Harivansh Rai Bachchan Poems: कविता के रास्ते किसी और ही दुनिया में ले जाते थे हरिवंश राय बच्चन, पढ़ें बच्चन साहब की कुछ चुनिंदा कविताएं
Harivansh Rai Bachchan Poems: हरिवंश राय बच्चन की कविता-यात्रा बचपन से ही शुरू हो गई थी और स्कूली दिनों से तुकबंदियां करने लगे थे। 1933 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हुए कवि-सम्मेलन में उनके द्वारा ‘मधुशाला’ के पाठ को श्रोताओं ने ख़ूब पसंद किया और धीरे-धीरे उनकी मंचीय ख्याति इतनी बढ़ गई कि प्रेमचंद ने भी एक बार कहा कि मद्रास में भी यदि कोई किसी हिंदी कवि का नाम जानता है तो वह बच्चन का नाम है।
Harivansh Rai Bachchan Best Poems
Harivanshrai Bachchan Best Poems: साहित्य की दुनिया में हरिवंशराय बच्चन का नाम बहुत बड़ा है। उनका जन्म इलाहाबाद के चक मोहल्ले में एक संभ्रांत कायस्थ परिवार में 27 नवंबर 1907 को हुआ। उन्हें नाम दिया गया ‘हरिवंशराय’ और घर में उन्हें प्यार से ‘बच्चन’ पुकारा जाता था। आरंभिक शिक्षा-दीक्षा के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. की परीक्षा पास की और वहीं अध्यापन करने लगे। हरिवंश राय बच्चन की कविता-यात्रा बचपन से ही शुरू हो गई थी और स्कूली दिनों से तुकबंदियां करने लगे थे। 1933 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हुए कवि-सम्मेलन में उनके द्वारा ‘मधुशाला’ के पाठ को श्रोताओं ने ख़ूब पसंद किया और धीरे-धीरे उनकी मंचीय ख्याति इतनी बढ़ गई कि प्रेमचंद ने भी एक बार कहा कि मद्रास में भी यदि कोई किसी हिंदी कवि का नाम जानता है तो वह बच्चन का नाम है। हरिवंश राय बच्चन ने यूं तो कई बेहतरीन कविताओं और साहित्य की रचना की है। लेकिन हम आपके लिए लेकर आए हैं उनके द्वारा रचित कुछ बेहद पॉपुलर कविताएं:
नीड़ का निर्माण फिर-फिर
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
वह चले झोंके कि काँपे
भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर
गिर पड़े, टूटे विटप वर,
हाय, तिनकों से विनिर्मित
घोंसलो पर क्या न बीती,
डगमगाए जबकि कंकड़,
ईंट, पत्थर के महल-घर;
बोल आशा के विहंगम,
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता
गर्व से निज तान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों
में उषा है मुसकराती,
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग पंक्ति गाती;
एक चिड़िया चोंच में तिनका
लिए जो जा रही है,
वह सहज में ही पवन
उंचास को नीचा दिखाती!
नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नव गान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उसपर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियां
मुर्झाई कितनी वल्लरियां
जो मुर्झाई फिर कहां खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठतें हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई
मृदु मिटटी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई
आ रही रवि की सवारी
नव-किरण का रथ सजा है,
कलि-कुसुम से पथ सजा है,
बादलों-से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक धारी।
आ रही रवि की सवारी।
विहग, बंदी और चारण,
गा रही है कीर्ति-गायन,
छोड़कर मैदान भागी, तारकों की फ़ौज सारी।
आ रही रवि की सवारी।
चाहता, उछलूं विजय कह,
पर ठिठकता देखकर यह -
रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी।
आ रही रवि की सवारी।
अग्निपथ
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु स्वेद रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
उनका पहला काव्य-संग्रह ‘तेरा हार’ 1932 में प्रकाशित हुआ। 1935 में प्रकाशित उनका दूसरा संग्रह ‘मधुशाला’ उनकी स्थायी लोकप्रियता और प्रसिद्धि का कारण बना। बच्चन मधुशाला का पर्याय ही बन गए।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें
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