Happy Dussehra 2023 Wishes Images, Quotes in sanskrit: ज्येष्ठस्तस्य महाबाहुः पुत्रः प्रियकरः प्रभुः...इन शानदार मैसेज से संस्कृत में दें रिश्तेदारों को बधाई

Happy Dussehra 2023 Wishes Images, Messages, Photos, and Status in sanskrit: 15 अक्टूबर से शुरू हुए शारदीय नवरात्रि का आज समापन है। आज देशभर में विजयदशमी मनाया जा रहा है। विजयादशमी को दशहरा भी कहा जाता है। इसे बड़े धूम धाम के साथ मनाया जाता है। विजयादशमी का त्योहार अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है। दशहरा के दिन ही भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण को युद्ध में पराजित किया था और माता सीता को उसके चंगुल से छुड़ाया था।

Happy Dussehra 2023 Wishes Images in sanskrit

Happy Dussehra 2023 Wishes Images in sanskrit

Happy Dussehra 2023 Wishes Images, Messages, Photos, and Status in sanskrit: 15 अक्टूबर से शुरू हुए शारदीय नवरात्रि का आज समापन है। आज देशभर में विजयदशमी मनाया जा रहा है। विजयादशमी को दशहरा भी कहा जाता है। इसे बड़े धूम धाम के साथ मनाया जाता है। विजयादशमी का त्योहार अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है। दशहरा के दिन ही भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण को युद्ध में पराजित किया था और माता सीता को उसके चंगुल से छुड़ाया था। इसी की खुशी में देशभर में दशहरे का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन लोगों रावण दहन देखने जाते हैं और साथ ही एक दूसरे को बधाईयां भी देते हैं। ऐसे में अगर आप भी अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और करीबियों को विजयदशमी की शुभकामना देना चाहते हैं तो संस्कृत में ये मैसेज, कोट्स, स्टेटस भेज सकते हैं। यहां देखें विजयादशमी संस्कृत मैसेज, कोट्स, शायरी, स्टेटस।

दशहरा संस्कृत विशेज

ज्येष्ठस्तस्य महाबाहुः पुत्रः प्रियकरः प्रभुः।
पितुर्निदेशान्निष्क्रान्तः प्रविष्टो दण्डकावनम्।।
न चापि त्रिषु लोकेषु राजन्विद्येत कश्चन।
राघवस्य व्यलीकं यः कृत्वा सुखमवाप्नुयात्।।
न तु धर्मोपसंहारमधर्मफलसंहितम् ।
तदेव फलमन्वेति धर्मश्चाधर्मनाशन:।।
तस्य तां स्पृशतो गात्रं तपसा न विनाशितम्।
न तदग्निशिखा कुर्यात्संस्पृष्टा पाणिना सती।।5.59.4।।
जनकस्यात्मजा कुर्याद्यत्क्रोधकलुषीकृता।
जाम्बवत्प्रमुखान् सर्वाननुज्ञाप्य महाहरीन्।।
अहं तु रावणं युद्धे ससैन्यं सपुरस्सरम्।
सहपुत्त्रं वधिष्यामि सहोदरयुतं युधि।।
सागरोऽप्यतियाद्वेलां मन्दरः प्रचलेदपि।
न जाम्बवन्तं समरे कम्पयेदरिवाहिनी।।
पनसस्योरुवेगेन नीलस्य च महात्मनः।
मन्दरोऽप्यवशीर्येत किंपुनर्युधि राक्षसाः।।
अश्विपुत्रौ महाभागावेतौ प्लवगसत्तमौ।
एतयोः प्रतियोद्दारं न पश्यामि रणाजिरे।।
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
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