Guru Gobind Singh Ke Prerak Prasang: जीवन जीने की नई राह दिखाते हैं गुरु गोबिंद सिंह जी के ये 10 प्रेरक प्रसंग, शौर्य और साहस की मिसाल थे सिखों के 10वें गुरु
Guru Gobind Singh ke Prerak Prasang: आज, 6 जनवरी को सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती (Guru Gobind SIngh Jayanti 2025) मनाई जा रही है। शौर्य, साहस, पराक्रम और वीरता के प्रतीक श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों को पंच ककार धारण करने का आदेश दिया था। गुरु गोविंद सिंह जी ने ही वाहे गुरु की फतेह, वाहे गुरु का खालसा का नारा दिया था।

Guru Gobind Singh Prerak Prasang (गुरु गोविंद सिंह जी के प्रेरक प्रसंग)
Guru Gobind Singh ke Prerak Prasang: गुरु गोविंद सिंह सिखों के 10वें गुरु थे। उनका जन्म सन 1666 में पटना साहिब में हुआ था। पिता गुरु तेग बहादुर जी की मृत्यु के बाद 11 नवंबर, 1675 में वह गुरु बने। गुरु गोविंद सिंह जी ने ही खालसा पंथ की स्थापना की थी। धर्म और अन्याय के खिलाफ लड़ते हुए गुरु गोविंद सिंह ने अपने पूरे परिवार का बलिदान कर दिया। इसी कारण से उन्हें ‘सरबंसदानी’ (सर्ववंशदानी) भी कहा जाता है। गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा था कि हर मनुष्य का जन्म अच्छे कर्मों के लिए हुआ है। उन्होंने कहा था कि ईश्वर को प्राप्त करने के लिए अच्छे कर्म करने चाहिए। गुरु गोविंद सिंह जी के जीवन से जुड़े कई प्रेरक प्रसंग हैं जो लोगों को सदियों तक प्रेरणा देते रहेंगे। आइए डालते हैं उनके दो ऐसे ही प्रसंगों पर एक नजर:
जब गुरु गोविंद सिंह ने हकीम को लगा लिया गले
एक बार अपने दरबार में आए एक अनुभवी हकीम को गुरु गोविंद सिंह ने कहा कि तुम तो धरती पर परमात्मा का रूप हो। हमेशा जरूरतमंदों की मदद करना। एक दिन सुबह के समय हकीम खुदा की इबादत में लीन था तभी गुरु गोविंद सिंह उसके घर आए। हकीम को नमाज पढ़ता देख गोविंद सिंह उसके पास बैठ गए। हकीम इबादत में इतना लीन था कि उसे पता ही नहीं चला। थोड़ी देर बाद उसके कानों में आवाज़ आई- हकीम जी! मेरे साथ चलिए। मेरे पड़ोसी की तबीयत बहुत खराब है। उसे बचा लीजिए।
हकीम ने पुकार सुनते ही आंखे खोली तो देखा गुरु गोविंद सिंह पास बैठे हैं। अब वह सोच में पड़ गया कि क्या करूं। उसने आवाज लगा रहे शख्स के साथ जाने का तय किया। काफी देर बाद जब वह लौटा तो देखा कि गुरु गोविंद सिंह वहीं बैठकर उसका इंतजार कर रहे हैं। हकीम उनके पैरों में पड़ गया और माफी मांगने लगा।
गुरुजी ने भाव-विभोर होकर हकीम को गले से लगा लिया और बोले- मैं तुम्हारे कर्तव्य पालन और सच्चे सेवा भाव से बहुत प्रसन्न हूं। तुम इसको तनिक भी अपराध न मानो कि मेरे यहां उपस्थित होने के बावजूद तुम मरीज की सेवा करने चले गए। सच बात तो यह है कि दुखियों की सेवा ही गुरु को सच्ची सेवा देती है। तुमने अपना कर्तव्य निभाकर मुझे ऐसी ही खुशी प्रदान की है।
जब गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने बेटे का शव पड़ा रहने दिया
एक बार 1704 में गुरु गोविंद सिंह की सेना मुगलों से लड़ रही थी। मुगल सेना में 10 लाख सैनिक थे। इस युद्ध में गोंविद सिंहजी के पुत्र अजीत सिंह भी थे। दुश्मनों से लोहा लेते हुए वह शहीद हो गए। देर रात गुरु गोविंद सिंह अपने भाई दया सिंह के साथ युद्ध स्थल पर पहुंचे। वहां गुरुजी की नजर खून से लथपथ एक शव पर पड़ी। वह शव किसी अजीत सिंह का था। दया सिंह की आंखें भर आईं। उन्होंने गुरुजी से कहा- आपकी आज्ञा हो तो अपने कमरबंद से अजीत सिंह के शव को ढक दूं? गुरुजी ने उनसे पूछा - केवल अजीत सिंह के शव को ही कमरबंद से ढकना चाहते हो, ऐसा क्यों? दयासिंह ने कहा- गुरुजी, यह आपके लाडले बेटे का शव है।
गुरु गोविंद सिंह बोले - क्या वे सब मेरे पुत्र नहीं हैं, जिन्होंने मेरे एक संकेत मात्र पर बेहिचक अपने प्राणों की आहुति दे दी? यहां जितने भी शहीद सिख हैं, इन सबके शव ढक सकते हो तो जरूर ढक दो।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें

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