Nazeer Banarasi Shayari: उम्र भर की बात बिगड़ी इक ज़रा सी बात में.., तपती गर्मी में ठंडी पुरवाई से हैं नजीर बनारसी के ये चुनिंदा शेर

Nazeer Banarasi Shayari in Hindi: नजीर बनारसी की शायरी में बनारस की गलियों, गंगा घाटों और वहाँ की संस्कृति की झलक मिलती है। उनकी शायरी में ऐसा जादू था कि सुनने वाले बस उसी में डूब कर रह जाते हैं। उन्होंने अपनी शायरी के जरिए हमेशा इंसानियत, प्रेम, भाईचारा और गंगा जमुनी तहजीब की बात की।

Nazeer Banarasi

Nazeer Banarasi Shayari in Hindi 2 lines

Nazeer Banarasi Shayari in Hindi: नजीर बनारसी का जन्म साल 1925 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी (बनारस) में हुआ था। उनका नाम हिंदी और उर्दू के प्रसिद्ध शायरों में पूरे सम्मान से लिया जाता है। पेशे से हकीम, नजीर ने अपनी शायरी के जरिए इंसानियत, प्रेम, भाईचारा और गंगा जमुनी तहजीब का संदेश दिया। उनकी नज्में संकीर्णता और भेदभाव को नकारते हुए मानवता को जोड़ने का काम करती थीं। उनकी शायरी में बनारस की गलियों, गंगा घाटों और वहाँ की संस्कृति की झलक मिलती है। पढ़ें नजीर बनारसी की कलम से निकले कुछ चुनिंदा शेर:

1. अंधेरा मांगने आया था रौशनी की भीक

हम अपना घर न जलाते तो और क्या करते

2. उम्र भर की बात बिगड़ी इक ज़रा सी बात में

एक लम्हा ज़िंदगी भर की कमाई खा गया

3. बद-गुमानी को बढ़ा कर तुम ने ये क्या कर दिया

ख़ुद भी तन्हा हो गए मुझ को भी तन्हा कर दिया

4. ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी

मिरी ख़ैरियत भी पूछी किसी और की ज़बानी

5. एक दीवाने को जो आए हैं समझाने कई

पहले मैं दीवाना था और अब हैं दीवाने कई

6. ये करें और वो करें ऐसा करें वैसा करें

ज़िंदगी दो दिन की है दो दिन में हम क्या क्या करें

7. मिरी बे-ज़बान आंखों से गिरे हैं चंद क़तरे

वो समझ सकें तो आँसू न समझ सकें तो पानी

8. दिल की उजड़ी हुई हालत पे न जाए कोई

शहर आबाद हुए हैं इसी वीराने से

9. जी में आता है कि दें पर्दे से पर्दे का जवाब

हम से वो पर्दा करें दुनिया से हम पर्दा करें

10. वो आइना हूं जो कभी कमरे में सजा था

अब गिर के जो टूटा हूं तो रस्ते में पड़ा हूं

11. दूसरों से कब तलक हम प्यास का शिकवा करें

लाओ तेशा एक दरिया दूसरा पैदा करें

12. रास्ता रोके हुए कब से खड़ी है दुनिया

न इधर होती है ज़ालिम न उधर होती है

13. आस ही से दिल में पैदा ज़िंदगी होने लगी

शम्अ जलने भी न पाई रौशनी होने लगी

14. एक झोंका इस तरह ज़ंजीर-ए-दर खड़का गया

मैं ये समझा भूलने वाले को मैं याद आ गया

नजीर बनारसी के ये शेर तपते सूरज के बीच ठंडी पुरवाई से हैं। उनकी शायरी में ऐसा जादू था कि सुनने वाले बस उसी में डूब कर रह जाते हैं। अगर आपको भी ये चुनिंदा शेर पसंद आए हों तो इन्हें अपने सोशल मीडिया अकाउंट से जरूर शेयर करें।

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Suneet Singh author

मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें

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