Kumar Vishwas Shayari on Kranti Diwas: कुमार विश्वास की इन देशभक्ति कविताओं से शहीदों को करें नमन, दोस्तों को भेजें ये शायरी

Kumar Vishwas Desh Bhakti Kavita on Kranti Diwas 2023: 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) चलाने का फैसला किया गया और इसकी जमीनी स्तर पर शुरुआत अगले दिन 9 अगस्त को हुई थी। आज अगस्त क्रांति दिवस है और इस अवसर पर देश के अमर शहीदों को याद करने के लिए देश के सबसे लोकप्रिय कवि डॉ. कुमार विश्वास की कविताएं सुन सकते हैं!

Kumar Vishwas Shayari on Kranti Diwas

Kumar Vishwas Shayari on Kranti Diwas

Kumar Vishwas Desh Bhakti Kavita on Kranti Diwas 2023: 8 और 9 अगस्त का दिन हर भारतीय के लिए बेहद खास है। 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) चलाने का फैसला किया गया और इसकी जमीनी स्तर पर शुरुआत अगले दिन 9 अगस्त को हुई थी। इसलिए 8 और 9 अगस्त का दिन आजादी के आंदोलन में शहीद हुए क्रांतिकारियों को याद करने का दिन है। इस दिन को अगस्त क्रांति दिवस (August Kranti Diwas) के रूप में भी जाना जाता है। आज अगस्त क्रांति दिवस है और इस अवसर पर देश के अमर शहीदों को याद करने के लिए देश के सबसे लोकप्रिय कवि डॉ. कुमार विश्वास की कविताएं सुन सकते हैं और एक दूसरे को डॉ. कुमार विश्वास की देशभक्ति कविताएं भेज सकते हैं। पढ़ें कुमार विश्वास देशभक्ति कविताएं।

Kumar Vishwas Desh Bhakti Kavita on Kranti Diwas 2023

है नमन उनको कि जो देह को अमरत्व देकर

इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं

है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय

जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं

पिता जिनके रक्त ने उज्जवल किया कुलवंश माथा

मां वही जो दूध से इस देश की रज तौल आई

बहन जिसने सावनों में हर लिया पतझर स्वयं ही

हाथ ना उलझें कलाई से जो राखी खोल लाई

बेटियां जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रहीं थीं

पिता तुम पर गर्व है चुपचाप जाकर बोल आये

है नमन उस देहरी को जहां तुम खेले कन्हैया

घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं

है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय ....

हमने लौटाये सिकन्दर सर झुकाए मात खाए

हमसे भिड़ते हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है

नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी

उनके माथे पर हमारी ठोकरों का ही बयां है

सिंह के दाँतों से गिनती सीखने वालों के आगे

शीश देने की कला में क्या अजब है क्या नया है

जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी

उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है

है नमन उनको कि जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन

काल कौतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये हैं

है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय

जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं

लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे

विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है

राखियों की प्रतीक्षा, सिन्दूरदानों की व्यथाओं

देशहित प्रतिबद्ध यौवन के सपन तुमको नमन है

बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे

पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है

है नमन उनको कि जिनको काल पाकर हुआ पावन

शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये हैं

कंचनी तन, चन्दनी मन, आह, आँसू, प्यार, सपने

राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है

है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय

जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये।

कुमार विश्वास का देशभक्ति गीत 'होंठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो'

दौलत न अता करना मौला

शोहरत न अता करना मौला

बस इतना अता करना, चाहे

जन्नत न अता करना मौला

शम्मा-ए-वतन की लौ पर जब कुरबान पतंगा हो

होंठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो

बस एक सदा ही सुनें सदा

बर्फीली मस्त हवाओं में

बस एक दुआ ही उठे सदा

जलते-तपते सहराओं में

जीते जी इसका मान रखें

मर कर मर्यादा याद रहे

हम रहें कभी ना रहें, मगर

इसकी सज-धज आबाद रहे

गोधरा न हो, गुजरात न हो, इंसान न नंगा हो

होंठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो

गीता का ज्ञान सुनें न सुनें

इस धरती का यश-गान सुनें

हम सबद-कीर्तन सुन न सकें

भारत मां का जयगान सुनें

परवरदिगार, मैं तेरे द्वार पर ले पुकार ये आया हूं

चाहे अज़ान ना सुनें कान, पर

जय-जय हिन्दुस्तान सुनें

जन मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो

होंठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो।

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