Janmashtami Meera Ke Dohe: ऊँचा, ऊँचा महल बणावं बिच बिच राखूँ बारी... कृष्ण रमणा मीरा बाई के दोहे के साथ मनाएं जन्माष्टमी - बनी रहेगी कृष्ण की कृपा
Janmashtami meera ke dohe (मीरे के दोहे पद): जन्माष्टमी के त्योहार को और निराला बनाना है, तो मीरा बाई के दोहे और भजन सुनकर त्योहार का रंग और कृष्णमई हो जाएगा। यहां पढ़ें हिंदी में कृष्ण रमणी मीरा बाई के दोहे, जिनके हर एक शब्द में कृष्ण की भक्ति और सौंदर्य का अनूठा रूप है। ये रहे जन्माष्टमी स्पेशल मीरा के दोहे, पद और उनके अर्थ।
Janmashtami meera ke dohe rajasthan ki radha mira bai dohe pad in hindi with meaning meera ke geet bhajan
Janmashtami Special Meera ke Dohe: श्री कृष्ण के जन्म के उत्सव की धूम चारों तरफ जोरों पर है, इस साल 6 और 7 सितंबर की तिथि पर जन्माष्टमी मनाई जाएगी। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन प्रभु को प्रसन्न करने हेतु हर कोई पूजा-पाठ से लेकर भजन कीर्तन, व्रत आदि करने में अपना समय व्यतीत करता है। बेशक कृष्ण की लीला ही कुछ ऐसी है कि, उनकी भक्ति में अपना सब कुछ त्याग देना भी जायज है।
कृष्ण प्रेम भक्ति की बात जहां होती है, वहां राधा-रुक्मिणी के साथ मीरा का नाम भी बहुत महत्वपूर्ण है। गिरधर गोपाल के लिए मीरा सी लगन शायद ही किसी में हो, ऐसे में जन्माष्टमी के इस पावन त्योहार पर मीरा बाई के दोहे और उनका अर्थ जानना बहुत ही अच्छा हो सकता है। यहां देखें राजस्थान की राधा द्वारा रचे गए कुछ दोहे और उनके हिंदी में अर्थ।
Janmashtami Meera ke dohe pad in hindi with meaning
- तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई। छाड़ि दई कुलकि कानि कहा करिहै कोई।।
अर्थ : मीरा बाई का कहना है कि, इस माया रूपी संसार में मेरा कोई नहीं है। न ही मेरी मां है, न पिता और न ही कोई भाई बहन। मेरे तो बस कृष्ण कन्हैया है, जिनके लिए मैने अपना सब कुछ त्याग दिया है और अब वही मेरे लिए मेरे सब कुछ हैं।
- बसो मोरे नैनन में नंद लाल। मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिये भाल। मोहनि मूरति सांवरी सुरति, नैना बने बिसाल।
अर्थ : दोहे का मतलब है कि, मेरे कृष्ण तुम सदा ही मेरे नैनों में निवास करते हो। तुम्हारा ये मनमोहक रूप हमेशा ही मेरी आंखों में बसा रहता है। तुम्हारे सिर पर ये मोर मुकुट और कानों में सोने के कुंडल खूब जचते हैं। आपके मस्तक पर लाल रंग का तिलक, सांवली सी सूरत और उसके ऊपर दो बड़े-बड़े नैन आपके रूप को और निखार रहे हैं।
- मीरा मगन भई, हरि के गुण गाय। सांप पेटारा राणा भेज्या, मीरा हाथ दीयों जाय। न्हाय धोय देखण लागीं, सालिगराम गई पाय। जहर का प्याला राणा भेज्या, अमरित दीन्ह बनाय। न्हाय धोय जब पीवण लागी, हो गई अमर अंचाय। सूल सेज राणा ने भेजी, दीज्यो मीरा सुवाय।
अर्थ : इस दोहे में मीराबाई का कहना है कि, मैं हमेशा ही कृष्ण भक्ति में डूबकर प्रभु के गुणों का गुणगान करती हूं। और भजन करते हुए उनके प्रेम में मगन हो जाती हूं, और मेरी इसी कृष्ण भक्ति के परेशान होकर राणा जी ने टोकरी में सांप रख मेरे लिए भेजा था। लेकिन टोकरी खोलते ही वो सांप शालिग्राम की मूर्ति में बदल गया। यही नहीं जब राणा जी ने मीरा बाई के लिए जहर भेजा था, तब वो अमृत का प्याला बन गया। यानि की जो कोई भी कृष्ण भक्ति करता है, भगवान उनका हर स्थिति में ख्याल रखते हैं।
- ऊँचा, ऊँचा महल बणावं बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ, पहर कुसुम्बी साई।
आधी रात प्रभु दरसण, दीज्यो जमनाजी रा तीरां।
मीरां रा प्रभु गिरधर नागर, हिवड़ो घणो अधीराँ।
अर्थ : श्री कृष्ण से मिलने की इच्छा जताते हुए मीरा बाई कहती हैं कि, जब प्रभु मुझसे मिलेंगे तब मैं उनके लिए ऊंचे ऊंचे महलों में बाग लगाउंगी। उनके लिए बड़े प्रेम से साज श्रृंगार करूंगी, कुसुम्बी रंग की साड़ी पहन प्रभु के दर्शन करूंगी। और मुझे लगता है कि, कृष्ण से मिलने के लिए जितनी उत्सुक मैं हूं, मेरे प्रभु का हाल भी कुछ वैसा ही होगा। मैं उनसे यमुना नदी के तट मिलना चाहती हूं और बस श्री कृष्ण मुझे दर्शन देकर मीरा सारी पीड़ा को हर लें।
- मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई। जाके सिर मोर मुकट मेरो पति सोई।।
अर्थ : मीरा बाई कहती हैं कि, मैने तो भगवान श्री कृष्ण को ही अपना पति मान लिया है। वो जिन्होंने गिरधर पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर ये नाम पाया है, वहीं अब से मेरे सब कुछ हैं। श्री कृष्ण के अलावा में किसी को भी अपना कुछ नहीं मानती हूं, वो जिनके सिर पर मोर पंख सजता है, वहीं मेरे पति हैं।
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