Guru Gobind Singh Ke Prerak Prasang: ये हैं गुरु गोबिंद सिंह जी की जिंदगी के 5 प्रेरक प्रसंग, जो ज्ञान के साथ-साथ देते हैं सीख
Guru Gobind Singh Ke Prerak Prasang (गुरु गोबिंद सिंह के प्रेरक प्रसंग): जनवरी का महीना सिख इतिहास में अहम स्थान रखता है। 17 जनवरी के दिन सिखों के 10वें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के बलिदान को श्रद्धा के साथ याद कर जयंती मनाई जाती है। गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ने सिख धर्म के लिए कई नियम बनाए, जिसका पालन आज भी किया जाता है। उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु के रूप में स्थापित किया किया और सामाजिक समानता का पुरजोर समर्थन किया।
Guru Gobind Singh Inspiring Life Stories
Guru Gobind Singh Ke Prerak Prasang: पौष माह की सप्तमी तिथि पर सिखों के 10वें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी की आज जयंती मनाई जाती है। इस साल आज यानी 17 जनवरी को गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती मनाई जा रही है। गुरु गोबिंद सिंह सिख धर्म के 9वें गुरु तेगबहादुर के पुत्र थे। गुरु गोबिंद सिंह जी को सौर्य और साहस का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु के रूप में स्थापित किया किया और सामाजिक समानता का पुरजोर समर्थन किया। गुरु गोबिंद सिंह जी अपने जीवनकाल में हमेशा दमन और भेदभाव के खिलाफ खड़े रहे, इसलिए वे लोगों के लिए एक महान प्रेरणा के रूप में उभरे। गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन अद्भुत घटनाओं से भरा है। इसी को लेकर आज हम आपके साथ उनके जीवन के 5 दिलचस्प और प्रेरक प्रसंग (Guru Gobind Singh Inspiring Incidents) आपके साथ शेयर कर रहे हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन के 5 प्रेरक प्रसंग-1) गुरु गोबिंद सिंह की तीन पत्नियां थीं। पहली पत्नी जीतो, से 3 पुत्र जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह, दूसरी पत्नी सुंदरी से अजीत सिंह, लेकिन तीसरी पत्नी साहिब देवन से कोई संतान नहीं थी। 1704 के चमकौर युद्ध में 40 बहादुर सिख योद्धाओं के साथ अजीत सिंह और जुझार सिंह सैकड़ों मुगल सैनिकों पर कहर बनकर टूट पड़े और आधी से ज्यादा सेना का सफाया कर दिया, लेकिन मुगल सेना गुरु गोबिंद सिंह की हत्या के फिराक में थी। तभी अजीत और जुझार पिता की ढाल बनकर आ गये। पिता को तो उन्होंने बचा लिया, लेकिन खुद शहीद हो गए। किसी अपनों के विश्वासघात से सरहिंद के नवाब वजीर खान ने गोबिंद सिंह के दो अन्य पुत्र जोरावर सिंह और फतेह सिंह और उनकी माता को गिरफ्तार कर लिया गया। दोनों बच्चों पर इस्लाम धर्म कबूल करने का दबाव डाला गया। इंकार करने पर दोनों को दीवार में चुनवा दिया गया। बेटों की इस नृशंस हत्या को सहन नहीं कर पाने से माता गुजरी भी शहीद हो गईं।
2) कहा जाता है कि जब तेग बहादुर असम की यात्रा में गए थे। उससे पहले ही होने वाले बच्चे का नाम गुरु गोबिंद सिंह रख दिया गया था। जिसके कारण उन्हे बचपन में गोबिंद राय कहा जाता था। गुरु गोबिंद बचपन से ही अपनी उम्र के बच्चों से बिल्कुल अलग थे। जब उनके साथी खिलौने से खेलते थे। और गुरु गोविंद सिंह तलवार, कटार, धनुष से खेलते थे।
3) गुरु गोबिंद सिंह बचपन ने लोगों की भलाई के लिए जी जान लगाने को उत्सुक रहते थे। एक बार तमाम कश्मीरी पंडित औरंगजेब द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन कराए जाने से बचने के लिए उनके पिता गुरु तेग बहादुर के पास सहायता मांगने आए थे। उस समय गुरु गोबिंद सिंह यानि गोविंद राय की उम्र सिर्फ नौ साल थी, लेकिन कश्मीरी पंडितों का कष्ट जानकर उन्होंने अपने पिता से कहा कि इस समय धरती पर आपसे ज्यादा महान और शक्तिशाली और कौन है, इसलिए आपको इस पंडितों की सहायता के लिए जरूर जाना चाहिए। आखिरकार उन्होंने अपने पिता को औरंगजेब के अत्याचार के खिलाफ लड़ने के लिए भेज ही दिया। इसके कुछ समय बाद ही पिता की के शहीद होने पर नौ बरस की कम उम्र में ही उन्हें सिक्खों के दसवें गुरु के तौर पर गद्दी सौंप दी गई थी।
4) गुरु गोबिंद सिंह जी एक लेखक भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की थी। कहा जाता है कि उनके दरबार में हमेशा 52 कवियों और लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसलिए उन्हें संत सिपाही की उपाधि भी दी गई। गुरु गोबिंद सिंह को ज्ञान, सैन्य क्षमता आदि के लिए जाना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह ने संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं भी सीखी थीं। साथ ही उन्होंने धनुष-बाण, तलवार, भाला चलाने की कला भी सीखी।
5) गुरु गोबिंद सिंह जी एक जन्म जात योद्धा थे, लेकिन वो कभी भी अपनी सत्ता को बढाने या किसी राज्य पर काबिज होने के लिए नहीं लड़े। उन्हें राजाओं के अन्याय और अत्याचार से घोर चिढ़ थी। आम जनता या वर्ग विशेष पर अत्याचार होते देख वो किसी से भी राजा से लोहा लेने को तैयार हो जाते थे, चाहे वो शासक मुगल हो या हिंदू। यही वजह रही कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने औरंगजेब के अलावा, गढ़वाल नरेश और शिवालिक क्षेत्र के कई राजाओं के साथ तमाम युद्ध लडे।गुरु गोबिंद सिंह जी की वीरता को यूं बयां करती हैं ये पंक्तियां 'सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊं'।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर कॉपी एडिटर कार्यरत हूं। मूल रूप से बिहार की रहने वाली हूं और साहित...और देखें
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