जब आम के लालच में ना पड़कर मुगल बादशाह औरंगजेब ने कर दी थी चढ़ाई, खूनी भी रहा है आम का इतिहास
History Of Mangoes: भारत के इतिहास में आम का जिक्र सबसे पहले चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 632 ई. में किया था। ह्वेनसांग ने बताया था कि यह फल बेहद मीठा और स्वादिष्ट होता है।
जानिए क्या है मीठे आम का कड़वा इतिहास।
History and Origin of Mangoes: आम को फलों का राजा कहा जाता है। भारत में आम अप्रैल से जून तक के महीने में लगते हैं। हालांकि कुछ राज्यों में मार्च के महीने में ही आम आ जाते हैं। आम जितना स्वादिष्ट है उसका इतिहास भी उतना ही रोमांचक और दिलचस्प है। आम ने मुगल काल में भी काफी चर्चा बटोरी थी। आइए डालते हैं आम के रोचक इतिहास पर एक नजर:
आम का इतिहास (History of Mango)आम का जिक्र हमारे संस्कृत के ग्रंथों में भी है। इसे संस्कृत में अमरा कहा गया है। हालांकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि आम शब्द मलयालम शब्द 'मन्ना' से आया है। कहा जाता है कि करीब 5000 साल पहले भारत या बर्मा में कहीं पर आम का पेड़ लगा था। बाद में यहां से बीज दुनिया भर के देशों तक पहुंच गए। भारत के इतिहास में आम का जिक्र सबसे पहले चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 632 ई. में किया था। ह्वेनसांग ने बताया था कि यह फल बेहद मीठा और स्वादिष्ट होता है। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि दिल्ली में सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में भी आमों का आनंद लिया जाता था। यूरोपीय भाषा में आम का सबसे पहला संदर्भ 1510 में Ludovico di Varthema के इटालियन टेक्स्ट में मिलता है। मुगल काल के मशहूर कवि अमीर खुसरो ने अपनी कई रचनाओं में आम को सबसे सुंदर फल बताया है। मौर्य सम्राट अशोक ने भी अपने राज्य के शाही सड़कों के किनारे आम के पेड़ लगवाए थे।
मुगल और आम बाबर से लेकर अकबर और औरंगजेब से जुड़े इतिहास में भी आम का जिक्र है। साल 1590 में अबुल फजल द्वारा लिखी गई अकबर की जीवनी आइन-ए-अकबरी (1590) में भी आम के गुणों का जिक्र है। लिखा गया है कि अकबर ने आज के बिहार राज्य के दरभंगा जिले में करीब एक लाख आम के पेड़ लगवाए थे। अकबर से पहले बाबर की जीवनी बाबरनामा में भी आम की प्रशंसा की गई है। जब बहादुर शाह जफर के हाथ मुगलिया सल्तनत की कमान आई तो उन्होंने दिल्ली के लाल किले में आमों का बाग लगवाया था जिसे बख्श कहा जाता था। शाहजहां को भी आम बेहद पसंद थे। उसने आमों के लिए मझगांव में पश्चिमी तट के एक बाग से दिल्ली तक के लिए एक कोरियर सेवा शुरू की थी ताकि आमों की आमद लगातार बनी रहे।
जब औरंगजेब को मिला आम का लालचसन् 1687 गोलकुंडा के शासक अबुल हसन किले पर औरंगजेब की सेना ने धावा बोल दिया। अबुल हसन ने समझौते के लिए औरंगजेब को घूस देने की कोशिश की। उसने मुगल बादशाह को करीब 10 लाख रुपये के जवाहरात और 2 लाख नगद की पेशकश की। इतनी भारी भरकम रकम के साथ ही अबुल हसन ने औरंगजेब के लिए कई टोकरी आम भी भेजे। हालांकि औरंगजेब आम और पैसों के लालच में नहीं पड़ा। युद्ध हुआ और अबुल हसन को सरेंडर करना पड़ा।
आम के लिए गालिब की दीवानगीमिर्जा गालिब उर्दू के कितने बड़े शायर रहे हैं ये बताने की जरूरत नहीं है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गालिब आम ना खाने वालों को गधा कहते थे। इससे जुड़े एक रोचक किस्सा का जिक्र काफी मशहूर है। किस्सा कुछ यूं है कि एक दिन मिर्जा गालिब के दोस्त हकीम रज़ी उद्दीन खान साहब के साथ अपने घर पर बैठे थे। गालिब औम खा रहे थे और खान साहब को आम पसंद नहीं थे। इत्तेफाक से एक दोनों के सामने एक कुम्हार अपने गधे के साथ गुजरा। गधा रुका और गालिब के फेंके आम के छिलके को सूंघ कर आगे बढ़ गया। खान साहब ने तपाक से कहा- देखिए, आम ऐसी चीज है जिसे गधा भी नहीं खाता। मिर्जा गालिब ने जवाब दिया - बेशक गधे आम नहीं खाते।
अल्फांसो आम का खूनी इतिहासजैसे आम फलों का राजा है वैसे ही अल्फांसो को आम की सारी प्रजातियों में सबसे मीठा और रसीला माना जाता है। वैसे क्या आप जानते हैं इस आम का नाम अल्फांसो क्यों पड़ा? इस बेहद मीठे आम का कड़वा इतिहास पुर्तगाली आक्रमणकारी अल्फांसो डी अल्बुकर्क संग जुड़ा है। अल्फांसो डी अल्बुकर्क ने 1510 में गोवा पर आक्रमण किया था। उस आक्रमण में उसने अंधाधुन नरसंहार किया। उस आक्रमण के बाद गोवा करीब 450 सालों तक पुर्तगालियों का गुलाम रहा। उसी अक्रांता के नाम से जुड़ा है यह अल्फांसो आम।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें
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