Mir Taqi Mir Shayari: कोई तुम सा भी काश तुम को मिले, मुद्दा हम को इंतिक़ाम से है..अधूरी मोहब्बत का मीठा फसाना हैं मीर तक़ी मीर के ये 21 शेर
Mir Taqi Mir Shayari: मीर तक़ी मीर लफ्ज़ों के ऐसे जादूगर थे कि जो उनकी शायरी के करीब आता है जकड़ता चला जाता है। इसे मीर की शायरी के जादू का असर इस बात से समझा जा सकता है कि मिर्ज़ा ग़ालिब, दाग़ देहलवी समेत तमाम नामचीन शायरों ने मीर की शायरी का लोहा माना है। 'इरशाद' में आज आपके नज़र पेश करते हैं मीर तकी मीर के चंद मशहूर शेर:
Mir taqi Mir Ghazals, Shayari, Poetry in Urdu Hindi
Mir taqi Mir Shayari in Urdu (मीर तकी मीर 2 लाइन शायरी): मीर तक़ी मीर एक ऐसा नाम है जो उर्दू और फ़ारसी शायरी में बेहद ऊंचा ओहदा रखते हैं। उन्हें ख़ुदा-ए-सुख़न भी कहा जाता है। फारसी भाषा के बोलबाले के बीच उर्दू शायरी को स्थापित करने का श्रेय मीर तक़ी मीर को ही जाता है। इश्क़ के पल-छिन बदलते रंगों को शब्दों में उतार देने वाले मीर ने प्यार के कई मुक़ाम अपनी रचनाओं में दिखाए हैं। पेश हैं मीर तकी मीर के खजाने से कुछ चुनिंदा शेर:
होगा किसी दीवार के साए में पड़ा 'मीर'
क्या रब्त मोहब्बत से उस आराम-तलब को
बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदा
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता
'मीर' साहब तुम फ़रिश्ता हो तो हो
आदमी होना तो मुश्किल है मियाँ
शाम से कुछ बुझा सा रहता हूँ
दिल हुआ है चराग़ मुफ़्लिस का
क्या कहें कुछ कहा नहीं जाता
अब तो चुप भी रहा नहीं जाता
गुल हो महताब हो आईना हो ख़ुर्शीद हो मीर
अपना महबूब वही है जो अदा रखता हो
'मीर' अमदन भी कोई मरता है
जान है तो जहान है प्यारे
बे-ख़ुदी ले गई कहाँ हम को
देर से इंतिज़ार है अपना
मत सहल हमें जानो फिरता है फ़लक बरसों
तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते हैं
राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या
आगे आगे देखिए होता है क्या
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
कोई तुम सा भी काश तुम को मिले
मुद्दआ हम को इंतिक़ाम से है
हम हुए तुम हुए कि 'मीर' हुए
उस की ज़ुल्फ़ों के सब असीर हुए
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम
अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये
बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो
ऐसा कुछ कर के चलो याँ कि बहुत याद रहो
अब तो जाते हैं बुत-कदे से 'मीर'
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया
याद उस की इतनी ख़ूब नहीं 'मीर' बाज़ आ
नादान फिर वो जी से भुलाया न जाएगा
क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़
जान का रोग है बला है इश्क़
फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थे
पर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत
दिल की वीरानी का क्या मज़कूर है
ये नगर सौ मर्तबा लूटा गया
रोते फिरते हैं सारी सारी रात
अब यही रोज़गार है अपना
इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर है
कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है
बता दें कि मीर तक़ी मीर साल 1723 में उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्मे थे। मीर की शायरी मोहब्बत के इर्द-गिर्द घूमती, वो भी भी अधूरी मोहब्बत। मीर को पसंद करने वाले कुछ उन्हें मोहब्बत का शायर कहता है तो कुछ दर्द का शायर। लेकिन मीर ने अपनी कलम से जो कुछ लिखा सब अमर हो गया।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें
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