Malaiyo: बनारस की मलइयो क्यों है खास, क्या है इस मिठाई का इतिहास? कैसे जादू करती है मलाई और ओस की बूंद, जानें सबकुछ
Malaiyo Sweet: यूं तो आज कन्याकुमारी के पकवान कश्मीर में मिलते हैं और पंजाब की लस्सी पुड्डुचेरी में, लेकिन मलइयो पर अब भी काशी का ही एकाधिकार है जो विदेशों तक मशहूर है। मलइयो (Malaiyo Recipe in Hindi) की तमाम खासियतों में से एक खासियत ये भी है कि इस मिठाई का स्वाद लेने के लिए आपको बनारस ही जाना पड़ेगा।
History of Malaiyo
Malaiyo Sweet of Varanasi: बनारस जिसे वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है। वाराणसी का पुराना नाम काशी है। मान्यता है कि काशी इस धरती का सबसे प्राचीन शहर है। बनारस की फिजाओं में कुछ बात ही ऐसी है कि जो भी यहां जाता है बस यहीं का हो जाता है। एक कहावत है कि भले इंसान बनारस छोड़ दे लेकिन बनारस उसे कभी नहीं छोड़ता। बनारस के जादू से मिर्जा गालिब भी ना बच पाए थे। उन्होंने अपनी मशहूर बनारस यात्रा के बाद लिखा था कि बनारस दुनिया के दिल का नुक़्ता है। उन्होंने महसूस किया था कि बनारस की हवा मुर्दों की देह में भी जान फूंक देती है। फेमस अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने अपनी किताब में लिखा है कि बनारस इतिहास, परंपरा, कई ऐतिहासिक चीजों से भी ज्यादा पुराना है। काशी हमारी सोच से भी कई अधिक प्राचीन है।
बनारस जितना प्राचीन है सांस्कृतिक रूप से उतना ही समृद्ध भी है। जहां बनारसी जीवनशैली लोगों को अपनी ओर खींचती है वहीं यहां की एक खास मिठाई है जो दुनियाभर में इस शहर-ए-बनारस का स्वाद लोगों के जुबान पर चढ़ाती है। इस मिठाई का नाम है मलइयो। मलइयो की खासियत ये है कि इसे ओस की बूंद से बनाया जाता है और यह सिर्फ साल के कुछ खास महीनों में ही बनती है। मलइयो के स्वाद से आप रूबरू हों इससे पहले जान लेते हैं इस मलइयो का इतिहास।
क्या है मलइयो का इतिहास (History of Malaiyo)
बनारस में मलइयो का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। दरअसल बनारस में गंगा नदी के किनारे सर्दियों में हरी भरी दूभ खूब उगती थी। वहां आसपास की गायें भी चरने के लिए गंगा घाटों पर ही जाया करती थीं। वैज्ञानिकों के हिसाब से इस घास से गाय का दूध गाढ़ा और काफी झागदार हो जाता है। वहां के लोग दूध से निकलने वाले झाग में चीनी डालकर खाने लगे। पहले के जमाने में फ्रिज वगैरह तो थे नहीं, तो सर्दियों में गाय के दूध के इस झाग को पूरी रात खुले आसमान के नीचे रख दिया जाता था। सुबह ओस की बूंदों से ये झाग और भी गाढ़ा हो जाता था। लोग नाश्ते में ओस की बूंदों से भरे दूध के इस झाग में चीनी डालकर खाने लगे। आगे चलकर यही झाग मलइयो के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर हुई।
कैसे पड़ा मलइयो नाम (Malaiyo Recipe in Hindi)
वाराणसी में मलइयो बेचने वाले हलवाई बताते हैं कि पहले कच्चे दूध को उबालकर खुले आसमान के नीचे ओस यानि कुहासे मे रखा जाता है। फिर दूध को काफी मथने से निकले झाग में चीनी, केसर, पिस्ता, इलायची और मेवा मिलाया जाता है। भले ही रसोई में मिक्सी और ग्राइंडर जैसी मॉडर्न मशीनें आ गई हो लेकिन बनारसी मलइयो को तैयार करने में आज भी पारंपरिक सिल-लोढ़े और मथनी का ही इस्तेमाल होता है। बात इसके नाम की करें तो यह दूध के झाग या मलाई से बनने के कारण इसे मलइयो कहा जाता है।
अगर बिंदुवार समझा जाए तो मलइयो मिठाई बनाना बेहद आसान है। यहां देखें तरीका:
- सबसे पहले कच्चे दूध को खूब खौलाएं। तब तक खौलाएं जब तक दूध का रंग गाढ़ा पीला ना हो जाए।
- जमकर खौल चुके दूध को पूरी रात खुले आसमान के नीचे रख दें।
- सुबह इस दूध को इतनी अच्छी तरह मथें की सारी मलाई ऊपर आ जाए।
- मलाई को किनारे करके निकाल लें। इसमें केसर, पिस्ता, छोटी इलायची और मेवा का पाउडर मिला दें।
- इसके बाद मलाई को जमकर फेंटे। फेंटने से जो झाग निकलती है वही है मलइयो मिठाई।
सर्दियों में ही क्यों बनती है मलइयो
मलइयो के सर्दी में बनने के पीछे खास कारण है। दरअसल मलइयो के लिए जिस तरह के गाढ़े दूध की जरूरत होती है वह जाड़े में ही मिलता है। मलइयो मिठाई की जान है ओस की बूंद। ओस की बूंद ही इस मिठाई के स्वाद को बनाती है।यह ओस की बूंद सर्दियों में ही मिलती है। मलइयो मिठाई सिर्फ दूध की मलाई से बनती है। गर्मियों में यह बहुत कम समय में खराब हो जाती है। इसी कारण मलइयो को ठंड में ही बनाया जाता है। अक्टूबर के अंत से यह मिठाई बनना शुरू हो जाती है। आने वाले तीन महीनों तक बनारस में यह मिठाई खूब खाई खिलाई जाती है।
बनारस जाकर ही ले पाएंगे मलइयो का स्वाद
यूं तो आज कन्याकुमारी के पकवान कश्मीर में मिलते हैं और पंजाब की लस्सी पुड्डुचेरी में, लेकिन मलइयो पर अब भी काशी का ही एकाधिकार है जो विदेशों तक मशहूर है। मलइयो की तमाम खासियतों में से एक खासियत ये भी है कि इस मिठाई का स्वाद लेने के लिए आपको बनारस ही जाना पड़ेगा। दरअसल यह मिठाई कुछ घंटों तक ही खाने लायक रहती है। अगर कोई कोशिश करे कि मिठाई को एक शहर से दूसरे शहर या राज्य में किसी को भेज दे तो वह मुमकिन नहीं है। इतनी दूर तय करने में मिठाई खराब हो जाएगी। इसी कारण अगर मलइयो के मजे लेने हैं तो आपको बनारस ही जाना पड़ेगा और वो भी सर्दियों के मौसम में।
मलइयो के आयुर्वेदिक लाभ
मलइयो में केसर, पिस्ता, बादाम, इलायची जैसी गुणकारी चीजें भी मिलाई जाती हैं। आयुर्वेद के जानकार भी मानते हैं कि मलइयो पौष्टिक होने के साथ ही शारीरिक सुंदरता को भी बढ़ाता है। यह चेहरे के निखार को बनाए रखता है। आयुर्वेद में इस बात का भी जिक्र है कि ओस की बूंदों में मिनरल्स होते हैं, जो आंख की रोशनी बढ़ाने के साथ ही त्वचा के लिए भी फायदेमंद होता है। इसके अलावा मलइयो में काजू, बादाम, पिस्ता और केसर समेत कई तरह के मेवों की मौजूदगा ना सिर्फ शरीर को गर्मी प्रदान करता है बल्कि ताकत और स्फूर्ति भी देता है।
कितने रुपये की मिलती है मलइयो
मलइयो की डिमांड बढ़ने के कारण अब हलवाई लोग मशीन से भी इसे तैयार कर रहे हैं। अब तो शादी ब्याह में भी मलइयो परोसी जाने लगी है। वाराणसी में 300 से 400 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मलइयो मिलती है। वहीं 15 रुपये से लेकर 30 रुपये तक छोटे, मीडियम और बड़े साइज के कुल्हड़ में भी इसे बेचा जाता है।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें
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