Hasrat Mohani Shayari in Hindi, Urdu (हसरत मोहानी शायरी)
Harsat Mohani Shayari, Poetry, Ghazal in Hindi: हसरत मोहानी अगर उर्दू ग़ज़ल का एक बड़ा नाम हैं तो ये वही थे जिन्होंने मुल्क को इन्क़लाब ज़िंदाबाद का नारा दिया। हसरत मोहानी की शख्सियत के कई आयाम थे। वह एक लाजवाब शायर, एक महान मगर नाकाम सियासतदां, एक सूफ़ी, दरवेश और योद्धा, एक पत्रकार, आलोचक और शोधकर्ता थे। सियासत को न हसरत मोहानी रास आए न सियासत उनको रास आई। उनके इंतकाल के साथ उनका सियासी संघर्ष इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया लेकिन शायरी उनको आज भी पहले की तरह ज़िंदा रखे हुए है। आइए डालते हैं हसरत मोहानी की कलम से निकले कुछ चुनिंदा शेरों पर एक नजर:
1. चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
2. नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं
3. चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है
4. आरज़ू तेरी बरक़रार रहे
दिल का क्या है रहा रहा न रहा
5. वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
6. तेरी महफ़िल से उठाता ग़ैर मुझ को क्या मजाल
देखता था मैं कि तू ने भी इशारा कर दिया
7. आईने में वो देख रहे थे बहार-ए-हुस्न
आया मिरा ख़याल तो शर्मा के रह गए
8. हम क्या करें अगर न तिरी आरज़ू करें
दुनिया में और भी कोई तेरे सिवा है क्या
9. बरसात के आते ही तौबा न रही बाक़ी
बादल जो नज़र आए बदली मेरी नीयत भी
10. इक़रार है कि दिल से तुम्हें चाहते हैं हम
कुछ इस गुनाह की भी सज़ा है तुम्हारे पास
11. कट गई एहतियात-ए-इश्क़ में उम्र
हम से इज़हार-ए-मुद्दआ न हुआ
12. कहने को तो मैं भूल गया हूँ मगर ऐ यार
है ख़ाना-ए-दिल में तिरी तस्वीर अभी तक
13. देखने आए थे वो अपनी मोहब्बत का असर
कहने को ये है कि आए हैं अयादत कर के
14. ऐसे बिगड़े कि फिर जफ़ा भी न की
दुश्मनी का भी हक़ अदा न हुआ
15. दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
16. आप को आता रहा मेरे सताने का ख़याल
सुल्ह से अच्छी रही मुझ को लड़ाई आप की
17. शेर दर-अस्ल हैं वही 'हसरत'
सुनते ही दिल में जो उतर जाएँ
18. और तो पास मिरे हिज्र में क्या रक्खा है
इक तिरे दर्द को पहलू में छुपा रक्खा है
19. रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम
दहका हुआ है आतिश-ए-गुल से चमन तमाम
20. वाक़िफ़ हैं ख़ूब आप के तर्ज़-ए-जफ़ा से हम
इज़हार-ए-इल्तिफ़ात की ज़हमत न कीजिए
21. मालूम सब है पूछते हो फिर भी मुद्दआ'
अब तुम से दिल की बात कहें क्या ज़बाँ से हम
22. बर्क़ को अब्र के दामन में छुपा देखा है
हम ने उस शोख़ को मजबूर-ए-हया देखा है
बता दें कि हसरत मोहानी लखनऊ के क़रीब उन्नाव के क़स्बा मोहान में 1881 में पैदा हुए। वालिद अज़हर हुसैन एक जागीरदार थे और फ़तेहपुर में रहते थे। आज हसरत मोहानी अपनी शायरी और गजलों के अल्फाजों के जरिए अमिर हो चुके हैं। उम्मीद करते हैं आपको हसरत मोहानी के ये चुनिंदा शेर जरूर पसंद आए होंगे।