पहले बारिश से बचाना नहीं था छतरी का काम, कभी बना शाही शान तो कभी औरतों का सामान, बेहद खास है Umbrella का इतिहास
Story of Umbrella: आपने कभी सोचा है कि छतरी का चलन कब से है। किसने किया था छाते का आविष्कार या पुराने जमाने में कैसे होते थे छाते? अगर आपके मन में ऐसे सवाल उठ रहे हैं तो यह आर्टिकल पढ़ने के बाद आपके पास सारे जवाब होंगे।
Explained History and Evolution Of Umbrella
History and Evolution of Umbrella: भारत में मानसून आ चुका है। आसमान से गिरने वाली बारिश की बूंदें धरती को भिगो रही हैं। मानसून में दो चीजें सबसे ज्यादा नजर आती हैं। पहली तो तन के साथ ही मन को भी भिगो देने वाली बारिश और दूसरी इस बारिश से बचाने वाली छतरी। वही छतरी जिसे अंग्रेजी में अम्ब्रेला कहा जाता है। छतरी और बरसात, दोनों का काम एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत है। फिर भी दोनों का साथ दशकों ही नहीं सैकड़ों हजारों साल से बना हुआ है। जी हां यह छतरी ही है जो हमें बारिश से तो बचाती ही है, धूप और बर्फबारी से भी हमारी सुरक्षा करती है। लेकिन आपने कभी सोचा है कि छतरी का चलन कब से है। किसने किया था छाते का आविष्कार या पुराने जमाने में कैसे होते थे छाते? अगर आपके मन में ऐसे सवाल उठ रहे हैं तो यह आर्टिकल पढ़ने के बाद आपके पास सारे जवाब होंगे।
Umbrella: क्या कहता है नाम'अम्ब्रेला' शब्द अंग्रेजी है। यह लैटिन शब्द 'अम्ब्रा' से निकला है जिसका अर्थ है 'छाया' या 'परछाई'। छाया को इटली में 'ओम्ब्रा' कहा जाता है। धूप में छाया देने के मकसद से बनी छतरी को इसी कारण अम्ब्रेला कहा गया। वैसे अंग्रेजी भाषा में छाते के लिए और भी कई शब्द हैं। इनमें सबसे आम है - ब्रॉली। यूनाइटेड किंगडम के साथ ही ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, केन्या और आयरलैंड में भी छतरी को ब्रॉली कहा जाता था। लगभग 200 साल पहले अमेरिका में छतरियों को 'बम्बरशूट' कहा जाता था।
धूप से बचने के लिए बनी थी छतरीआपको जानकर हैरानी होगी कि छतरी का इतिहास और चलन 5000 साल पुराना है। पुरातात्विक अभिलेखों में इसके प्रमाण संजो कर रखे गए हैं। मानव सभ्यता की मौजूद प्राचीनतम कलाकृतियों में भी उन्हें छाते के सात दिखाया गया है। इसका सबसे पुराना उदाहरण पश्चिम एशिया की मेसोपोटामिया सभ्यता का है। उस समय काल में जैसी धूप होती थी वह हवा और बारिश से भी ज्यादा तकलीफदेह होती थी। तब तेज धूप से बचने के लिए छतरी बनाई जाती थी। वो छतरियां ताड़ के पत्तों या नील के घास से बनाई जाती थी। उन छातों का वजन काफी होता था। इसी कारण उन्हें उठाने के लिए कई लोगों की जरूरत होती थी। प्राचीन मेसोपोटामिया और मिस्र में, छतरियों का उपयोग उच्च वर्गों खासतौर पर महिलाओं द्वारा किया जाता था।
रोम में बारिश से बचने के लिए बनाया छाताशुरुआत छतरियों का काम धूप से बचाना होता था। लेकिन बारिश से बचने के लिए छतरियों के उपयोग का श्रेय रोमन साम्राज्य को जाता है। करीब 3500 ईसा पूर्व में रोम के शासक छतरियों का इस्तेमाल बारिश से बचने के लिए करते थे। उनके छाते जानवरों की खाल से बने होते थे। छत्र को बांस या दूसरी मजबूत लकड़ी के सहारे पकड़ा जाता था। हालांकि ये छाते बहुत ज्यादा बरसात नहीं झेल पाते थे। दरअसल बारिश में भीगने से जानवर की खाल से बना छत्र खराब हो जाता था। हालांकि ये फिर भी ताड़, घास या लकड़ी के बने छातों से ज्यादा टिकाऊ था।
चीन ने किया वाटरप्रूफ छतरी का आविष्कार
हम आज जिस तरह की छतरियां देखते हैं उसका श्रेय चीन को जाता है। रोम में छतरियों के इस्तेमाल के करीब 500 साल बाद यानी 3000 ईसा पूर्व में चीन ने पानी रोकने वाली छतरी ईजाद की। उन्होंने छतरियों की वाटरप्रूफिंग शुरू की। ये लोग छाते पर मोम रगड़कर उसे ऐसा बना देते थे कि पानी उसपर टिकता नहीं था। चीन ने हमें सिखाया कि इन छतरियों के जरिए हम खुद को बारिश से कैसे बचा सकते हैं। पिछले 3000 सालों में छाते के रंग रूप में खूब सुधार हुआ और सुविधा के हिसाब से बदलाव भी आया।
छतरी बन गई महिलाओं की पहचानयूरोप 16वीं शताब्दी में छाते से रूबरू हुआ। दरअसल तब ट्रेड रूट्स बने। इन्ही रास्तों से छाते मिस्र, रोम और ग्रीस होते हुए यूरोप तक पहुंचे। यूरोपियन महिलाओं ने छतरी को हाथोंहाथ लिया। यह छतरी उन्हें धूप और बरसात से बचाने वाला था कमाल का औजार था। तब यूरोप में भी ये छाते उच्च वर्ग के लोगों के द्वारा ही किया जाता था। यूरोप में 1750 में छतरियों का उत्पादन शुरू हुआ। तब छतरी महिलाओं के लिए एक जरूरी सामान और फैशन इक्विपमेंट बन गया। तब माहौल कुछ ऐसा बना कि छतरी लड़कियों का ही समान बनकर रह गई।
मर्दों के बीच यूं पॉपुलर हुआ छातामर्दों के बीच छतरी को पॉपुलर बनाने का श्रेय जोनास हेनवे नाम के पर्शियन घुमंतू को जाता है। 1750 से लगातार 30 सालों तक जोनास छतरी पकड़े नजर आए। चाहे बारिश हो या धूप, वह लंदन की सड़कों और गलियों में अपने छाते के साथ दिख जाते। तब छातों का संबंध लड़कियों से होने के कारण लोगों ने उनका मजाक भी उड़ाया। लेकिन समय के साथ पुरुषों को छाते की उपयोगिता समझ आई। धीरे-धीरे ब्रिटेन और फिर दूसरे देशों में पुरुष भी छतरी का इस्तेमाल करने लगे। ब्रिटेन में तब छतरियों को हेनवे ही कहा जाने लगा। यह नाम जोनास हेनवे के नाम पर पड़ा था।
मॉडर्न छतरियों का चलनमौजूदा दौर में जिस तरह के छाते हम देखते हैं उसका आविष्कार 1852 में सैमुअल फॉक्स ने किया था। सैमुअल ने आज की तरह स्टील रिब्ड डिजाइन वाली छतरी बनाई। उसका डिजाइन उन्होंने बेच दिया लंदन के एक व्यापारी जेम्स स्मिथ को। जेम्स स्मिथ ही वो शख्स थे जिन्होंने लंदन में सबसे पहली छाते की दुकान साल 1830 में खोली थी। आने वाले कुछ सालों में ही जेम्स हर साल करीब 20 लाख छाते बेचने लगे।
साल 1923 में हंगरी के बालोग ब्रदर्स ने फोल्डेबल या छतरी का पेटेंट कराया। उसके पांच साल बाद 1928 में हंस हाउप्ट ने कॉम्पैक्ट पॉकेट छतरी बनाकर मार्केट में तहलका मचा दिया। आकार में छोटा और कैरी करने में आसानी के कारण ये पॉकेट छतरियां खूब पॉपुलर हुईं।
भारत में छतरी का इतिहासभारत में भी छाते यूरोप की तरह ही मिस्र और रोम के रास्ते आए थे। भारत में छतरियां शाही पहचान हुआ करती थीं। दरअसल तब छाते यहां सिर्फ नवाब और राजा-महाराज टाइप के लोग ही इस्तेमाल करते थे। तमाम तस्वीरों और कलाकृतियों में अलग-अलग रियासतों के राजा माहाराज छतरी के नीचे नजर आ जाएंगे। इनके छत्र काफी भव्य होते थे जिसे साथ पकड़ने के लिए खासतौर पर लोग लगे रहते थे।
छतरी का समाजिक महत्वभारत में अंग्रेजों के आने के बाद और दुनियाभर में आई औद्योगिक क्रांति ने छातों को घर-घर तक पहुंचा दिया। एक वक्त ऐसा भी था जब गांव के बड़े जमींदारों की पहचान उनके छाते से होती थी। यूपी बिहार के गांवों की संस्कृति में छतरियों का इतना महत्व था कि जब किसी शादी ब्याह के निमंत्रण में कोई पहुंच नहीं पाता था तो नाऊ के हाथों वह अपना छाता और शगुन भिजवा दिया करते थे। जैसे-जैसे छतरियां समाज के हर वर्ग के लिए सुलभ होती गई ये प्रथा भी खत्म होती गई।
छतरी का धार्मिक महत्वछतरी का धार्मिक महत्व भी कई संस्कृतियों में देखने को मिलता है। हिंदू धर्म में तो देवी देवताओं को भी छतरियां भेंट की जाती हैं। इन्हें छत्र कहा जाता है। दरअसल भारत में आधुनिक छतरी के उपयोग से पहले से ही छत्र चढ़ाए जाते रहे हैं। छत्र जैसा होने के कारण ही अंग्रेजों का अंब्रेला भारत में छतरी कहलाया।
छतरी का उपयोग रोमन कैथोलिकों द्वारा उनके कुछ समारोहों और जुलूसों में किया जाता है। छत्र को पवित्र संस्कार के ऊपर रखा जाता है। कुछ चर्चों में, छतरियों का उपयोग बिशप के सम्मान के संकेत के रूप में किया जाता है।
बॉलीवुड में छतरी भारतीय फिल्म इंडस्ट्री ने भी छतरियों को हाथोंहाथ लिया। ना जाने कितने ही कालजयी गाने और सुपरहिट फिल्मों में छाते को केंद्र में रखा गया है। फिर चाहे वह राजकपूर और नरगिस पर फिल्माया प्यार हुआ इकरार हुआ हो या फिर फिल्म गोपी किशन का छतरी ना खोल बरसात में हो, छतरी पर खूब गाने बने। दुनिया भर की ऑल टाइम 100 कल्ट फिल्मों में शामिल इकलौती भारतीय फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में छतरी को सबसे अहम किरदार के तौर पर दिखाया गया है।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें
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