Manoj Muntashir Shayari: रात के अंधेरे के बाद सुबह की ओस जैसी हैं ये नज्में, सीधे दिल पर दस्तक देंगे मनोज मुंतशिर के ये चुनिंदा शेर
Manoj Muntashir Shayari in Hindi: आज इरशाद के आज के अंक में हम पढ़ेंगे युवा शायर मनोज मुंतशिर के कुछ टुनिंदा शेर। मनोज की सबसे खास बात ये है कि वह अपनी नज्मों में अपने जज़्बात के रंग कुछ इस तरह घोल देते हैं कि उनकी शायरी में नई तस्वीर नज़र आती है और वह जवां दिलों की धड़कन बन जाती है।
Manoj Muntashir Shayari in Hindi
Manoj Muntashir Shayari, Poetry, Songs in Hindi( मनोज मुंतशिर की शायरी): मनोज मुंतशिर आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। शेर-ओ-शायरी की दुनिया में मनोज ने ऊंचा मुकाम हासिल किया है। मनोज मुंतशिर के पास एक दिलकश ज़बान है, मुहब्बत की दास्तान है और अपनी बात को दिलचस्प अंदाज़ में पेश करने का हुनर है। इन खूबियों के कारण उन्हें पुरानी पीढ़ी का आशीर्वाद भी मिलता है नई पीढ़ी का साथ भी। मनोज अपनी नज्मों में अपने जज़्बात के रंग कुछ इस तरह घोल देते हैं कि उनकी शायरी में नई तस्वीर नज़र आती है और वह जवां दिलों की धड़कन बन जाती है। पेश हैं मनोज मुंतशिर के चुनिंदा शेर:
1. मैं खंडहर हो गया पर तुम न मेरी याद से निकले
तुम्हारे नाम के पत्थर मेरी बुनियाद से निकले
2. आंखों की चमक, जीने की लहक, सांसों की रवानी वापस दे
मैं तेरे ख़त लौटा दूंगा, तू मेरी जवानी वापस दे
3. साफ दिखने लगेगी ये दुनिया ऎनक आंखो से उतर जाएगी
किसी बच्चे को खेलते देखो आंखो की रोशनी बढ़ जाएगी
4. जूते फटे पहन के आकाश पे चढ़े थे
सपने हमारे हरदम औक़ात से बड़े थे
5. चटक गया है मेरे जिस्म का हर एक टांका
ये जान छूटने वाली है अब हिरासत से
जो आसमान से गिरता तो बच गया होता
मैं गिरा हूं तेरे इश्क की इमारत से
6. और बरसेगा तू मुझमें तो मैं भर जाऊंगा
इससे ज्यादा तुझे चाहूंगा तो मर जाऊंगा
7. मेरी मौत का मातम ना करना मैंने ख़ुद ये शहादत चाही है
मैं जीता हूं मरने के लिए मेरा नाम सिपाही है
8. खींच ले जाती हैं मुझको तेरे ही घर की तरफ
शहर की सारी सड़कें जैसे पागल हो गईं…
9. वो मेरा चांद सौ टुकड़ों में टूटा ,जिसे मैं देखता था आंख भर के
जहां पर लाल हो जाते हैं आंसू, मैं लौटा हूं उसी हद से गुज़र के
10. तुम हां कह दो, मैं हां कह दूं, इनकार करो, इनकार करूं,
जिस प्यार में इतनी शर्ते हैं, उस प्यार से कैसे प्यार करूं
11. सवाल इक छोटा सा था, जिसके पीछे ये सारी ज़िंदगी बर्बाद कर ली
भुलाऊं किस तरह वो दोनों आंखें, किताबों की तरह जो याद कर ली
12. कई रातों का मैं जागा हुआ था, ज़रा मौक़ा मिला तो सो गया हूँ
जो बाक़ी रह गए वो काम कर लूँ, मोहब्बत से तो फ़ारिग़ हो गया हूँ..
13. मैं अब भी इक आवाज़ पे आ जाऊँगा खिंच कर,
ढूँढो कोई बहाना, बुलाओ तो किसी रोज़
14. लहू और इश्क़ रंग दोनो का फीका हो नहीं सकता
मैं उसका हो चुका हूँ अब किसी का हो नहीं सकता
15. कोई अधूरा इश्क़ है जिसकी खलिश अभी तक तारी है
रात वो ख़्वाबों में आया था, बदन सुबह से भारी है
मनोज मुंतशिर की नज़्मों में मिलने-बिछड़ने, चाहत, उल्फ़त, देशभक्ति और जुनून की एक अजीब सी जो कसक है। उनकी इस कसक को देखते हुए कहा जा सकता है कि उन्होंने साहिर लुधियानवी की रिवायत को आगे बढ़ाने का क़ाबिले-तारीफ़ काम किया है।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें
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