देते हैं लोगों की
संद कर देते हैं वो नज़्म कहकर!
बता दें कि गुलजार का जन्म 18 अगस्त 1934 को पाकिस्तान के दीना में हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार मुंबई चला आया। यहीं पर उन्होंने फिल्मों में बतौर गीतकार अपना हुनर पेश किया। आज 90 साल के हो चुके गुलजार ने कलम चलाना बंद नहीं किया है। आज भी उनके तरकश से एक से बढ़कर एक बेहतरीन नज्में निकलती हैं।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें
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