अजमेर के पुष्कर से 9 किमी दूर कानबाय में है भगवान विष्णु की प्राचीन प्रतिमा।
तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
- नौसर माता मंदिर में देवी के नौ सिरों के होते हैं दर्शन
- नौसर मंदिर में नवरात्रों में लगते हैं मेले
- कानबाय में है भगवान विष्णु की विश्व की सबसे प्राचीन प्रतिमा
New Year Party In Pushkar: राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित पुरातन धर्म नगरी पुष्कर की पहचान महज ब्रह्मा मंदिर व पुष्कर झील ही नहीं है। अगर नए साल के मौके पर आप पुष्कर घूमने जा रहे हैं तो ये खबर आपके लिए अहम है। यहां पर दो खास मंदिर हैं जिसमें दशर्नों के लिए देश के सभी हिस्सों से लोग पूजा- अर्चना के लिए आते हैं। बता दें कि, पुष्कर घाटी में स्थित नाग पहाड़ी की गोद में स्थित है नौसर माता का पुराना मंदिर।
इस मंदिर की खासियत ये है कि, यहां पर देवियों के पिंडी रूप में नहीं, बल्कि नौ सिर के एक साथ दर्शन होते हैं। यही वजह है कि, इसे नौसर माता मंदिर कहा जाता है। यहां पहाड़ी की तलहटी में बसे गांव का नाम भी नौसर है। मंदिर के महंत रामाकृष्ण देव के मुताबिक पद्मपुराण के अनुसार सतयुग में जब जगतपिता ब्रह्माजी ने पुष्कर में यज्ञ किया, तब असुरों से यज्ञ की रक्षा के लिए नव दुर्गा का आह्वान किया था। तब यहां देवियों की यह प्रतिमा स्वयं प्रकट हुई थी।
ग्वालियर राजघराने ने करवाया था जीर्णोद्धार
महंत के मुताबिक मंदिर के एक भाग में बटुक भैरव भी विराजित हैं। मां के मंदिर का जीर्णाेद्धार करीब 1300 वर्ष पूर्व ग्वालियर राजघराने द्वारा करवाया गया था। गौरतलब है कि, देवी मां के अधिकतर मंदिर पहाड़ों पर स्थित होते हैं। मगर नौसर मां का मंदिर पहाड़ी की तलहटी में बना हुआ है। देवी के दर्शनों के लिए भक्तों को पहाड़ी से करीब 50 सीढ़ियां नीचे उतर कर मंदिर में जाना पड़ता है। महंत के मुताबिक देवी के उपासक अब भक्तों की सहूलियत के लिए लिफ्ट लगवा रहे हैं। मां को इलाके के कई परिवार कुलदेवी के तौर पर भी मानते हैं। महंत के मुताबिक मां के मंदिर में चैत्र, आश्विन नवरात्र सहित गुप्त नवरात्रों में मेला लगता है तथा विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं।
इस मंदिर में है भगवान विष्णु की सबसे प्राचीन प्रतिमा
मां नौसर मंदिर के अलावा पुष्कर से करीब 9 किमी की दूरी पर सनातन धर्म का उत्पत्ति स्थल कानबाय है। यहां क्षीर सागर मंदिर में भगवान विष्णु की विश्व की सबसे प्राचीनतम मूर्ति होने का दावा किया गया है। जानकारी के मुताबिक कार्बन डेटिंग पद्धति से अनुमान लगाया गया है कि मूर्ति करीब 4000 साल पुरानी है। वहीं मंदिर के महंत ने दावा जताया है कि इतिहास के मुताबिक मूर्ति 4170 वर्ष पुरानी है। बता दें कि कानबाय वो जगह है, जहां सप्तऋषियों सहित लंकाधिपति रावण, भगवान ब्रह्मा और विष्णु ने तपस्या की थी। माना जाता है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण दो बार यहां आए थे। वहीं द्वापर में श्रीकृष्ण के 7 बार यहां आने का उल्लेख पुराणों में मिलता है।
सवा नौ फीट के विष्णु विराजते हैं यहां
माना जाता है कि यह मंदिर समुद्र मंथन के बाद ब्रह्म, शंकर, इंद्र व सप्त ऋषियों द्वारा सेवित है। त्रेता युग में सनातन धर्म में मूर्ति पूजा की शुरुआत यहीं से आरंभ हुई थी। मूर्ति की लंबाई सवा 9 फीट है। क्षीरसागर में भगवान विष्णु शयन मुद्रा में हैं। भगवान के हाथों में गदा, चक्र, पदम और शंख है। खास बात य है कि एक ही पत्थर निर्मित मूर्ति में दर्शाया गया है कि मां लक्ष्मी उनके पैर दबा रही हैं।
मूर्ति की जांच के लिए 1971 में अमेरिका से आई थी टीम
साल 1971 में अमेरिका से आर्कियोलॉजिस्ट की एक टीम आई थी। मूर्ति की कार्बन डेटिंग सी-14 से जांच की गई तो इसका 4000 साल से भी पुराना होना सामने आया। महंत के मुताबिक कानबाया में आकर एक बार मंत्रोच्चार करने से एक अश्वमेध यज्ञ करने के समान माना गया। इस मंदिर के लिए अजमेर तक ट्रेन से पहुंचा जा सकता है। इसके बाद बस या कार से पुष्कर होते हुए मंदिर पहुंचा जा सकता है।