Khumar Barabankvi Shayari: दुश्मनों से प्यार होता जाएगा, दोस्तों को आज़माते जाइए.., पढ़ें ख़ुमार बाराबंकवी के दिल को छू लेने वाले 25 शेर

Khumar Barabankvi Shayari: 20 सितंबर 1919 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में पैदा हुए ख़ुमार बाराबंकवी का असली नाम मोहम्मद हैदर ख़ान था। उन्हें शराब की बुरी लत थी। हालांकि उम्र के एक पड़ाव पर पहुंच कर उन्होंने शराब से तौबा कर लिया था। उनकी आवाज़ में ऐसी खनक थी कि सुनने वाले बस उसी में खो कर रह जाते थे।

Khumar Barabankvi

Khumar Barabankvi Shayari in Urdu, Hindi

Khumar Barabankvi Shayari, Ghazal, Songs: लखनऊ उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इस शहर से पूरब की तरफ़ 23 किलोमीटर दूर बाराबंकी नाम का जिला है। बाराबंकी ने मजाज़ जैसे कमाल के शायर पैदा किये। इसी शहर से क़रार बाराबंकवी भी निकले। करार बाराबंकवी ऐसे शायर थे जिनके कलाम को लखनऊ के अह्ल-ए-ज़बान भी पसंद करते थे। उन्हीं के एक शागिर्द मुहम्मद हैदर खान थे जो फनकारी की दुनिया में बहुत मशहूर हुए। मुहम्मद हैदर खान को दुनिया ख़ुमार बाराबंकवी के नाम से जानती है। पढ़ाई के बाद पुलिस की नौकरी करने वाले ख़ुमार बाराबंकवी को शेरगोई का शौक़ बचपन से था। उनका शौक कब उनकी पहचान बन गया ये कोई ना जान पाया। आइए पढ़ते हैं ख़ुमार बाराबंकवी के चंद मशहूर शेर:

रात बाक़ी थी जब वो बिछड़े थे

कट गई उम्र रात बाक़ी है

हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ 'ख़ुमार'

क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया

चराग़ों के बदले मकाँ जल रहे हैं

नया है ज़माना नई रौशनी है

हाथ उठता नहीं है दिल से 'ख़ुमार'

हम उन्हें किस तरह सलाम करें

मिरे राहबर मुझ को गुमराह कर दे

सुना है कि मंज़िल क़रीब आ गई है

झुँझलाए हैं लजाए हैं फिर मुस्कुराए हैं

किस एहतिमाम से उन्हें हम याद आए हैं

दुश्मनों से प्यार होता जाएगा

दोस्तों को आज़माते जाइए

दूसरों पर अगर तब्सिरा कीजिए

सामने आइना रख लिया कीजिए

अब इन हुदूद में लाया है इंतिज़ार मुझे

वो आ भी जाएँ तो आए न ए'तिबार मुझे

ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास

सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए

हम पे गुज़रा है वो भी वक़्त 'ख़ुमार'

जब शनासा भी अजनबी से मिले

तुझ को बर्बाद तो होना था बहर-हाल 'ख़ुमार'

नाज़ कर नाज़ कि उस ने तुझे बर्बाद किया

इलाही मिरे दोस्त हों ख़ैरियत से

ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं

दुश्मनों से पशेमान होना पड़ा है

दोस्तों का ख़ुलूस आज़माने के बाद

मुझे को महरूमी-ए-नज़ारा क़ुबूल

आप जल्वे न अपने आम करें

जलते दियों में जलते घरों जैसी ज़ौ कहाँ

सरकार रौशनी का मज़ा हम से पूछिए

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं

जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं

हाल-ए-ग़म कह के ग़म बढ़ा बैठे

तीर मारे थे तीर खा बैठे

ओ जाने वाले आ कि तिरे इंतिज़ार में

रस्ते को घर बनाए ज़माने गुज़र गए

भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम

क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए

हम भी कर लें जो रौशनी घर में

फिर अंधेरे कहाँ क़याम करें

हद से बढ़े जो इल्म तो है जहल दोस्तो

सब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं

आज नागाह हम किसी से मिले

बा'द मुद्दत के ज़िंदगी से मिले

आप ने दिन बना दिया था जिसे

ज़िंदगी भर वो रात याद आई

याद करने पे भी दोस्त आए न याद

दोस्तों के करम याद आते रहे

बता दें कि खुमार बाराबंकवी 1945 को मुंबई (तब के बंबई) पहुंचे थे जहां उन्हें फिल्मों के गीत लिखने का मौका मिला। उन्होंने कई बेहतरीन नगमे लिखे। लेकिन बंबई के माहौल और 1947 ई.के दंगों ने उनको बंबई से दुखी कर दिया और वो वापस उत्तर भारत चले गए। ख़ुमार ने 80 बरस की लम्बी उम्र पाई। 19 मार्च 1999ई. को वो अनंत की दुनिया में पहुंच गए।

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Suneet Singh author

मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें

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