Kanpur Holi: कानपुर में 7 दिन तक खेली जाती है होली, अंग्रेजों के विरोध में शुरू हुई थी ये अनूठी परंपरा

Kanpur Holi Ganga Mela date: बृज की होली विश्वभर में प्रसिद्ध है और काशी की मसान होली के बारे में आप जानते ही हैं। आज हम आपको बताने जा रहे है उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में मनाई जाने वाले होली के बारे में। य

Kanpur Holi Ganga Mela date: होली का त्यौहार पूरे देश में मनाया जाने वाले प्रमुख त्यौहारों में से एक है। यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। मुख्य रूप से दो दिनों तक चलने वाला ये त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से देश भर में मनाया जाता है, जिसमें पहले दिन शाम के समय होलिका दहन का कार्यक्रम और उसके अगले दिन रंग और गुलाल से होली खेली जाती है। अलग अलग स्थानों और शहरों में होली मनाने के अपने तरीके हैं। बृज की होली विश्वभर में प्रसिद्ध है और काशी की मसान होली के बारे में आप जानते ही हैं। आज हम आपको बताने जा रहे है उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में मनाई जाने वाले होली के बारे में। यहां होली का त्यौहार 2 दिन ना चलकर पूरे 7 दिनों तक चलता है। ब्रिटिश काल से चली यह परंपरा आज तक कायम है।

ब्रिटिश काल से जुड़ा है इतिहास

7 दिन लगातार चलने वाली होली का इतिहास हम देखते हैं तो ये ब्रिटिश समय का है जब एक घटना के विरोध में शुरू हुई ये परंपरा आज तक लगातार चल रही है। देश भर में होलिका दहन और रंगोत्सव के साथ समाप्त हो जाने वाला ये त्यौहार कानपुर शहर में पूरे सात दिन तक चलता है और गंगा मेला के दिन जाकर समाप्त होता है।

क्या है कहानी

ब्रिटिश काल में एक बार जब होली का त्यौहार आया तो कानपुर शहर में लोग मस्ती के साथ रंग और गुलाल लगा रहे थे। तभी कानपुर के हटिया इलाके में होली खेलते समय किसी अंग्रेज अधिकारी के ऊपर रंग पड़ गया। रंग लगने के कारण गुस्सा हुए अंग्रेज अधिकारी ने वहां के 10 से 15 लोगों को जेल में डलवा दिया। गिरफ्तारी से नाराज लोगों ने इस बात का विरोध करना शुरू किया और जब तक लोगों को रिहा नहीं किया जाता रंगों से लगातार खेला जाएगा ऐसी योजना बनाई गई। 7 दिन लगातार विरोध करने के बाद अंग्रेजों ने सभी लोगों को रिहा कर दिया। कानपुर के सिविल लाइन्स में स्थित सरशैय्या घाट स्थित जेल से लोगों को निकाला और वहीं गंगा के किनारे सरशैय्या घाट पर लोगों ने रंग गुलाल के साथ होली खेली और बाद में गंगा स्नान करने के बाद अपने-अपने घरों की ओर गए। तभी से चली आ रही ये परंपरा आज भी कायम है।

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