Guru Ravidas ki Vaani: संत रविदास जी की जयंती पर पढ़ें उनकी अनमोल वाणी, लहज़े में आ जाएगी मिठास
Guru Ravidas ki Vaani: संत रविदास का जन्म माघ मास की पूर्णिमा तिथि संवत 1388 को हुआ था। इनकी मधुर वाणी और विचार आज भी लोगों के बीच प्रसिद्ध हैं। उनकी जयंती पर आप भी देखें रविदास जी के अनमोल विचार।
Guru Ravidas ki Vaani
Guru Ravidas ki Vaani: गुरु रविदास ऐसे संत कवि थे जो हमेशा परमात्मा के बारे में ही सोचते थे। माघ मास की पूर्णिमा के मौके पर उनकी जयंती मनाई जाती है। इस साल यह त्योहार आज यानी 24 फरवरी को मनाया जा रहा है। संत रविदास का जन्म माघ मास की पूर्णिमा तिथि संवत 1388 को हुआ था। इनके पिता का नाम राहू और माता का नाम करमा था। संत रविदास को अनेक नामों से बुलाया जाता है जैसे गुरु रविदास, रैदास, रूहिदास और रोहिदास। संत रविदास जयंती के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व माना जाता है। संत रविदास धार्मिक विचार के थे। इनकी मधुर वाणी और विचार आज भी लोगों के बीच प्रसिद्ध हैं। ऐसे में आज हम आपके लिए संत रविदास जी के कुछ प्रसिद्ध वाणी लेकर आए हैं जिन्हें पढ़ आपके अंदर भी सकारत्मकता पैदा होगी।
संत रविदास के दोहे और प्रेरक विचार
संत रविदास के लिए कर्म ही पूजा थी। वो बाहरी दिखावे और आडम्बर की बजाय सिर्फ गुणों को सम्मान देने की बात करते थे। 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' उन्हीं की कहावत है जिसका मतलब है कि अगर हमारा मन शुद्ध है तो ईश्वर हमारे हृदय में ही निवास करते है।
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन।।
अर्थ: किसी का पूजन सिर्फ इसीलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि वह किसी ऊंचे पद पर है। इसकी जगह अगर कोई ऐसा व्यक्ति है, जो किसी ऊंचे पद पर तो नहीं है लेकिन बहुत गुणवान है तो उसका पूजन अवश्य करना चाहिए।
मन ही पूजा मन ही धूप,
मन ही सेऊं सहज स्वरूप।।
अर्थ: रविदासजी कहते हैं कि निर्मल मन में ही भगवान वास करते हैं। अगर आपके मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है तो आपका मन ही भगवान का मंदिर, दीपक और धूप है।
रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच
नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच
अर्थ: संत रविदास जी के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है। किसी व्यक्ति को निम्न उसके कर्म बनाते हैं। इसलिए हमें सदैव अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए।
करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
अर्थ: हमें हमेशा कर्म में लगे रहना चाहिए और कभी भी कर्म के बदले मिलने वाले फल की आशा नही छोड़नी चाहिए क्योंकि कर्म करना हमारा धर्म है तो फल पाना हमारा सौभाग्य है।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा
अर्थ: राम, कृष्ण,हरि, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग अलग नाम है ठीक वैसे ही वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथो में एक ही ईश्वर का गुणगान किया गया है। इस प्रकार सभी ईश्वर भक्ति के लिए सदाचार का पाठ सिखाते हैं।
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