Nushur Wahidi Shayari: मैं तिनकों का दामन पकड़ता नहीं हूं, मोहब्बत में डूबा तो कैसा सहारा.., पढ़ें नुशूर वाहिदी के 15 मशहूर शेर
Nushur Wahidi Shayari in Hindi: नुशूर वाहिदी ने कम उम्र से ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। वह 13 साल की उम्र तक एक शायर के रूप में मशहूर हो गए थे। नुशूर साहब को शायरी वरासत में मिली। उनके पिता फारसी के जानकार और शायर थे

Nushur Wahidi Shayari in Hindi
Nushur Wahidi Shayari in Hindi: शेर-ओ-शायरी की दुनिया में नुशूर वाहिदी एक जाना-माना नाम हैं। पेशे से लेखक और चिकित्सक नुशूर वाहिदी शौक और मिज़ाज के शायर थे। अप्रैल 1912 में जब वह पैदा हुए तो घरवालों ने उनका नाम हफ़िज़ुर्रहमान रखा। शायरी का हुनर उन्हें विरासत में मिला था। नुशूर के गांव की भाषा भोजपुरी थी लेकिन उनके वालिद फारसी के बड़े विद्वान और शायर थे। वो यकता के उपनाम से लिखते थे। उनके नाना अब्दुर्रशीद भी फारसी के विद्वान थे। नुशूर वाहिदी की कलम से एक से बढ़कर एक शानदार नज़्में निकली हैं। आइए पढ़ते हैं नुशूर वाहिदी को कुछ चुनिंदा शेर:
1. अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की
मरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई
2. दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है
चले आओ जहाँ तक रौशनी मा'लूम होती है
3. हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिए
नज़र नहीं तो अंधेरा है आदमी के लिए
4. मैं अभी से किस तरह उन को बेवफ़ा कहूँ
मंज़िलों की बात है रास्ते में क्या कहूँ
5. क़दम मय-ख़ाना में रखना भी कार-ए-पुख़्ता-काराँ है
जो पैमाना उठाते हैं वो थर्राया नहीं करते
6. सरक कर आ गईं ज़ुल्फ़ें जो इन मख़मूर आँखों तक
मैं ये समझा कि मय-ख़ाने पे बदली छाई जाती है
7. इक नज़र का फ़साना है दुनिया
सौ कहानी है इक कहानी से
8. बड़ी हसरत से इंसाँ बचपने को याद करता है
ये फल पक कर दोबारा चाहता है ख़ाम हो जाए
9. गुनाहगार तो रहमत को मुँह दिखा न सका
जो बे-गुनाह था वो भी नज़र मिला न सका
10. मेरी आँखों में हैं आँसू तेरे दामन में बहार
गुल बना सकता है तू शबनम बना सकता हूँ मैं
11. सलीक़ा जिन को होता है ग़म-ए-दौराँ में जीने का
वो यूँ शीशे को हर पत्थर से टकराया नहीं करते
12. मैं तिनकों का दामन पकड़ता नहीं हूँ
मोहब्बत में डूबा तो कैसा सहारा
13. ज़माना याद करे या सबा करे ख़ामोश
हम इक चराग़-ए-मोहब्बत जलाए जाते हैं
14. तग़य्युरात के आलम में ज़िंदगानी है
शबाब फ़ानी नज़र फ़ानी हुस्न फ़ानी है
15. एक रिश्ता भी मोहब्बत का अगर टूट गया
देखते देखते शीराज़ा बिखर जाता है
बता दें कि नुशूर वाहिदी एक समय में मुशायरे में बहुत लोकप्रिय थे। 1977 में उन्हें उर्दू का महाकवि भी कहा गया। 4 जनवरी 1983 को वह इस दुनिया को अलविदा कह गए।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें
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