Mughal: जब मुगलों की रसोई से गायब होने लगा गोश्त, खिचड़ी और साग-पात बन गए थे मुगल बादशाहों की पहली पसंद
Royal Mughal Kitchen: मुगलों की रसोई से निकले कई पकवान आज भी बेहद पसंद किये जाते हैं। पनीर कोफ्ता औरंगजेब के रसोई की ही देन है।
जानिए कैसा खाना खाते थे मुगल बादशाह।
Mughal Food History: भारत में मुगल साम्राज्य 1526 में शुरू हुआ, मुगल वंश का संस्थापक बाबर था। 1526 में पानीपत की लड़ाई जीतकर बाबर भारत का पहला मुगल बादशाह बन गया था। अधिकतर मुगल शासक तुर्क और सुन्नी मुसलमान थे। मुगल शासन 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक चला और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ।
मुगलों का खान-पानमुगलों के बारे में आम राय ये है कि उन्हें मांसाहार से काफी लगाव था। हालांकि ये पूरी तरह सत्य नहीं है। कई मुगल बादशाह तो ऐसे हुए जिन्होंने खुद को मांसाहार से अलग कर लिया था। मुगल सल्तनत के कई ऐसे बादशाह थे जिन्हें भारतीय व्यंजन खूब पसंद थे। मुगल काल के सबसे महान बादशाह का तमगा पाए अकबर को शिकार करने का तो शौक था लेकिन उन्हें गोश्त पसंद नहीं थी। अकबर का लगाव साग सब्जियों में था। औरंगजेब ने तो शिकार को 'बेकार लोगों का मनोरंजन' बता दिया था।
भारत में जब मुगल आए तो वह अपने तरीके का खानपान रखते थे। लेकिन जब वह यहीं की संस्कृति में रच बस गए तो पकवानों को लेकर कई तरह के प्रयोग किये गए। इन प्रयोगों से कुछ बेहद लजीज व्यंजन इजाद हुए जो आ भी खाए और खिलाए जाते हैं। मुगल काल की रसोई पर देश की मशहूर इतिहासकार और फूड एक्सपर्ट सलमा हुसैन ने खूब रिसर्च किये हैं। उन्होंनं इस विषय पर कई किताबें भी लिखी हैं।
मांस और मदिरा के शौकीन बाबरभारत में पहले मुगल बादशाह बाबर को मांसाहार पसंद था। वह मांस के साथ मदिरा का भी शौकीन था। मदिरा से बाबर को इतना प्रेम था कि वह होली पर बड़े-बड़े कनस्तरों में शराब भरवाता था और लोगों को उसी में फेंक देता था। ये उसका होली खेलने का तरीका था। (मुगल काल में होली कैसे खेलते थे ये आप इस लिंक पर क्लिक कर के जान सकते हैं।)
मुगलों की मजबूरी थी गोश्तबाबर के बाद के बादशाहों में से अकबर, जहांगीर और औरंगजेब के बीच एक बात समान थी। तीनों को ही गोश्त की जगह साग सब्जियों से लगाव था। गोश्त उनकी मजबूरी थी। दरअसल तब ये माना जाता था कि अगर खुद को शारीरिक तौर पर मजबूत रखना है तो गोश्त खाना जरूरी है। यही वजह थी कि बादशाह के भोजन में कभी-कभार गोश्त नजर आ जाता था। लेकिन जब पसंद की बात आती तो ये तीनों ही बादशाह शाकाहारी खाना पसंद करते थे।
अकबर ने ऐसे बना ली मांस से दूरीबात अकबर की करें तो अपनी हुकूमत के शुरुआती दौर में वो हर शुक्रवार को मांस से परहेज किया करता थे। धीरे-धीरे रविवार का दिन भी इसमें शामिल हो गया। फिर हर महीने की पहली तारीख, मार्च का पूरा महीना और फिर अक्टूबर का महीना जो कि उनके पैदाइश का महीना था, उनमें भी वे मांस खाने से परहेज करने लगे थे। उनके खाने की शुरुआत दही और चावल से होती थी।
तीन हिस्सों में बंटी थी अकबर की रसोईअकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फ़ज़ल ने अपनी किताब आईन-ए-अकबरी में लिखा है कि अकबर के खाने की तीन श्रेणियां थीं। उनके लिए उनके शाही खानसामे तीन तरह के भोजन बनाया करते थे। अकबर के लिए बनने वाले पकवानों में पहले पायदान पर था हिस्सा था सूफियाना भोजन। सूफियाना भोजन में किसी तरह के मांस का इस्तेमाल नहीं होता था। दूसरी श्रेणी का भोजन वह था जिसमें मांस और अनाज मिलाकर पकाया जाता था। तीसरी श्रेणी मांसाहार की थी। इसमें मांस को घी और मसालों में पकाया जाता था। पहली श्रेणी ा भोजन सूफियाना होने से पता चलता है कि अकबर की पहली पसंद शाकाहारी व्यंजन थे।
अकबर की ही राह पर चला जहांगीरअपने पिता अकबर की तरह मुगल बादशाह जहांगीर को भी गोश्त और मांसाहार से कुछ ख़ास लगाव नहीं था। जब वह राजगद्दी पर बैठे तो उन्होंने रविवार और गुरुवार को मांसाहार से दूरी बना ली। इस ना सिर्फ वह मांसाहार से परहेज करते थे बल्कि उनके राज में इस दिन जानवरों के शिकार पर भी पाबंदी थी। फलों और सब्जियों की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों पर लगाए जाने वाले करों में भू छूट दी जाती थी।
मांस से दूर हो गया था औरंगजेबयुवा औरंगजेब मांसाहार का शौकीन थी। उसे मांस से बने लजीज व्यंजन पसंद थे। लेकिन जब वह राजगद्दी पर बैठा तो मांसाहार से उसका भी मोह भंग होने लगा। खिचड़ी उसका पसंदीदा व्यंजन बन गई। औरंगजेब की मेज़ सादे खानों से भरी रहती थी और शाही रसोइए सब्जियों के उम्दा दर्जे के पकवान बनाने की हर संभव कोशिश करते थे। गेहूं से बने कबाब और चने की दाल से बने पुलाव औरंगजेब का पसंदीदा खाना था। ना सिर्फ सब्जियां बल्कि ताजे रसीले फल जैसे कि आम भी औरंगजेब की पसंद बन गए थे। अपने के दिनों में जवानी में औरंगजेब को शिकार का खूब शौक था लेकिन बुढ़ापे में उन्होंने शिकार को 'बेकार लोगों का मनोरंजन' बता दिया था।
मुगलों की शाही रसोई से निकले कई पकवान मुगल बादशाहों के शाही रसोइए उनके लिए शाकाहारी भोजन पर तमाम तरह के प्रयोग करने लगे। मुगलों को बिरियानी पसंद थी तो बावर्चियों ने ऐसी बिरयानी बनाना शुरू की जिसमें मांस की जगह सब्जियों का इस्तेमाल होने लगा। आज उसी बिरयानी को वेज बिरयानी या पुलाव कहा जाता है। पनीर से बने कोफ्ते और फलों के इस्तेमाल से बने खाने औरंगजेब के काल की देन हैं।तंदूरी रोटी और शाही टुकड़े का भी चलन मुगलों के काल से शुरू होकर आज तक चल रहा है।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें
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